राजपूत राज्यों में कला Art in the Rajput States
राजपूत राजा महान् निर्माता थे। उन्होंने अनेक मन्दिर, किले, बाँध, जलाशय और स्नानागार बनवाए। वास्तुकला की अनेक शैलियों का विकास हुआ। मूर्ति-कला के क्षेत्र में भी उन्नति हुई। राजपूत राजाओं ने मन्दिर बनवाने में अपार धन खर्च किया। बुन्देलखण्ड में खजुराहो-मन्दिर-समूह कला की एक महान् कृति है। इस में आरम्भ में 85 मन्दिर थे जिनका निर्माण चन्देल राजाओं ने 950 और 1050 ई. के बीच किया। खजुराहो के सुप्रसिद्ध मन्दिरों में कन्दरिया महादेव का चतुर्भुज का मन्दिर एवं पार्श्वनाथ का मन्दिर मुख्य हैं। खजुराहों के मंदिरों में मंडप और गर्भगृहत को जोडने वाले तथा अर्द्ध मण्डप तथा गर्भगृह प्राय: सभी में एक ही प्रकार के हैं। कुछ मन्दिरों में मण्डप और गर्भगृह को जोडने वाले अन्तराल भी बने हैं। खजुराहों की कुछ स्थापत्य कृतियां अनुपम हैं। उदाहरण के लिए, पैर से कांटा निकलती हुई एक नायिका, एक प्रसधान्रत नायिका और आलस नायिका आदि। मध्य भारत के खाजुत्रहो के मंदिरों के अतिरिक्त पश्चिम भारत में उत्कृष्ट मंदिरों का निर्माण हुआ। इनमें सर्वाधिक प्रसिद्द आबू पर्वत के जैन मंदिर हैं। चंदेल राजाओं के प्रोत्साहन से खजुराहों का कला के क्षेत्र में महत्व बहुत बढ़ गया और उड़ीसा के बाद इसी कला शैली की प्रधानता रही। यहाँ पर शैव, वैष्णव और जैन लोगों की धार्मिक निष्ठा और उत्साह ने मंदिर-निर्माण को बड़ा प्रोत्साहन दिया।
उड़ीसा के भुवनेश्वर में अनेक मंदिरों का निर्माण हुआ। भुवनेश्वर में लिंगराज का मंदिर हिन्दू कला का एक अच्छा उदाहरण माना जा सकता है। इसका विशाल शिखर 127 फीट ऊंचा है। उड़ीसा में जगन्नाथ मंदिर भी कला की एक अच्छी कृति है। पूरी से लगभग 20 मिल देय कोणार्क का सूर्यमंदिर हिन्दू निर्माण कला की एक उत्तम और अदभुत कृति है।
मंदिरों के निर्माण के साथ-साथ इस काल में मूर्ति निर्माण कला में भी प्रगति हुई। सूर्य, विष्णु, शिव, बुद्ध आदि की विभिन्न मुद्राओं में अनेक मूर्तियों का निर्माण किया गया। शिव-पारवती की सम्मिलित प्रतिमाएं, गणेश, कार्तिकेय औए जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों की मूर्तियां बनायीं गयी। तीर्थंकरों की मूर्तियों के साथ यक्ष और यक्षिणी को भी दर्शाया गया है। ये मूर्तियाँ, पठार के अतिरिक्त, मिट्टी, तांबा और कांसा की भी बनायीं गयी। इन मूर्तियों से हमें संगीत और नृत्य कला की प्रगति का भी अनुमान होता है। शिव को तांडव करते हुए दिखाया गया है। मूर्तियों के साथ बने मृदंग, एकत्र, बांसुरी इत्यादि वाद्ययंत्रों द्वारा संगीत कला का भी ज्ञान होता है।
एलोरा के कैलाशनाथ मंदिर की मूर्तियाँ अत्यंत मनोरम और आकर्षक है। एलिफैन्टा की मूर्तियाँ अपनी सौम्यता और स्वभाविकता के लिए विख्यात हैं। दक्षिण भारत में पल्लव राज्य के सिंह स्तम्भ बड़े ही आकर्षक है। मामल्लपुरम् के रथ-मन्दिरों में देवी-देवताओं तथा पशु-पक्षियों की मूर्तियाँ नयनाभिराम हैं।