अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन Administration in Scheduled and Tribal Areas
अनुसूचित क्षेत्र
संविधान के अनुच्छेद 244(1) के अंतर्गत असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम से भिन्न राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों कहे जाने वाले कुछ क्षेत्र (फिर चाहे ये क्षेत्र किसी राज्य में हों अथवा संघ शासित क्षेत्र में) के प्रशासन हेतु कुछ विशेष प्रावधान किए गए हैं। ऐसा इन क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों के पिचादेप्न को अधर बना कर किया गया है। किसी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने का अधिकार संविधान द्वारा राष्ट्रपति को प्रदान किया गया है, किंतु ऐसा वह संसद द्वारा पारित विधान के अधीन रहते हुए ही कर सकता है। इसके अतिरिक्त वह किसी भी समय किसी भी क्षेत्र के अनुसूचित क्षेत्र के स्तर को समाप्त कर सकता है। अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन से सम्बन्धित विशेष प्रावधान संविधान की पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत किए गए हैं।
अनुसूचित क्षेत्रों का प्रशासन
अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के सम्बन्ध में संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार इन क्षेत्रों से सम्बन्धित राज्यों को प्रशासन सम्बन्धी आवश्यक निर्देश देने तक ही होगा। अनुसूचित क्षेत्र वाले राज्य का राज्यपाल प्रतिवर्ष अथवा मांगे जाने पर उक्त राज्य के अनुसूचित क्षेत्र के प्रशासन सम्बन्धी अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करेगा। वह चाहे तो सम्बन्धित राज्य के राज्यपाल से विचार-विमर्श करके किसी भी अनुसूचित क्षेत्र के क्षेत्रफल में वृद्धि कर सकता है, उनके सीमा क्षेत्र में परिवर्तन कर सकता है तथा उसके पुनर्निर्धारण के आदेश प्रेषित कर सकता है।
राज्यपाल की कानून निर्माण संबंधी शक्तियां
राज्यपाल को यह प्राधिकार है कि वह कभी भी संबद्ध क्षेत्र में कल्याण एवं शांति हेतु निर्देश दे सकता है। वह अनुसूचित क्षेत्र के लोगों के बीच परस्पर भूमि के आदान-प्रदान या स्थानांतरण पर प्रतिबंध लगा सकता है। वह भूमि के आबंटन पर नियंत्रण संबंधी निर्देश दे सकता है। वह उन व्यावसायिकों व ऋणदाताओं को इन क्षेत्रों के अनुसूचित जनजातियों के लोगों को उधार न देने संबंधी कानून बना सकता है। इसके अतिरिक्त वह राष्ट्रपति की सहमति से संसद या विधान सभा द्वारा आरोपित, कुछ समय के लिए प्रभावी कानून को संशोधित कर सकता है या समाप्त कर सकता है।
वस्तुतः राज्यपाल द्वारा किसी भी प्रकार के कानून निर्माण इत्यादि के लिए राष्ट्रपति की अनुमति अत्यंत आवश्यक है।
जनजातीय सलाहकार परिषद्
संविधानतः अनुसूचित क्षेत्र वाले राज्य की अनुसूचित जनजातियों के कल्याण एवं उन्नति संबंधी ऐसे विषयों पर परामर्श प्रदान करने हेतु, जो उसे राज्यपाल द्वारा निर्दिष्ट किए जाएं, जनजातीय सलाहकार परिषदों का गठन किया जाएगा (अनुसूची-V)। इस परिषद में 20 से अधिक सदस्य नहीं होंगे तथा जिनमें से तीन-चौथाई राज्य विधान सभा में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधि होंगे। यदि राज्य विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधियों की संख्या परिषद में भरे जाने वाले पदों की संख्या से कम होगी तो शेष पदों को उन क्षेत्रों के अन्य सदस्यों से भरा जाएगा। इस संबंध में राज्यपाल को निम्नलिखित नियम बनाने का प्राधिकार है-
- परिषद की सदस्य संख्या उनके अध्यक्ष व अन्य अधिकारियों की नियुक्तियों की विधि तथा नियम;
- परिषद की विभिन्न सभाओं का संचालन तथा सामान्यतः इसकी कार्य-प्रक्रिया, तथा;
- अन्य आकस्मिक विषयादि।
यह सलाहकारी परिषद राज्य में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण व विकास हेतु अपनी महत्वपूर्ण सलाह प्रदान करती है।
पांचवीं अनुसूची में संशोधन
संसद समय-समय पर इस अनुसूची के किसी भी प्रावधान को विधि द्वारा संशोधित व समाप्त कर सकती है। जब अनुसूची का इस प्रकार संशोधन किया जाता है तब इस संविधान में इस अनुसूची के प्रति किसी निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह इस प्रकार संशोधित ऐसी अनुसूची के प्रति निर्देश है। अनुच्छेद 368 के प्रयोजन के लिए इसे संविधान का संशोधान नहीं माना जाएगा।
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जनजातीय क्षेत्र
संविधान के अनुच्छेद-244(2) के अंतर्गत असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों के सम्बन्ध में व्यवस्था और उनके प्रशासन सम्बन्धी आवश्यक प्रावधानों का उल्लेख संविधान की 6वीं अनुसूची के अंतर्गत की गई है।
जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन
6वीं अनुसूची में वर्णित असम, मेघालय, त्रिपुरा एवं मिजोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्र स्वशासी जिले के रूप में प्रशासित किए जाएंगे। ये स्वशासी जिले राज्य सरकार के कार्यपालक प्राधिकार के बाहर तो नहीं हैं किंतु कुछ विधायी एवं न्यायिक कृत्यों के प्रयोग के लिए जिला परिषद एवं प्रादेशिक परिषदों के सृजन का प्रावधान किया गया है। ये परिषदें प्राथमिक रूप से पृथक् निकाय हैं और उन्हें कुछ विनिर्दिष्ट क्षेत्रों में विधान बनाने की शक्ति है, जैसे- आरक्षित वन से भिन्न वनों का प्रबन्ध, सम्पत्ति की विरासत, विवाह, सामाजिक रीति रिवाज, आदि। इसके अतिरिक्त इन परिषदों को भू-राजस्व के निर्धारण एवं संग्रहण की तथा कुछ विनिर्दिष्ट कर आरोपित करने की शक्ति भी प्राप्त है। इन परिषदों द्वारा बनाई गई कोई भी विधि राज्यपाल की अनुमति के बिना प्रभावी नहीं होगी।
जिन विषयों के सम्बन्ध में विधि निर्माण हेतु जिला एवं प्रादेशिक परिषदों को अधिकृत किया गया है, उन विषयों से सम्बन्धित राज्य विधानमण्डल द्वारा बनाए गए अधिनियम तब तक जनजातीय क्षेत्रों पर लागु नहीं होंगे जब तक कि सुसंगत जिला परिषद् एक लोक अधिसूचना जारी करके तत्सम्बन्धी निदेश जारी न करे।
जिला एवं प्रादेशिक परिषदों को न्यायिक, सिविल एवं दांडिक शक्तियां प्राप्त होंगी और वे उच्च न्यायालय की अधिकारिता के इस प्रकार अधीन होंगी जो राज्यपाल समय-समय पर विनिर्दिष्ट करे।
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