उत्तर भारत के राज्य: राजपूत काल The North Indian State: Rajput Period
जिस कन्नौज को सम्राट् हर्ष ने अपनी राजधानी बनाकर गौरवान्वित किया था उसी का इतिहास हर्ष की मृत्यु के बाद धूमिल हो गया। परन्तु यह स्थिति बहुत समय तक नहीं रहने पाई। कन्नौज के विगत वैभव से साम्राज्य-निर्माण के इच्छुक राजाओं को उत्साह प्राप्त होता था, अत: यशोवर्मन ने कन्नौज पर अधिकार करके उसके पूर्व गौरव को पुनर्जीवित किया। यशोवर्मन के वंश और उसके प्रारम्भिक जीवन के विषय में हमें कोई सुनिश्चित बात नहीं मालूम। परन्तु उसकी राजसभा के प्राकृत कवि वाक्पतिराज ने काव्य गौड़वहो लिखा, जिससे उसके विषयों और सैन्य-सफलताओं के विषय में काफी महत्त्वपूर्ण सामग्री प्राप्त होती है। हाँ, यह अवश्य है कि चूंकि गौड़वहो एक काव्य-ग्रन्थ है, अतएव इसमें वर्णित तथ्यों को हम विवेक तथा समालोचनात्मक बुद्धि का आश्रय ग्रहण करके ही सत्य स्वीकार करते हैं।
वाक्पतिराज के काव्य गौड़वहो के नाम से अभिप्राय निकलता है कि इस ग्रन्थ में यशोवर्मन द्वारा गौड़-विजय का वर्णन किया गया है, परन्तु वास्तविकता यह है कि इसमें यशोवर्मन की अन्य सैनिक सफलताओं का भी विस्तार के साथ वर्णन किया गया है। गौड़-विजय का अन्त में केवल उल्लेख भर कर दिया गया है। पूर्व में यशोवर्मन बंगाल तक अपनी विजयवाहिनी लेकर गया और गौडाधिपति को युद्ध में पराजित कर दिया। यह जान लेना आवश्यक है कि इस समय तक अनुवर्ती गुप्त नरेशों की शक्ति, जिनके राज्य की स्थापना आदित्यसेन गुप्त ने की थी, काफी क्षीण हो गई थी। गौड्-शक्ति के पूर्व-संक्रमण से मगध के गुप्त राजकुल का विनाश हो गया और मगध के राज्य पर गौड़ों का अधिकार हो गया। अतएव जब यशोवर्मन ने बंगाल तक अपनी विजय-सेना की यात्रा कराई और गौड़ाधिपति को युद्ध में हराया तो स्वभावतः मगध राज्य पर भी उसका अधिकार हो गया। यशोवर्मन की पूर्वविजय की पुष्टि एक स्वतन्त्र साक्ष्य द्वारा भी हो जाती है। नालन्दा में एक अभिलेख प्राप्त हुआ है जो यशोवर्मन का उल्लेख एक सर्वशक्तिमान सम्राट् के रूप में करता है। इसका यह अर्थ निकाला जा सकता है की उसकी राजसत्ता मगध तक विस्तृत थी। अतएव हम यह विश्वास कर सकते हैं की अपनी विजय यात्रा के सम्बन्ध में यशोवर्मन पूर्व में बंगाल तक गया और गौड़-नरेश को पराजित करने का यशोपार्जन किया।
यद्यपि यशोवर्मन और कश्मीर नरेश ललितादित्य ने एक सत्कार्य के लिए एक-दूसरे से सहयोग किया था और अरबों के प्रसार को रोकने में वे सफल गये तथापि उनकी मैत्री अधिक दिनों तक टिक नहीं सकी। उन दोनों ही युद्ध छिड़ गया और कुछ समय के लिए उन दोनों में सन्धि हो गई, फिर भी उनमें पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता की भावना के कारण विग्रह की प्रवृत्ति बलवती हो गई। युद्ध में यशोवर्मन की पराजय हो गई और राजतरंगिणी के अनुसार कान्यकुब्ज का राज्य, जिसकी सीमायें जमुना तट से लेकर कालिका तट तक थीं, ललितादित्य की अधीनता में, उसके घर के आंगन के रूप में हो गया। यशोवर्मन के राज्य पर ललितादित्य का अधिकार हो गया। युद्ध में पराजित हो जाने पर यशोवर्मन की शक्ति बिल्कुल नष्ट-भ्रष्ट हो गई और उसका यश का गौरव लुप्त हो गया। यशोवर्मन के शासन-काल को बिल्कुल असन्दिग्ध रूप में निश्चित नहीं किया जा सकता परन्तु कतिपय विद्वानों ने 690 ई. से लेकर 740 सन् ई. तक के समय को उसका शासन-काल निर्धारित किया है।