पन्द्रह देशों का समूह Group of 15 – G-15
शिखर सम्मलेन स्तर का यह समूह दक्षिण-दक्षिण सहयोग तथा उत्तर-दक्षिण संवाद विकसित करने के लिये विश्व के अनेक विकासशील देशों को एक मंच पर लाता है।
सदस्यता: अल्जीरिया, अर्जेंटीना, ब्राजील, चिली, मिस्र, भारत, इंडोनेशिया, ईरान, जमैका, केन्या, मलेशिया, मेक्सिको, नाइजीरिया, सेनेगल, श्रीलंका, वेनेजुएला और जिम्बाब्वे।
उद्भव एवं विकास
पन्द्रह देशों के समूह (जी-15) का गठन 1989 में बेलग्रेड में आयोजित नवें गुट-निरपेक्ष शिखर सम्मलेन के दौरान तृतीय विश्व के लिए एक उत्प्रेरक की भूमिका निभाने के लिए एक कार्यशील समूह के रूप में हुआ। इस समूह के गठन के पीछे मुख्य उद्देश्य थे- विश्व के अग्रणी विकासशील देशों के बीच सहयोग की भावना को मजबूत करना और तत्कालीन जी-7 औद्योगिक देशों के लिये एक सेतु का कार्य करना। इस समूह के संस्थापक सदस्य थे- अर्जेंटीना, चिली, पेरू, ब्राजील, मैक्सिको, जमैका और वेनेजुएला (अमेरिका महाद्वीप से); मिस्र, अल्जीरिया, सेनेगल, नाइजीरिया और जिम्बाब्वे (अफ्रीका महाद्वीप से), और; भारत, मलेशिया और इण्डोनेशिया (एशिया महाद्वीप से)।
जी-15 का पहला शिखर सम्मेलन 1990 में मलेशिया में हुआ। 1996 में समूह के 11 सदस्य विश्व के 50 शीर्ष आयातक और निर्यातक देशों में थे। सामूहिक रूप से ये देश विश्व के 10 प्रतिशत मालों के निर्यात और 10 प्रतिशत आयात के लिये उत्तरदायी थे। इन देशों की कुल जनसंख्या 1.8 बिलियन है, जो विश्व की जनसंख्या का 30 प्रतिशत है।
क्वालालामपुर शिखर सम्मेलन, 1997 में इस समूह के सोलहवें सदस्य के रूप में केन्या सम्मिलित हुआ। श्रीलंका 1999 में सम्मिलित हुआ, जबकि ईरान और कोलंबिया वर्ष 2000 में सम्मिलित हुये। लेकिन इस समूह का नाम, जी-15, अपरिवर्तित रहा है।
उद्देश्य
जी-15 के प्रमुख उद्देश्य हैं- विकासशील देशों के मध्य अधिक और पारस्परिक लाभकारी सहयोग स्थापित करने के लिये व्यापक क्षमताओं का उपयोग करना; विकासशील देशों पर विश्व आर्थिक स्थिति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रभाव की समीक्षा करना; नीतियों और कार्यवाहियों में समन्वय स्थापित करने के लिये विकासशील देशों के मध्य नियमित परामर्श हेतु एक मंच का कार्य करना; दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए ठोस योजनाओं की पहचान करना एवं उन्हें क्रियान्वित करना तथा उन योजनाओं के लिये व्यापक समर्थन जुटाना; अधिक सकारात्मक और लाभकारी उत्तर-दक्षिण संवाद को आगे बढ़ाना, तथा; सहयोगात्मक, सकारात्मक और परस्पर समर्थनकारी ढंग से समस्याओं के निदान के लिये मार्ग ढूंढना।
संरचना
