प्रान्तीय राजवंश: नेपाल Provincial Dynasty: Nepal
सन् 879 ई. तक सम्भवत: नेपाल ने तिब्बत की प्रभुता को उखाड़ फेंका तथा इसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व हो गया। इसके दो सौ वर्ष बाद तक नेपाल में शासन करने वाले राजाओं के विषय में हमें कुछ मालूम नहीं पर ग्यारहवीं सदी से नेपाल ठाकुरियों के अधीन उन्नति करने लगा। दो सौ वर्षों से अधिक तक (1097-1326 ई.) मिथिला का कर्णाटक-वंशीय राजा नान्यदेव तथा उसके उत्तराधिकारी अपनी राजधानी सिमराव से नेपाल के स्थानीय राजाओं पर एक प्रकार की ढीली प्रभुता का दावा करते रहे। 1324 ई. में तिरहुत के हरिसिंह ने, जो नान्यदेव का वंशज था, नेपाल पर आक्रमण किया। नेपाल के राजा जयरुद्र मल्ल ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। भातगाँव में अपना मुख्यालय रखकर हरिसिंह ने धीरे-धीरे सम्पूर्ण घाटी पर अपनी शक्ति को फैलाया। चौदहवीं सदी में उसके राज्य का चीन के साथ कूटनीतिक सम्बन्ध था। पर साथ-साथ हरिसिंह तथा उसके वंशजों ने स्थानीय शासकों को बिना रोकटोक किये छोड़ दिया। ये स्थानीय शासक अन्य दोनों राजधानियों अर्थात् पाटन एवं काठमांडू पर अधिकार किये रहे, पर इन्होंने उनकी प्रभुता स्वीकार कर ली। लगभग 1370 ई. में मल्लराजा जयरुद्र (1320-1236 ई.) के दौहितृ-जामाता तथा जगत सिंह के जामाता जयस्थितिमल्ल ने मल्लों के राजसिंहासन पर कब्जा जमा लिया और 1382 ई. तक लगभग सारे नेपाल पर अधिकार कर लिया। जगत सिंह हरिसिंह के कर्नाट वंश का राजकुमार था। उसने जयरुद्र की पुत्री नायक देवी से विवाह किया था। तब से इस पर उसके वंशज नियमित क्रम से राज्य करने लगे। उसके तीन पुत्र थे- धर्ममल्ल, ज्योतिर्मल्ल तथा कीर्तिमल्ल। उन्होंने राज्य को अविभक्त रखा। 1418 ई. तक नेपाल में हरिसिंह के वंशजों का अधिकार समाप्त हो गया तथा ज्योतिर्मल्ल ने सम्राट् की शक्ति का प्रयोग करने का प्रयत्न किया। 1426 ई. के लगभग ज्योतिर्मल्ल का ज्येष्ठ पुत्र यक्षमल्ल उसका उत्तराधिकारी बना, जिसने लगभग आधी सदी तक शासन किया। वह नेपाल के मल्ल शासकों में सर्वश्रेष्ठ था। पर अपने राज्य को अपने पुत्रों एवं पुत्रियों में बाँट कर उसने लगभग 1480 ई. में अपनी मृत्यु के पहले एक गलती की। इससे काठमांडू एवं भातगाँव के दो प्रतिद्वन्द्वी राज्यों का उदय हुआ, जिनके झगड़ों के कारण अन्त में 1768 ई. में गुरखों ने नेपाल जीत लिया।