संगम राज्यों का उदय Rise Of Sangam Kingdoms
ईसा पूर्व दूसरी सदी में सुदुर दक्षिण के लोग उच्च भागों में बसते थे, जो महापाषाण निर्माता कहलाते थे, उनका पता हमें उनकी यथार्थ बस्तियों से नहीं चलता है क्योंकि वे बहुत कम मिलते हैं बल्कि उनके कब्रों या समाधियों से चलता है। महापाषाण लोगों का जमाव पूर्वी आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में अधिक था। महापाषाण काल का आरंभ 1000 ई.पू. में हुआ था किन्तु कई मामलों में महापाषाण अवस्था 500 ई.पू. से 100 ई.पू. तक कायम रही। दक्षिण के महापाषाण युग की दो विशेषताएँ थीं- (1) यह लौह युग से जुड़ा हुआ था। (2) यह काले एवं लाल मृदभांडों के प्रयोग से जुड़ा हुआ था। अशोक के अभिलेखों में उल्लेखित चोल, पांड्य और केरल पुत्र शायद भौतिक संस्कृति की उत्तर महापाषणिक काल के लोग थे। वैसे संगम युग का समय 100 ई.पू. से 250 या 300 ई.पू. माना जाता है। भारत में कृषक बस्तियों के प्रसार की तीन अवस्थाएँ थीं-
प्रथम अवस्था- इस चरण में पहाड़ी ढलानों पर अविकसित खेती होती थी।
दूसरी अवस्था- प्रौद्योगिकी में पर्याप्त वृद्धि के साथ हल द्वारा खेती की जाने लगी। नदी घाटियों में खेती का प्रसार हुआ।
तीसरी अवस्था- इसमें गैर कृषक वर्ग का खेती में प्रवेश हुआ। इन वर्गों को मौसम, प्रबंधकीय क्षमता और कृषि उपकरणों का बेहतर ज्ञान था।
राज्यों का निर्माण- उत्पादन वृद्धि के साथ सुदूर दक्षिण में मुखिया तंत्र विकसित हुआ। मुखिया को पेरूमक्कन (श्रेष्ठ) और मुखिया पुत्र का कोमकन कहा जाता था। दक्षिण भारत में उत्पादन अधिशेष के साथ बहुत सारे सामन्त या सरदार अस्तित्व में आए। छोटे सरदारों को किलार, उससे बडे सरदार वेलिट और उससे बड़े सरदार को बेंतर कहा जाता था। आगे चलकर पाड्य, चोल और चर के तीन राज्य विकसित हुए, जो मुवेन्दर कहलाते थे। ऐसा प्रतीत होता है कि ई.पू. प्रथम सदी तक तीनों राज्य अस्तित्व में आ चुके थे। कलिंग के प्रसिद्ध शासक खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसने तमिल प्रदेश के तीन राज्यों (त्रमिलदेशसंघम) को पराजित किया।