गजनवी: सुल्तान महमूद Ghazni: Sultan Mahmud

राजनैतिक दृष्टिकोण से गजनवी के सुल्तानों द्वारा पंजाब-विजय निचली सिन्धु घाटी में अरब राज्यों की स्थापना से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण थी।

सुल्तान महमूद, जिसने अपने पिता सुबुक्तगीन की नीति को और आगे बढ़ाकर सफलीभूत किया, निस्सन्देह संसार के सर्वश्रेष्ठ सैनिक नायकों में था। अपने संयमित साहस, बुद्धिमता, उपायचिंतनपटुता एवं अन्य गुणों के वह एशियाई इतिहास के सबसे अधिक दिलचस्प व्यक्तियों में से है। अपने विजयपूर्ण आक्रमणों के अतिरिक्त उसे बैरी तुर्कों के विरुद्ध दो स्मरणीय चढ़ाइयों का श्रेय प्राप्त है, जिनमें उसने इलक खाँ एवं सेलजुकों की सेनाओं को परास्त किया था। सुल्तान महान् योद्धा तो था ही, साथ ही कला एवं विद्या का आश्रयदाता भी था।

किन्तु इन सब के बावजूद वह मुख्यतः एक अतृप्त आक्रमणकारी ही प्रतीत होता है। वह न तो इस देश में धर्म-प्रचार के निमित्त ही आया था और न साम्राज्यनिर्माता के रूप में ही। उसके पूर्वी आक्रमणों का मुख्य ध्येय हिन्द की दौलत प्राप्त करना तथा इसके संरक्षकों के नैतिक बल का ध्वंस करना मालूम पड़ता है। पंजाब का साम्राज्य में मिलाया जाना, पसन्द से अधिक आवश्यकता का कार्य था। फिर भी यह मान लेना गलत होगा कि उसके आक्रमणों का भारत में कोई स्थायी राजनैतिक परिणाम न निकला। वह देश का धन ढोकर ले गया और इसके सैनिक साधनों का भयोत्पादक सीमा तक अपहरण किया। गजनवी-अधिकृत पंजाब ने अन्त: स्थित भारत के द्वार खोलने के लिए कुंजी का काम किया। भारत के व्यवस्थित समाज के महान् भवन में बड़ी दरारें पड़ गयीं और अब यह प्रश्न नहीं रह गया कि क्या, बल्कि प्रश्न यह रह गया कि कब, यह युगों से चली आ रही इमारत गिर पड़ेगी। न तो अरब और न गजनवी (यमीनी) तुर्क ही भारत को इस्लाम के बढ़ते हुए साम्राज्य में मिलाने में सफल हो सके, पर उन्होंने उस अन्तिम संघर्ष का रास्ता साफ कर दिया, जिसने प्राय: दो सौ वर्ष बाद गंगा की घाटी के राज्यों को व्याकुल कर दिया। माना जाता है कि महमूद के अधीन ईराक में फारसी भाषा और संस्कृति का पुनरूद्धार हुआ। इसी के दरबार में फिरदौसी ने शाहनामा की रचना की। महमूद ने बुतशिकन (मूर्तिभंजक) की उपाधि ली। महमूद गजनवी को मुस्लिम विश्व का प्रथम वैधानिक सुल्तान मन जाता है।

महमूद गजनवी के आक्रमण- 1000 ई. से 1027 ई. के बीच में महमूद ने भारत पर सत्रह बार आक्रमण किये।

1. सीमान्त दुर्गों पर आक्रमण- 1000 ई. में महमूद का पहला आक्रमण सीमावर्ती दुर्गों पर हुआ। महमूद ने राजा जयपाल के सीमान्त दुर्गों पर अधिकार कर लिया।

2. पंजाब पर आक्रमण- महमूद का दूसरा आक्रमण पंजाब के राजा जयपाल पर हुआ। 1001 ई. में पेशावर के निकट घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में जयपाल की पराजय हुई। उसे अपमानजनक सन्धि स्वीकार करनी पड़ी और जयपाल ने एक बड़ी धनराशि देना स्वीकार किया। महमूद ने जयपाल की राजधानी वैहन्द को लूटा और अपार धनराशि लेकर गजनी लौट गया।

3. भेरा पर आक्रमण- महमूद का तीसरा आक्रमण 1003 ई. में भेरा नामक स्थान पर हुआ। भेरा का राजा पराजित हुआ और उसने आत्महत्या का ली। महमूद ने भेरा नगर को खूब लूटा और लूट का समान लेकर गजनी लौट गया। महमूद ने भेरा को अपने राज्य में मिला लिया।


4. मुल्तान पर आक्रमण- महमूद का चौथा आक्रमण मुल्तान पर हुआ। मुल्तान का शासक अब्दुल फतह दाऊद था जो करमत सम्प्रदाय का अनुयायी था। वह कट्टर इस्लाम धर्म को नहीं मानता था। 1004-1005 में महमूद ने मुल्तान पर आक्रमण किया। महमूद को मुल्तान पर आक्रमण करने के लिए आनन्दपाल के राज्य पंजाब से होकर जाना था। आनन्दपाल ने अपने प्रदेश से होकर जाने की अनुमति नहीं दी। आनन्दपाल पराजित हुआ और महमूद ने मुल्तान पर भी विजय प्राप्त की। लौटने से पूर्व महमूद ने आनन्दपाल के पुत्र सुखपाल को मुल्तान का राज्यपाल नियुक्त किया। सुखपाल (उपनाम नवासा शाह) ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया।