जी-15 का सर्वोच्च निर्णयकारी अंग राष्ट्राध्यक्षों/शासनाध्यक्षों का वार्षिक शिखर सम्मेलन है, जिसकी अध्यक्षता मेजबान सदस्य द्वारा की जाती है। वार्षिक शिखर सम्मेलन की तैयारी करने और समूह के कार्यों में समन्वय स्थापित करने के लिये सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की प्रत्येक वर्ष साधारणतया दो बैठकें होती हैं। राष्ट्राध्यक्षों/शासनाध्यक्षों के निजी प्रतिनिधि जी-15 के पुनश्चर्या कार्यों के लिये उत्तरदायी होते हैं। इन प्रतिनिधियों की प्रत्येक सप्ताह कम-से-कम चार बैठकें होती हैं तथा इनका मार्ग-निर्देशन एक त्रिगुट के द्वारा होता है, जिसमें समूह के वर्तमान, भूतपूर्व और भावी अध्यक्ष सम्मिलित होते हैं। आवश्यकता पड़ने पर जी-15 देशों के व्यापार और आर्थिक मंत्रियों की बैठक होती है। इसके अतिरिक्त जरूरत के अनुसार सदस्य देशों के अन्य मंत्रियों की भी बैठक होती है।
जी-15 की सहायता के लिये एक तकनीकी सहयोग सुविधा (टीएसएफ) का गठन किया गया है, जो जेनेवा में अवस्थित है। टीएसएफ वर्तमान अध्यक्ष के दिशा-निर्देशन में कार्य करता है तथा समूह की गतिविधियों को व्यापक और तकनीकी सचिवालय सहायता देने तथा उसके उद्देश्यों को प्रोत्साहित करने के लिये उत्तरदायी होता है।
जी-15 की गतिविधियों में निजी क्षेत्र की सहभागिता को प्रोत्साहित किया जाता है। निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों तथा व्यापार समुदायों और सदस्य देशों के मध्यम पारस्परिक संबंधों को मजबूत बनाने के लिये जी-15 ने एक व्यापार निवेश मंच (बीआईएफ) तथा निवेश, व्यापार और तकनीकी समिति (सीआईटीटी) का गठन किया गया है।
गतिविधियां
जी-15 एक अधिक समतामूलक आर्थिक व्यवस्था की खोज में प्रयासरत है तथा उत्तर और दक्षिण के बीच बढ़ रही विषमताओं को समाप्त करना इसका एक प्रमुख लक्ष्य है। अनेक अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जी-15 ने विकसित देशों से अपील की है कि वे अपनी वृहत आर्थिक (macro-ecnomic) नीतियों को अपनाते समय विकासशील देशों की जरूरतों और हितों के प्रति संवदेनशील रहें। सदस्य देशों ने प्रमुख अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एवं व्यापार संस्थाओं में सुधार की मांग की है ताकि कम विकसित देश इन संस्थाओं का अधिकतम लाभ उठा सकें और इन देशों का विश्व आर्थिक व्यवस्था में एकीकरण हो सके। जहां तक दक्षिण-दक्षिण सहयोग का प्रश्न है, सदस्यों ने व्यापार, परिवहन, सुचना एवं तकनीक अदन-प्रदान, तकनीकी सुविज्ञता, मौलिक आर्थिक क्षेत्र विकास, आदि क्षेत्रों में एक-दूसरे पर निर्भरता बढ़ाने की दिशा में अनेक कदम उठाये हैं जिससे उत्तर पर उनकी निर्भरता कम हो। गरीबी और बेरोजगारी से लड़ना जी-15 का एक अन्य प्रमुख सहयोग का क्षेत्र है।
जी-15 ने विविध प्रकार की आर्थिक और तकनीकी सहयोग परियोजनाओं की भी शुरूआत की है। प्रत्येक परियोजना का समन्वय और वित्तीय पोषण प्रवर्तक (initiating) सदस्य के द्वारा होता है। ये परियोजनाएं पर्यावरण, तकनीकी शिक्षा, व्यापार एवं निवेश के क्षेत्रों से जुड़ी हैं। जी-15 परियोजनाओं में सभी विकासशील देश भाग ले सकते हैं। प्रत्येक परियोजना की राष्ट्रीय केंद्रीय बिंदु संजाल (Network of National Focal Points—MFPs) से सहायता प्रदान की जाती है तथा टीएसएफ उसका विश्लेषण करता है।
