केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड Central Social Welfare Board

केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड की स्थापना 12 अगस्त, 1953 को भारत सरकार के एक प्रस्ताव द्वारा स्वैच्छिक संगठनों के माध्यम से महिलाओं, बच्चों एवं अपंगों के कल्याण कार्यक्रमों को लागू करने और समाज कल्याण गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से की गई थी। 1969 तक बोर्ड सरकार के एक अंग के रूप में कार्य करता रहा, तत्पश्चात् बोर्ड को वैधानिक दर्जा प्रदान करने के लिए इसे कपनी अधिनियम के अंतर्गत कल्याणकारी कपनी के तौर पर पंजीकृत किया गया। बोर्ड को दो जिम्मेदारियां सौंपी गई, एक तो समाज के वंचित वगों, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चे,को कल्याण सेवाएं प्रदान कराना, और दूसरी ओर, स्वैच्छिक संगठनों का भी देशव्यापी विकास करना जिनके माध्यम से यह सेवाएं उपलब्ध कराई जा सकें।

1954 में राज्यों और संघ क्षेत्रों में बोर्ड के कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए और कल्याणकारी सेवाओं के विस्तार तथा विकास में केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड की सहायता हेतु राज्य समाज कल्याण परामर्श बोर्ड स्थापित किए गए। राज्य बोडों की अनुशंसाओं पर विभिन्न योजनाओं के तहत स्वैच्छिक संगठनों को वित्तीय सहायता दी गई। वर्तमान में 32 राज्य बोर्ड हैं। झारखण्ड के राज्य बोर्ड का गठन हाल ही में किया गया है।

बोर्ड में एक 55 सदस्यों की सामान्य निकाय (जनरल बॉडी) तथा 15 सदस्यों वाली कार्यकारी समिति (एक्जीक्यूटिव कमेटी) होती हैं।

केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड के उद्देश्यः

1969 में कम्पनी अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत किए जाते समय केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड के निम्नलिखित उद्देश्यों का निर्धारण किया गया-

  1. समाज कल्याण के क्षेत्र में कार्य करने वाले स्वयंसेवी संगठनों के निर्माण को प्रोत्साहित करना।
  2. समाज कल्याण से सम्बन्धित संगठनों की आवश्यकताओं एवं अपेक्षाओं का समय-समय पर संरक्षण, शोध और मूल्यांकन के माध्यम से समुचित अध्ययन करना।
  3. समाज के कमजोर वगों, जैसे- महिलाओं, वृद्धों, विकलांगों, बच्चों, रोगियों, आदि के कल्याण से प्रेरित विभिन्न सामाजिक कल्याण सम्बन्धी गतिविधियों को प्रोत्साहित करना।
  4. विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं एवं पंचायती राज संस्थाओं को भारत सरकार द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के अनुरूप तकनीकी एवं वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना।
  5. अनुदान प्राप्त संगठनों के कार्यक्रमों एवं परियोजनाओं का मूल्यांकन करना।
  6. प्राकृतिक आपातकाल के समय राष्ट्र में कहीं भी सहायता पहुंचाने हेतु अपने संगठन के माध्यम से सहायता कार्यक्रमों का आयोजन करना।
  7. बोर्ड द्वारा बनाए गए समाज कल्याण से सम्बन्धित विभिन्न कार्यक्रमों एवं गतिविधियों के संचालन हेतु केन्द्रीय मंत्रालयों एवं राज्य सरकारों द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली सहायता में समन्वय करना।
  8. सामाजिक कार्य हेतु पहलकारी विभिन्न परियोजनाएं एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना और उन्हें आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान करना।

केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड का कार्यालय संगठन

केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड की स्थापना के समय (1953 में) इसके कार्यालय संगठन में मात्र6 सदस्य थे। इनमें एक सचिव, एक कार्यालय अधीक्षक, एक लेखाकार तथा तीन सहायक थे। किन्तु वर्तमान समय में बोर्ड का एक विशाल प्रशासनिक संगठन है। बोर्ड का अध्यक्ष इसका सर्वोच्च अधिकारी होता है तथा प्रशासनिक कार्यों के लिए भारत सरकार के उप-सचिव के स्तर के समतुल्य एक सचिव होता है। बोर्ड के प्रशासनिक कार्यों के सुचारू रूप से संचालन हेतु सम्पूर्ण संगठन को निम्नलिखित 9 संभागों में विभाजित किया गया है-


