चालुक्य वंश Chalukya Dynasty
चालुक्य वंश
छठीं से आठवीं शताब्दी ईसवी तथा दसवीं से बारहवीं शताब्दी ईसवी तक चालुक्य वंश दक्षिण में एक शक्तिशाली वंश था। इन चालुक्य राजाओं की तीन शाखाएँ थीं-
1. वातापि के चालुक्य।
2. कल्याणी का उत्तरकालीन चालुक्य वंश।
3. वेगी के पूर्वी चालुक्य वंश।
वातापि के चालुक्य- पुलकेशिन प्रथम इस वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक था। वह रणराज का पुत्र और जयसिंह का पौत्र था। उसने वातापि (वादामी-बीजापुर जिले में) में दुर्ग बनवा कर इसे अपनी राजधानी बनाया। उसने 535 ई. से 566 ई. तक राज्य किया। 567 ई. में कीर्तिवर्मा शासक हुआ। कीर्तिवर्मा के पश्चात् उसका भाई मंगलेश गद्दी पर बैठा। मंगलेश और कीर्तिवर्मा के पुत्र पुलकेशिन द्वितीय के बीच गृहयुद्ध छिड़ गया। इसमें पुलकेशिन द्वितीय विजयी हुआ और मंगलेश मारा गया।
पुलकेशिन द्वितीय (610-642 ई.)- पुलकेशिन प्रथम इस वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक था। उसका सबसे बड़ा कार्य उत्तर भारत के महान् सम्राट् हर्षवर्धन को पराजित करना था। इस पराजय से हर्ष का राज्यविस्तार दक्षिण में बढ़ने से रुक गया और हर्ष की प्रतिष्ठा को बड़ा धक्का लगा। उसने गुर्जरों को भी हराया तथा कलिंग और गुजरात को भी कर देने पर विवश किया। परन्तु पुलकेशिन द्वितीय को पल्लव राजा नरसिंह वर्मा ने तीन युद्धों में पराजित किया और अन्तिम युद्ध में पुलकेशिन द्वितीय वीरगति को प्राप्त हुआ।
पुलकेशिन द्वितीय के बाद भी कई प्रसिद्ध राजा हुए जिनमें विकम्रादित्य प्रथम (655-681 ई.), विक्रमादित्य द्वितीय (734-757 ई.) उल्लेखनीय हैं। इनका पल्लवों से युद्ध चलता रहा। कीर्तिवर्मा द्वितीय को राष्ट्रकूट राजा दन्तिदुर्ग ने पराजित कर दिया और चालुक्यों के राज्य पर राष्ट्रकूटों का अधिकार हो गया।
कल्याणी का उत्तरकालीन चालुक्य वंश- इस वंश का प्रथम शासक तैल या तैलप द्वितीय (973-997 ई.) था। इसकी राजधानी मान्यखेत थी। इसने चालुक्य वंश की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुन: स्थापित किया। अगले शासक सोमेश्वर प्रथम ने अपनी राजधानी मान्यखेत से हटाकर कल्याणी को बनाया और इसी से यह वंश कल्याणी का चालुक्य वंश कहलाया। इसने अपने राज्य का विस्तार किया। कौशल और कलिंग इसके राज्य में शामिल थे। चोल राजा राजेन्द्र द्वितीय ने इसे युद्ध में पराजित किया। अत: उसने 1068 ई. में करूवती के पास तुंगभद्रा नदी में डूबकर महायोग को प्राप्त किया। विक्रमादित्य षष्ठ और सोमेश्वर तृतीय अन्य शासक हुए। विक्रमादित्य ने शक संवत् का प्रयोग बंद करके विक्रम चालुक्य संवत शुरू किया। इसके दरबार में विल्हण ने विक्रमांकदेवचरित् की रचना की। मिताक्षरा का लेखक विज्ञानेश्वर उसी के दरबार में रहता था। सोमेश्वर तृतीय के समय होयसल शासक विष्णुवर्द्धन ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। इसने अभिलाषीतार्थ चिन्तामणि या मनसोल्लास की रचना की। अत: इसे सर्वज्ञ के नाम से जाना जाता है। तैलप तृतीय इस वंश का अन्तिम शासक था जिसे उसके सेनापति बिज्जल ने हराकर गद्दी पर अपना अधिकार कर लिया। प्रान्तीय शासकों ने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और चालुक्य राज्य के स्थान पर होयसल, यादव तथा काकतीय तीन वंशों ने क्रमशः द्वारसमुद्र, देवगिरि तथा वारंगल में अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित किये।
वेंगी का पूर्वी चालुक्य वंश- पुलकेशिन द्वितीय का भाई विष्णुवर्धन चालुक्य वंश का संस्थापक था। इसने 615 से 633 ई. तक राज्य किया इसकी राजधानी वेंगी थी। इसके पश्चात् जयसिंह प्रथम (633-663 ई.), इन्द्रवर्मा (केवल एक सप्ताह) और विष्णुवर्धन द्वितीय (663-672 ई.) राजा बने। विष्णुवर्धन द्वितीय के पुत्र मेगी युवराज ने (672-696 ई.) तक राज्य किया। जयसिंह द्वितीय (696-709 ई.) उसका उत्तराधिकारी बना। उसके बाद उसका छोटा भाई कोकुलि विक्रमादित्य शासक बना। उसे परास्त कर उसके बड़े-भाई विष्णुवर्धन तृतीय (709-746 ई.) ने राज्य किया। अन्य शासक विजयादित्य प्रथम (746-764 ई.), विजयादित्य द्वितीय (799-843 ई.), विजयादित्य तृतीय (844-888 ई.), भीम प्रथम (888-918 ई.), भीम तृतीय (934-945 ई.), विक्रमादित्य षष्ठ (948-970 ई.) हुए। 973 से 1003 ई. तक पूर्वी चालुक्यों के राज्य का प्रशासन सम्भवत: चोलों ने चलाया। इसके पश्चात् शक्तिवर्मा (1003-1015 ई.), विष्णुवर्धन अष्टम (1020-1063 ई.) और कुलोत्तुंग चोलदेव (1063-1118 ई.) शासक हुए।