कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीड़न (रोकथाम और निषेध) अधिनियम, 2012 Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013
निजी एवं सार्वजनिक कार्यस्थलों पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से बचाने के उद्देश्य से संसद में लाया गया संशोधित महिलाओं का कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न (रोकथाम और निषेध) विधेयक 2012 राज्यसभा में 25 फरवरी, 2013 को पारित कर दिया गया। यह विधेयक लोकसभा में 3 अगस्त, 2012 को बिना किसी चर्चा के ही पारित कर दिया गया था। इस विधेयक में कार्यालय में कार्यरत महिला कर्मचारियों के अतिरिक्त मजदूरों को भी यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया गया है। अस्पतालों में इलाज के लिए आने वाली महिलाएं तथा कॉलेजों व विश्वविद्यालयों की छात्राओं व शोधकर्मियों को भी यौन उत्पीड़न से सुरक्षा का प्रावधान मूलतः 2010 में लाए गए मूल विधेयक में नहीं थे, किंतु संशोधित विधेयक में इन्हें भी विधेयक के दायरे में लाया गया है। प्रस्तावित अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं-
- इस कानून के तहत् कार्यस्थल पर लैंगिक टिप्पणी या किसी भी तरह के शारीरिक लाभ उठाने अथवा गलत तरीके से छूने की अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
- प्रस्तावित अधिनियम में शिकायतों की 90 दिनों की समय सीमा के अंदर जांच का प्रावधान किया गया है।
- प्रावधानों का उल्लंघन करने पर नियोक्ता पर 50 हजार रुपए तक के जुमाने का प्रावधान है।
- प्रस्तावित अधिनियम में घरों में काम करने वाली सहायिकाओं की भी शामिल किया गया है।
- इस कानून के अनुसार किसी भी 10 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले संगठनों में आतंरिक शिकायत समिति बनाए जाने का प्रावधान किया गया है।
- आंतरिक शिकायत समिति संगठित और असंगठित दोनों ही क्षेत्रों में लागू करना अनिवार्य होगा।
- अधिनियम के अनुच्छेद-14 के अनुसार यदि महिला की शिकायत दुर्भावनापूर्ण निकली या उसके भ्रामक दस्तावेज पेश किये तो उसे दण्डित किया जा सकता है।
- अधिनियम के अनुच्छेद-16 में यह प्रावधान किया गया है कि अभियुक्त की पहचान सार्वजनिक न हो, भले ही वह यौन उत्पीड़न अपराध का दोषी ही।
- जिन कंपनियों में 10 से कम कर्मचारी कार्य करते हैं वहां उस जिले का अधिकारी स्थानीय शिकायत समिति का गठन कर सकता है।
ध्यातव्य है कि कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन शोषण से सुरक्षा प्रदान करने का कार्य 15 साल तक सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए विशाखा दिशा-निर्देश से ही चलता रहा है। 15 साल के बाद सरकार ने महिलाओं को यौन सुरक्षा प्रदान करने के लिए कानून बनाने का निर्णय लिया है। उपर्युक्त अधिनियम में यौन शोषण को रोकने के लिए न केवल कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं, बल्कि दायरा भी विस्तृत किया गया है।