संघ शासित प्रदेशों का प्रशासन The Administration of Union Territories
भारतीय संविधान के भाग 8 में अनुच्छेद 239 से 241 संघ शासित प्रदेशों के प्रशासन से संबंधित प्रावधानों की व्याख्या करते हैं। इन प्रदेशों के प्रशासन को सुचारू ढंग से चलाने का दायित्व राष्ट्रपति को सौंपा गया है। इन प्रदेशों की संख्या सात है- दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, पुडुचेरी तथा चण्डीगढ़। इन क्षेत्रों का प्रशासन संसद द्वारा निर्मित नियमों पर आधारित होता है।
संघ शासित क्षेत्रों का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। राष्ट्रपति यह कार्य विभिन्न संघ शासित क्षेत्रों में प्रशासक की नियुक्ति करके करता है [अनुच्छेद-239(1)]। प्रशासकों के अधिकार एवं कर्तव्यों का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। इन प्रदेशों के प्रशासकों का पदनाम भी राष्ट्रपति द्वारा अलग-अलग निर्धारित किया गया है। उदाहरण के लिए चंडीगढ़, दमन और दीव, दादरा और नगर हवेली तथा लक्षद्वीप के लिए प्रशासक होते हैं, जबकि दिल्ली,पुडुचेरी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लिए उप-राज्यपाल होते हैं। संविधान के अनुच्छेद 239(2) में प्रावधान है कि राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल को किसी निकटवर्ती संघ शासित प्रदेश का प्रशासक नियुक्त कर सकता है। प्रशासक द्वारा अपने दायित्वों और कार्यों का निर्वहन मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप में किया जाता है। अतः प्रशासक राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में संघ शासित प्रदेश को प्रशासित करता है।
इन संघ शासित राज्यों के प्रशासन हेतु किसी अन्य व्यवस्था का निर्धारण संसद द्वारा विधि बनाकर किया जा सकता है। संघ शासित प्रदेशों का प्रशासक राज्यपाल के समकक्ष राज्य का अधिपति नहीं होता, अपितु वह राष्ट्रपति का अभिकर्ता (Agent) होता है।
विधान सभा और मंत्रिपरिषद
1962 में संविधान में अनुच्छेद-239(क) अंतःस्थापित करके संघीय संसद को यह शक्ति प्रदान की गई कि वह संघ राज्य क्षेत्रों हेतु विधानमण्डल अथवा मंत्रिपरिषद अथवा दोनों का सृजन कर सकेगी। इस शक्ति का प्रयोग करते हुए संसद ने संघ राज्य क्षेत्र अधिनियम, 1963 पारित करके जिनमें से कुछ संघ राज्य क्षेत्र राज्य बन गए (जैसे- मिजोरम, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, आदि)। अतः अब इस वर्ग में केवल दिल्ली और पुडुचेरी संघ राज्य क्षेत्र रह गए हैं।
संविधान के 69वें संशोधन द्वारा अंतःस्थापित अनुच्छेद-289क(क) तथा 239क(ख) 1 फरवरी, 1992 से प्रवृत्त हुए। इन उपबंधों के अनुसरण में दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम, 1991 का अधिनियम किया गया। इसके फलस्वरूप दिल्ली संघशासित प्रदेश में 1993 से विधानसभा एवं मंत्रिपरिषद हैं। दिल्ली सरकार को राज्य सूची के तीन विषयों को छोड़कर अन्य सभी विषयों पर कानून बनाने की शक्ति प्राप्त है। ये तीन प्रविष्टियां हैं- लोक व्यवस्था, पुलिस एवं भूमि।
विधायी शक्ति
संघ शासित प्रदेशों की विधायी शक्तियों के संबंध में संसद सर्वोपरि है। इसमें वे विषय भी सम्मिलित हैं जो राज्य-सूची से संबंधित हैं। दूसरे शब्दों में, संघ शासित प्रदेशों में शांति, प्रगति और प्रशासन के लिए राष्ट्रपति को कानून बनाने की शक्ति है। परंतु जब ऐसे प्रदेशों में विधान सभा होती है तब राष्ट्रपति इस तरह की शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता है। जैसे ही विधान मंडल विघटित या निलंबित हो जाता है, राष्ट्रपति पुनः सर्वशक्तिमान बन जाता है।
राष्ट्रपति की संघ शासित क्षेत्रों में विनियम बनाने की शक्ति
यह संघ राज्यक्षेत्रों की शांति, प्रगति और सुशासन के लिए विनियम बनाने की शक्ति है। राष्ट्रपति की यह शक्ति संसद की विधायी शक्ति का अध्यारोहण करती है क्योंकि इन राज्यक्षेत्रों के बारे में राष्ट्रपति द्वारा बनाया गया विनियम संसद के उस अधिनियम को निरसित या संशोधित कर सकता है जो तत्समय संघ राज्यक्षेत्र को लागू किया गया है [अनुच्छेद 240(2)]। किंतु जब ऐसे किसी राज्यक्षेत्र में विधान सभा कार्य करती है तब राष्ट्रपति की विनियम बनाने की शक्ति निलंबित रहेगी। विधान मंडल के विघटित या निलंबित किए जाने पर यह शक्ति जीवित हो जाएगी।
उच्च न्यायालय
संविधान के अनुच्छेद 241 के अनुसार, संसद कानून द्वारा किसी संघ शासित प्रदेश के लिए उच्च न्यायालय का गठन कर सकती है या किसी संघ शासित प्रदेश को किसी राज्य के उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार में रख सकती है। उदाहरण के लिए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय चण्डीगढ़ संघ शासित प्रदेश के उच्च न्यायालय के रूप में कार्य कर रहा है। इसी तरह लक्षद्वीप को केरल उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार में रखा गया है। अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह को कोलकाता उच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार में रखा गया है। इसी प्रकार पुडुचेरी, चेन्नई उच्च न्यायालय की अधिकारिता में है। दादरा और नगर हवेली, गोवा उच्च न्यायालय तथा दमन और दीव, मुंबई उच्च न्यायालय के अंतर्गत रखे गये हैं। दिल्ली का 1966 से ही एक पृथक् उच्च न्यायालय है।
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अर्जित राज्य क्षेत्र
संविधान में अर्जित राज्यक्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में पृथक् उपबंध नहीं हैं किंतु संघ राज्यक्षेत्र की परिभाषा के आधार पर इसके [अनुच्छेद 366(30)] अंतर्गत- पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट कोई संघ राज्यक्षेत्र है और इसके अंतर्गत ऐसा अन्य राज्यक्षेत्र है जो भारत के राज्यक्षेत्र में समाविष्ट है, किंतु उस अनुसूची में विनिर्दिष्ट नहीं है।
इस प्रकार पुडुचेरी, करायकल, यनम और माहे का भारत के राष्ट्रपति द्वारा मुख्य आयुक्त के माध्यम से प्रशासन किया जा रहा था। यह तब तक चलता रहा जब तक 1962 में वह संघ राज्यक्षेत्र नहीं बन गया। संघ राज्यक्षेत्रों के समान ही ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के बारे में संसद को विधान बनाने की व्यापक शक्ति है [अनुच्छेद 246(4)]।