5. सुखपाल पर आक्रमण- महमूद के जाने के बाद सुखपाल ने इस्लाम धर्म का त्याग कर दिया। वह मुल्तान का स्वतन्त्र शासक बन गया। उसे दण्ड देने के लिये महमूद ने मुल्तान पर पुनः आक्रमण किया। महमूद ने दाऊद को पुनः मुल्तान का शासक नियुक्त किया।

6. आनन्दपाल पर आक्रमण- महमूद का छठा आक्रमण लाहौर के राजा आनन्दपाल पर हुआ। आनन्दपाल ने मुल्तान के शासक दाऊद की महमूद के विरुद्ध सहायता की थी। महमूद का मुकाबला करने के लिये आनन्दपाल ने एक विशाल सेना एकत्र की। आनन्दपाल ने महमूद के विरुद्ध हिन्दू राजाओं का एक संघ बनाया। इस संघ में फरिश्ता के अनुसार, अजमेर, दिल्ली, उज्जैन, ग्वालियर, कालिन्जर और कन्नौज के राजा शामिल थे। झलम नदी के किनारे उन्द नामक स्थान पर घमासान युद्ध हुआ जिसमें महमूद विजयी हुआ।

7. नगरकोट की विजय- महमूद ने काँगड़ा के दुर्ग नगरकोट पर आक्रमण किया। यहाँ ज्वालामुखी देवी के मन्दिर में अपार धन एकत्र था। महमूद ने दुर्ग को (1009 ई.) में घेर लिया और थोडे से प्रतिरोध के बाद ही हिन्दुओं ने आत्मसमर्पण कर दिया। महमूद को विपुल धन प्राप्त हुआ।

8. मुल्तान पर आक्रमण- सन् 1010 ई. में महमूद ने मुल्तान पर पुनः आक्रमण किया क्योंकि दाऊद ने स्वतन्त्र होने का प्रयास किया था। महमूद ने दाऊद पर पुन: विजय प्राप्त की।

9. त्रिलोचनपाल पर आक्रमण- आनन्दपाल की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र त्रिलोचनपाल राजा बना। महमूद ने उस पर आक्रमण किया। राजा त्रिलोचनपाल कश्मीर भाग गया। महमूद ने वहाँ भी उसका पीछा किया। महमूद ने त्रिलोचनपाल और कश्मीर की सेनाओं को पराजित किया। परन्तु महमूद ने कश्मीर के अंदरूनी भागों में प्रवेश करना उचित नहीं समझा।

10. थानेश्वर पर आक्रमण- 1014 ई. में महमूद ने थानेश्वर पर आक्रमण किया। हिन्दुओं ने महमूद का सामना किया, परन्तु वे पराजित हुए।

11. कश्मीर पर आक्रमण- 1015 ई. में महमूद ने कश्मीर पर आक्रमण किया था, परन्तु वह सफल नहीं हुआ। 1021 ई. में उसने पुनः कश्मीर पर आक्रमण किया और इस बार भी वह सफल नहीं हुआ। अतः महमूद ने कश्मीर-विजय का प्रयत्न त्याग दिया।

12. मथुरा पर आक्रमण-1018 ई. में महमूद गजनवी ने मथुरा को लूट कर अपार सम्पति प्राप्त की। मथुरा के पश्चात् महमूद ने वृन्दावन को लूटा।

13. कन्नौज पर आक्रमण- मथुरा को लूटने के बाद महमूद कन्नौज की ओर बढ़ा। कन्नौज के राजा जयचन्द ने आत्मसमर्पण कर दिया और महमूद की अधीनता स्वीकार कर ली। वहाँ उसने मन्दिरों और नगरों को लूटा।

14. कालिन्जर पर आक्रमण- 1019 ई. में महमूद ने कालिन्जर पर आक्रमण किया। यहाँ उसका कडा मुकाबला हुआ, परन्तु अन्त में सफलता महमूद को प्राप्त हुई।

15. ग्वालियर पर आक्रमण- 1022 ई. में महमूद ने ग्वालियर पर आक्रमण किया। ग्वालियर के राजा ने महमूद की अधीनता स्वीकार कर ली। इसके बाद महमूद ने पुनः कालिन्जर पर आक्रमण किया। राजा ने महमूद से सन्धि कर ली और बहुमूल्य उपहार देकर उसे विदा किया।

16. सोमनाथ पर आक्रमण- महमूद का सबसे प्रसिद्ध आक्रमण 1025 ई. में सोमनाथ के मन्दिर पर था। सोमनाथ मन्दिर की रक्षा के लिए, हिन्दू चारों ओर से आकर जमा हो गये। महमूद का प्रतिरोध किया गया, परन्तु महमूद के सैनिक मन्दिर में प्रवेश करने में सफल हो गये। भीषण नरसंहार हुआ। महमूद के सैनिकों ने मन्दिर की सम्पत्ति को लूटा। अपार सम्पति लेकर महमूद गजनी लौट गया।

17. जाटों पर आक्रमण- महमूद का अन्तिम आक्रमण 1027 ई. में मुल्तान के जाटों और खोखरों पर हुआ। सोमनाथ से वापस लौटते हुए जाटों ने महमूद की सेना को तंग किया था। इसी का बदला लेने के लिए उसने उन पर आक्रमण किया। महमूद ने जाटों और खोखरों को पराजित किया। अनेक लोग युद्ध में मारे गये अथवा दास बना लिए गये। 30 अप्रैल, 1030 ई. को महमूद की मृत्यु हो गई। इस तरह भारतवर्ष को इस आक्रमणकारी से मुक्ति मिली।

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