  1. सामाजिक-आर्थिक संभाग: इस संभाग का दायित्व बोर्ड द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रमों के संचालन की देख-रेख करना है।
  2. सघन कार्यक्रम संभाग: इस संभाग द्वारा 18 से 30 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं को माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक परीक्षाओं में प्रविष्ट होने के लिए सहायता की व्यवस्था की जाती है।
  3. परियोजना संभाग: इस संभाग द्वारा परिवार एवं बच्चों के कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रम, पोषण सम्बन्धी कार्यक्रम,बालवाड़ी कार्यक्रम, कामकाजी महिला छात्रावास परियोजनाओं एवं विभिन्न कार्यक्रमों से सम्बन्धित पुराने भवनों की मरम्मत हेतु अनुदान सम्बन्धी कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया जाता है।
  4. क्षेत्रीय परामर्श एवं निर्देशन संभाग: बोर्ड का यह संभाग के कार्यकरण पर सतत निगरानी रखने सम्बन्धी दायित्वों का वहन करता है।
  5. अनुदान संभाग: समाज कल्याण सम्बन्धी कार्यों में संलग्न स्वयंसेवी संस्थाओं एवं संगठनों की योजनावधि हेतु अनुदान इसी संभाग द्वारा स्वीकृत किए जाते हैं।
  6. आतंरिक नियंत्रण संभाग: यह संभाग देखता है कि बोर्ड द्वारा तैयार किए जाने वाले बजट में भारत सरकार द्वारा जारी किए गए दिशा-निर्देशों का समुचित पालन हो रहा है अथवा नहीं।
  7. वित्त एवं लेखा संभाग: इस संभाग का दायित्व बोर्ड के लिए आय एवं व्यय सम्बन्धी समस्त आहरण और वितरण सम्बन्धी कार्यों का संचालन करता है।
  8. प्रकाशन संभाग: या संभाग बोर्ड द्वारा प्रकाशित सोशल वेलफयर और समाज कल्याण-नामक क्रमशः अंग्रेजी एवं हिन्दी की पत्रिकाओं के प्रकाशन हेतु उत्तरदायी है।
  9. प्रशासन संभाग: इस संभाग द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रशासनिक एवं कार्मिक उत्तरदायित्वों, जैसे- कार्मिकों की भर्ती, पद-स्थापन, स्थानान्तरण, पदोन्नति, प्रशिक्षण, आदिका निर्वहन किया जाता है।

राज्य समाज कल्याण बोर्ड

समाज कल्याण कार्यक्रमों से सम्बंधित प्रशासनिक तंत्र प्रत्येक राज्य में उनकी संरचना एवं कार्यक्रम व्याप्ति की दृष्टि से भिन्न-भिन्न है। विभिन्न राज्यों में कई समाज कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रमों का संचालन विभिन्न विभागों द्वारा किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, बल अपराध को शिक्षा विभाग अथवा गृह विभाग अथवा समाज कल्याण विभाग द्वारा भी देखा जाता है। केन्द्र सरकार की भांति, राज्य सरकारें भी अपने-अपने राज्यों में स्वयंसेवी संगठनों को अनुदान देती हैं परन्तु समाज कल्याण क्षेत्र में उनकी क्रियाएं सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों पर ही आधारित होती हैं।

विभिन्न राज्यों एवं संघ शासित प्रदेशों में 32 राज्य बोर्ड हैं। इनकी अध्यक्षता अकार्यालयीय अध्यक्ष द्वारा होती है जो अधिकतर प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता होते हैं। बोर्ड में गैर-कार्यालयीय सदस्य होते हैं, जो सामान्यतः राज्य के प्रत्येक मुख्य जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं और आनुपातिक रूप से केंद्रीय बोर्ड और राज्य सरकार द्वारा नामित किए जाते हैं।

राज्य बोर्ड केंद्रीय बोर्ड को राज्य स्तर पर स्वैच्छिकता के प्रोत्साहन एवं स्वैच्छिक कार्यवाही को बल प्रदान करने के लिए नए कदम उठाने की सलाह देते हैं। राज्य बोर्ड स्वैच्छिक संगठनों द्वारा बोर्ड के कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने के मूल्यांकन के लिए एक अनुशंसित निकाय भी हैं।

राज्य बोर्डों की स्थापना पर खर्च होने वाला व्यय 50:50 के आधार पर होता है जिसमें 50 प्रतिशत सीएसडब्ल्यूबी द्वारा और शेष 50 प्रतिशत सम्बद्ध राज्य सरकार द्वारा वहन किया जाता है।

समाज कल्याण से सम्बद्ध कार्यक्रमों में राज्य स्तर पर एकरूपता लाने हेतु प्रत्येक राज्य में एकीकृत समाज कल्याण विभाग होना चाहिए। जो समाज कल्याण सम्बन्धी विषयों के संदर्भ में कार्य करे। तथापि समाज कल्याण एवं पिछड़े वर्गों के कल्याण के कार्यकारी तन्त्र अलग-अलग रखे जा सकते हैं क्योंकि पिछड़े वगों के कल्याण सम्बन्धी कार्यक्रम विकास के सम्पूर्ण क्षेत्र से सम्बन्ध रखते हैं और समाज कल्याण कार्यक्रमों से भिन्न प्रकार के होते हैं, जिसमें कल्याण का तत्व अधिक प्रबल होता है। इस समेकित विभाग द्वारा देखे जाने वाले विषय वही होने चाहिए जो केंद्र के समाज कल्याण विभाग के हों।