निजी व्यापार की सहभागिता के माध्यम से क्षेत्रेतर व्यापार व्यवस्थाओं की विकसित करने और जी-15 के आंतरिक सहयोग को विस्तृत करने के उद्देश्य से वर्ष 1995 में सीआईआईटी का गठन किया गया। इसके प्रमुख कार्य हैं-(i) जी-15 में वस्तुओं और सेवाओं की आन्तरिक आपूर्ति के लिये प्रतियोगी स्रोतों की पहचान से जुड़े पक्षों की जांच करना, (ii) व्यक्तिगत तथा शीर्ष चैम्बर स्तर पर उद्यमशीलता का सृजन करना; (iii) जी-15 के आन्तरिक व्यापार के विस्तार से जुड़ी समस्याओं और बाधाओं की पहचान करना तथा उनके निदान के लिए नीति-प्रस्ताव की मांग करना; (iv) सलाहकारी परिषद के माध्यम से व्यापार नीतियों और उपायों की पहचान करना, जिससे व्यापार और निवेश के प्रवाह में सकारात्मक वृद्धि संभव हो सके; (v) व्यापार के उदारीकरण के लिये अनुशंसा करना, और; (vi) विश्लेषणात्मक और तकनीकी सहयोग प्रदान करना।
2001 में जकार्ता में सम्पन्न हुए G-15 देशों के शिखर सम्मेलन में ज्ञान-आधारित समाज के आगमन के परिप्रेक्ष्य में विकास के लिए सूचना-प्रौद्योगिकी की भूमिका को मान्यता देते हुए एक घोषणा-पत्र जारी किया गया। इस घोषणा-पत्र में उन प्रमुख अवरोधों को दूर करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की गयी, जो विकासशील राष्ट्रों के लोगों के सूचना तक अपनी पहुंच बनाने में समस्या उत्पन्न करते हैं।
सदस्य देशों द्वारा प्रारंभ में ही यह स्पष्ट किया जाता रहा है कि जी-15 विकसित देशों के जी-8 के विरुद्ध खड़ा किया गया कोई संगठन नहीं है अपितु विकासशील देशों के वृहत्तर संगठन जी-77 को और भी अधिक सार्थक बनाने का प्रयास है।
उल्लेखनीय है कि जी-15 के सदस्य राष्ट्र मिलकर विकासशील जगत के सकल घरेलू उत्पाद के 43 प्रतिशत, विकासशील देशों के कुल निर्यात व आयात के क्रमशः 25 व 22 प्रतिशत तथा तीसरी दुनिया के भौगोलिक क्षेत्र के 34 प्रतिशत भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। संयुक्त रूप से इन देशों का सकल घरेलु उत्पाद लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर है तथा विदेशी व्यापार 500 अरब डॉलर का है।
जी-15 का उद्देश्य बातचीत का विस्तार जी-8 और जी-20 तक करना है। यह विकासशील देशों और विकसित तथा औद्योगिक देशों के बीच अंतराल की पाटना चाहता है। यह सत्य है कि जी-15 के सदस्य अन्य संगठनों के भी सदस्य हैं जो इस उद्देश्य में मददगार होगा। 2010 में तेहरान शिखर सम्मेलन में इस बात की महत्ता पर जोर दिया गया कि जी-8 के साथ विकास के सभी मुख्य पहलुओं पर सहयोग किया जाना चाहिए।
14वें शिखर सम्मेलन का आह्वान ब्रिटनवुड संस्थाओं के सुधार और विकासशील विश्व के लिए वैकल्पिक वित्तीयन स्रोतों का परीक्षण के लिए किया गया। जी-15 ने सदस्य देशों में निवेश, व्यापार एवं तकनीकी के क्षेत्र में सहयोग पर अपना ध्यान दिया है। संस्थापक सदस्य देश पेरू ने वर्ष 2011 में समूह की सदस्यता छोड़ दी।
उल्लेखनीय है कि जी-15 की अनेक परियोजनाओं का समन्वय भारत करता रहा है। इनमें जीन बैंक परियोजना, सूचना-प्रौद्योगिकी के प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों का संचालन तथा नाइजीरियाई मशील टूल्स का पुनर्जीवीकरण आदि शामिल हैं।