स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर अभिसमय Convention on Persistent Organic Pollutants
इस अभिसमय पर 22 मई, 2001 की स्टॉकहोम में एकत्रित 90 देशों के अधिकारियों ने हस्ताक्षर किए। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व के कुछ सबसे घातक और विषैले रसायनों के उपयोग को नियंत्रित करना है। तथाकथित एक दर्जन खराब (dirty dozen) रसायनिक प्रदूषकों में कीटनाशक (pesticides) और डायोक्सीन सम्मिलित हैं, जिन्हें विश्वभर में मृत्यु और रोगों का एक प्रमुख कारण माना जाता है। ये बारह विषैले पदार्थ हैं- एल्ड्रिन, क्लोरडेन, डीडीटी, डेलड्रीन, एन्ड्रीन, हेप्टाक्लोर, मिरेक्स, टॉक्साफेन, पोलीक्लोरीनेटेड बायफिनौल (पीसीबी), हेक्साक्लोरोबीन-जेनी, डयोक्सीन और फुरान।
इन रसायनिक पदार्थों का उपयोग कीटनाशकों, अग्निशामकों तथा पेंट या प्लास्टिक के निर्माण में होता है तथा इनसे खतरनाक प्रभाव, जिनमें कैंसर रोग भी सम्मिलित है, उत्पन्न होते हैं। तथाकथित 12 स्थायी कार्बनिक प्रदूषक पदार्थ (पीओपी) वायु या समुद्री लहरों के माध्यम से विश्वभर में फैले होते हैं। यहां तक कि ये प्रदूषक तत्व आर्कटिक प्रदेशों की महिलाओं के दूध में में भी पाए गए हैं। ध्रुवीय भालुओं (polarbears) के उभयलिंगी (hermaphrodites) जंतुओं के रूप में परिवर्तित होने के लिये इन पदार्थों को उत्तरदायी माना जाता है।
वायुमंडल में एक बार प्रवेश पा लेने के बाद पीओपी वर्षों तक कभी-कभी दशकों तक, वायुमंडल में उपस्थित रहते हैं। इनके स्थायी रहने का कारण यह है कि इनका रासायनिक और जैविक ह्रास बहुत मन्द होता है। लेकिन ये रसायन वाष्प रूप में परिवर्तित होकर उन स्थानों तक पहुंच जाते हैं, जो इनके उद्गम स्थल से बहुत दूर होते हैं।
पीओपी का एक अन्य रासायनिक गुण इनकी जल में कम घुलनशीलता तथा वसा और तेल जैसे गैर-जलीय माध्यमों में उच्च घुलनशीलता है। गैर-जलीय माध्यमों में उच्च घुलनशीलता के कारण ये वसात्मक ऊतकों में शीघ्रता से जमा हो जाते हैं। मानवीय ऊतकों में पीओपी के जमा होने से उनकी अंतःस्रावी तथा तंत्रिका प्रणालियों पर घातक प्रभाव पड़ते हैं। पीओपी के जैविक-संकेन्द्रण से इनकी घातकता और बढ़ जाती है।
संधि इन विषैले रसायनों के उत्पादन, आयात, नियति, प्रबंधन और उपयोग पर नियंत्रण रखती है। इसने 12 रसायनों के आरम्भिक समूह, जिनमें अधिकांश पर तुरंत प्रभाव से प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, के संबंध में कठिन अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण स्थापित किया है। अभिसमय के अंतर्गत एक पीओपी समीक्षा समिति का गठन किया जायेगा, जो नियमित आधार पर अतिरिक्त पीओपी के संबंध में विचार करेगी। इससे संधि नई वैज्ञानिक खोजों के प्रति प्रतिक्रियाशील तथा गतिशील बनी रहेगी।
विश्व पीओपी अभिसमय पर यूएनईपी ढांचे के अंतर्गत चर्चा हुई तथा इसे दिसम्बर 2000 में जोहान्सबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) में 122 देशों के प्रतिनिधियों के द्वारा अंतिम रूप दिया गया। यह अभिसमय अभी तक प्रभाव में नहीं आया है।