बीजिंग महिला सम्मेलन Beijing Women’s Conference
सितम्बर 1995 में चीन की राजधानी बीजिंग में संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में चतुर्थ विश्व महिला सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन का लक्ष्य 1975 में मैक्सिको में आयोजित प्रथम संयुक्त राष्ट्र विश्व महिला सम्मेलन में औपचारिक रूप से शुरू की गयी प्रक्रिया को गति प्रदान करना था। मैक्सिको सम्मेलन में सौ से अधिक देशों के प्रतिनिधियों ने पुरुषों एवं महिलाओं में व्याप्त विषमताओं को मिटाने की दिशा में चल रहे सरकारी प्रयासों के मार्ग-दर्शन के लिये एक विश्व कार्य योजना का निर्धारण किया। 1976-85 के दशक को संयुक्त राष्ट्र महिला दशक के रूप में निर्दिष्ट किया गया था। इसका मूल उद्देश्य विश्वभर में महिलाओं के अधिकारों और स्थिति का परीक्षण करना तथा सभी स्तरों पर उन्हें निर्णयकारी प्रक्रिया में शामिल करना था। इस दशक के मध्य में, अर्थात् 1980 में, कोपेनहेगेन (डेनमार्क) में द्वितीय संयुक्त राष्ट्र विश्व महिला सम्मेलन आयोजित हुआ। संयुक्त राष्ट्र महिला दशक की उपलब्धियों के विश्लेषण के उद्देश्य से वर्ष 1985 में नैरोबी (केन्या) में तृतीय संयुक्त राष्ट्र विश्व महिला सम्मेलन आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन में महिला उत्थान हेतु नैरोबी प्रगतिशील रणनीति को अपनाया गया, जिसे वर्ष 2000 तक क्रियान्वित होना था।
बीजिंग सम्मलेन में कार्य योजना घोषणा पत्र (Platform for Action–PFA) को अपनाया गया, जो महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभावों को समाप्त करने हेतु अभिसमय (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women–CEDAW) तथा संयुक्त राष्ट्र महासभा तथा आर्थिक एवं सामाजिक विकास संगठन (ECOSCO) द्वारा अपनाये गये प्रासंगिक प्रस्तावों को अनुमोदित करता है। पीएफए महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए प्राथमिक महत्व वेले कार्यों का समूह निर्धारित करता है, जिसका अगले पांच वर्षों में सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों तथा संस्थाओं द्वारा सभी स्तरों पर क्रियान्वयन होता है। पीएफए यह स्वीकार करता है कि, (i) बालिका शिशु और महिलाओं के मानवाधिकार सार्वभौमिक मानवाधिकारों के अभिन्न और अहरणीय भाग हैं, तथा; (ii) सभी देशों, चाहे उनकी राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक प्रणालियां कुछ भी हो, का यह दायित्व होता है कि वे सभी मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता की रक्षा करें। पीएफए महिलाओं के सशक्तीकरण के लिये अग्रलिखित कुछ क्षेत्रों में कदम उठाने की अनुशंसा करता है- महिलाओं पर गरीबी की मार को कम करना; उनकी शैक्षणिक स्थिति में सुधार लाना; उनके स्वास्थ्य में सुधार लाना तथा महिलाओं के प्रति हिंसा के विरुद्ध कार्य करना; विवादों को समाप्त करने में महिलाओं की भागीदारी की बढ़ाना एवं मजबूत करना, तथा; आर्थिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना; अधिकार-संरचना और निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की पूर्ण और एकसमान भागीदारी सुनिश्चित करना तथा सभी विधानों, लोक नीतियों, कार्यक्रमों और परियोजनाओं में लिंग परिप्रेक्ष्यों को एकीकृत करना; अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संधियों के अनुमोदन को प्रोत्साहित करना और उनके क्रियान्वयन को गतिशील बनाना; मीडिया में महिलाओं के निरूपण में सुधार लाना तथा सूचना और मीडिया क्षेत्रों में समानता के आधार पर महिलाओं की पहुंच को सुनिश्चित करना; पर्यावरण संबंधी नीतियों में लिंगात्मक पहलुओं को एकीकृत करना, तथा; बालिका शिशुओं के अधिकारों को स्वीकार करना तथा उनके प्रति भेदभावों को समाप्त करना। लेकिन बीजिंग सम्मेलन में महिलाओं के यौन तथा पुनर्जनन (sexualand reproductive) अधिकारों तथा उत्तराधिकार से सम्बंधित अधिकारों (inheritance rights) पर सहमति नहीं हो सकी।
पीएफए के क्रियान्वयन का आकलन करने के लिये जून 2000 में न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा का एक विशेष सत्र आयोजित किया गया। इस सत्र का शीर्षक था- महिला 2000: बीसवीं सदी के लिये समानता, विकास और शांति। इस सत्र द्वारा अपनाये गये अंतिम परिणाम दस्तावेज (OutcomeDocument) में भूमंडलीकरण के महिलाओं पर प्रभाव विषय पर विस्तार से चर्चा की गई। पीएफए में इस विषय का बहुत संक्षिप्त विवरण था। परिणाम दस्तावेज कहता है कि, आर्थिक भुमंदालिकरण के लाभों का असमान वितरण हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप आर्थिक विषमताएं उत्पन्न हुई हैं तथा गरीबी का महिलाकरण हुआ है। साथ ही, इसने असुरक्षित तथा पतनशील कार्य दशाओं को जन्म दिया है, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों तथा अनौपचारिक आर्थिक क्षेत्रों में। दस्तावेज के अनुसार, जहां एक ओर भूमंडलीकरण ने कुछ महिलाओं को अधिक आर्थिक अवसर और स्वायत्तता प्रदान की है, वहीं दूसरी ओर इसने देशों के भीतर और मध्य गहरी होती जा रही असमानताओं के माध्यम से कई अन्य महिलाओं को दरकिनार कर दिया हैं।
इस दस्तावेज में ऋण परिचर्या अनुपात की ऊंची दर अंतरराष्ट्रीय व्यापार की घटती शर्तों तथा विकसित देशों द्वारा सकल राष्ट्रीय उत्पादन (जीएनपी) के 0.7 प्रतिशत को राजकीय विकास सहायता की मद में व्यय करने के लक्ष्य को पूरा न करना आदि गरीबी के महिलाकरण के मुख्य कारण बताये गये हैं। दस्तावेज क्रियान्वयन की प्रक्रिया में गति लाने के लिये समयबद्ध लक्ष्यों की स्थापना प्रभावशाली विश्लेषण प्रणाली और सभी बजटीय प्रक्रियाओं में लिंगात्मक पहलुओं को सम्मिलित करने पर बल दिया गया है।
दस्तावेज में पहली बार वृहत आर्थिक (macro-economic) निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं को समान साझेदारी, संपत्ति के अधिकार और उत्तराधिकार, शरण प्रदान करने के लिए लिंग-सम्बन्धी आधार, पुरुष एवं महिला प्रवाशियों के मध्य समानता, देशी महिलाओं की विशिष्ट जरुरतों और अधिकारों को स्वीकृति तथा राजनीतिक दलों एवं संसदों में महिलाओं की साझेदारी बढ़ाने के लिये आरक्षण और अन्य उपायों जैसे मुद्दों पर विचार किया गया है।