संसद को ही मृत्युदंड समाप्त करने का अधिकार: सर्वोच्च न्यायालय Parliament to abolish the death penalty right: Supreme Court
मृत्युदंड पर विगतकुछ वर्षों से चल रही बहस को समाप्त करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला दिया कि फांसी की सजा समाप्त करने का अधिकार केवल संसद के पास ही है। न्यायालय के अनुसार, जब तक कानून में मृत्युदंड के प्रावधान कायम हैं, तब तक अदालतें वीभत्स अपराध के मामले में फांसी की सजा देती रहेगी। न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू तथा चंद्रमौली कुमार प्रसाद की खंडपीठ ने पत्नी और तीन बच्चों के एक हत्यारे की मौत की सजा कायम रखते हुए यह निर्णय दिया। गौरतलब है कि देश में मृत्युदंड पर काफी समय से बहस जारी है। इस सजा को बनाए रखा जाए या नहीं, इस मुद्दे पर सरकार एवं बुद्धिजीवियों की राय भिन्न है। समय-समय पर न्यायालय भी जघन्य अपराध की दशा में इसकी आवश्यकता पर अपनी सहमति जता चुका है। समाज के विभिन्न वर्गों के बुद्धिजीवी तथा समाजशास्त्री यह कहते हुए इसे समाप्त करने की वकालत कर चुके हैं कि जब मनुष्य किसी को जीवन नहीं दे सकता तो उसे समाप्त करने का अधिकार भी उसे नहीं होना चाहिए। लेकिन इसके बावजूद इस मुद्दे पर कोई सार्थक निर्णय नहीं लिया जा सका है। अब सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि फांसी को बरकरार रखने तथा समाप्त करने के मुद्दे पर अंतिम निर्णय संसद की ही करना है। ज्ञातव्य है कि विश्व के 139 देशों में मृत्युदंड की सजा समाप्त की जा चुकी है जबकि 96 देश इसे समाप्त कर चुके हैं और 34 देशों ने लंबे समय से इसका इस्तेमाल नहीं किया है। सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश चीन, भारत, यू.एस.ए. एवं इंडोनेशिया में मृत्युदंड जारी है। भारत में आखिरी बार वर्ष 2015 में याकूब मेनन को फांसी पर लटकाया गया था। संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत् राष्ट्रपति किसी भी दया याचिका पर किसी समय सीमा में निर्णय करने की बाध्य नहीं है। जैसाकि विदित है कि मृत्युदंड के लिए दोष सिद्ध व्यक्ति दया याचिका के द्वारा राष्ट्रपति से माफी की याचना कर सकता है। यह दया याचिका गृह मंत्रालय द्वारा ही राष्ट्रपति के पास भेजी जा सकती है, लेकिन गृह मंत्रालय ऐसी किसी याचिका को निर्धारित समय सीमा में भेजने को बाध्य नहीं है।