जिला स्तर पर समाज कल्याण सेवकों के विकास के निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण हेतु एक जिला समाज कल्याण अधिकारी होना चाहिए। वर्तमान समय में जहां सम्भव हो, पंचायती राज संस्थाओं तथा नगरपालिका संगठनों का पूर्ण उपयोग कल्याण कार्यक्रमों को लागू करने की दिशा में किया जाना चाहिए। समाज कल्याण क्रियाएं सम्पादित करने हेतु स्पष्टतः निर्धारित कार्मिकों सहित इन संगठनों के अंतर्गत पृथक्-पृथक् खण्ड/अनुभाग होने चाहिए।

राज्य समाजकल्याण बोर्ड के कार्य

  • एक राज्य बोर्ड कै अध्यक्ष की नियुक्ति केंद्रीय समाज कल्याण बोर्ड के अनुमोदन पर सम्बद्ध राज्य सरकार करती है। इसलिए, अध्यक्ष की उत्प्रेरक के तौर पर केंद्रीय बोर्ड, राज्य बोर्ड और राज्य सरकार के बीच एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है।
  • अध्यक्ष के निर्देश के तहत् राज्य बोर्ड को ऐसा तंत्र विकसित करना चाहिए जिससे सम्बद्ध राज्य सरकार के विभागों-सामाजिक कल्याण, महिला एवं बल विकास, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, शिक्षा इत्यादि,-के साथ प्रभावी एवं नियमित समन्वय हो सके।
  • स्वैच्छिक संगठनों के प्रस्तावों को अनुशंसित करते समय, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि राज्य के सभी जिलों का संपूर्ण प्रतिनिधित्व हुआ है और सुदूरवर्ती और दुर्गम क्षेत्रों या निम्न महिला एवं बल विकास संसूचकों तथा अन्य जिलों, जहाँ तुरंत हस्तक्षेप किए जाने की जरुरत हो, पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
  • राज्य बोर्ड में जिलों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व होना चाहिए, यदि किसी कारणवश कुछ जिले प्रतिनिधित्व नहीं करते तो इन्हें पास के जिलों के सदस्य को सौंपा जाना चाहिए।
  • अध्यक्ष को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी कार्यक्रमों के अंतर्गत उप-समितियों में सदस्यों और साथ ही फील्ड ऑफिसर्स का प्रतिनिधित्व इस प्रकार होना चाहिए कि उनसे नियमित गुणात्मक आगत प्राप्त हो सके।
  • यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बोर्ड की पूर्ण बैठक प्रत्येक तीन महीने के अंतराल पर नियमित रूप से आयोजित की जानी चाहिए। वित्त समिति की बैठक प्रत्येक 2 माह के नियमित अंतराल पर बुलायी जानी चाहिए और वितीय निहितार्थ के सभी प्रशासनिक मामलों को वित्तीय समिति के समक्ष इसके अनुमोदन हेतु प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • राज्य बोर्ड को सुनिश्चित करना चाहिए वित्त समिति के गठन में राज्य सरकार के वित एवं प्रशासन विभाग का प्रतिनिधित्व है।
  • वित्त समिति से अनुमति मिलने के पश्चात्, राज्य बोर्ड का अध्यक्ष बोर्ड के कर्मचारियों की आय और प्रोत्साहनों का अनुमोदन करेगा।
  • अध्यक्ष वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगा और इसे केंद्रीय बोर्ड और राज्य सरकार को सौंपेगा। यह रिपोर्ट प्रस्तुत किए जाने वाली तिथि से 30 दिनों के भीतर सम्बद्ध अधिकारियों तक पहुंच जानी चाहिए।
  • राज्य बोर्डों के बेहतर निष्पादन तथा राज्य में वंचित महिलाओं एवं बच्चों के कल्याण हेतु केंद्रीय बोर्ड के अनुमोदन सहित कोई अन्य कार्य अध्यक्ष करता है।

समाज कल्याण का कार्यक्षेत्र अत्यंत व्यापक है और चूंकि राज्य सरकार ने अपने को मुख्य रूप से सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम तक ही सीमित रखा है, इसलिए कार्य स्वयंसेवी कल्याण संगठनों द्वारा ही किए जाते हैं। इनमें से जो संगठन दीर्घकालिक प्रकार के हैं वे राज्य समाज कल्याण द्वारा अनुदान प्राप्त करते हैं। इनमें से परामर्शदाता बोर्ड प्रत्यक्ष रूप से केन्द्रीय समाज कल्याण बार्ड से सम्बन्धित होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *