वारसा संधि संगठन Warsaw Treaty Organisation – WTO
अब अस्तित्वहीन
वारसा संधि (Warsaw Treaty Organisation-WTO) मई 1955 में उस समय अस्तित्व में आया, जब पूर्व सोवियत संघ और उसके उपग्रह देशों (satellite countries) ने यूरोप में सुरक्षा और शांति की रक्षा के लिए यूरोपीय देशों के सम्मेलन में वारसा संधि पर हस्ताक्षर किए।
वारसा संगठन का मुख्यालय मास्को (रूस) में था तथा पूर्व सोवियत संघ, अल्बानिया, बुल्गारिया, चेकोस्लावाकिया, तत्कालीन पूर्वी हंगरी, पोलैंड, और रोमानिया इसके सदस्य थे। (अल्बानिया 1968 में इस संगठन से अलग हो गया)। इस संगठन का उद्देश्य नाटो के पूर्वी यूरोपीय प्रतिद्वन्द्वी के रूप में स्थापित होने के लिये एक संयुक्त सैन्य कमांड का गठन करना था।
वारसा संधि तभी तक प्रभावशाली बनी रही जब तक सोवियत संघ ने अपनी सैन्य शक्ति और राजनीतिक कठपुतलियों के माध्यम से पूर्वी यूरोप पर अपना वर्चस्व बनाये रखा। इसने पूर्वी यूरोप में सोवियत सैनिकों की नियुक्ति (stationing) की संस्थागत ढांचा प्रदान किया।
वारसा संधि के देशों पर सोवियत संघ के नियंत्रण में 1989 और 1990 में तेजी से ह्रास हुआ, जब पोलैंण्ड, हंगरी, पूर्वी जर्मनी और चेकेस्लोवाकिया में कमोवेश शांतिपूर्ण क्रांति के द्वारा साम्यवादी सरकारों को पदच्युत कर दिया गया। 1990 में हंगरी ने 1991 तक वारसा संधि से अलग हो जाने की घोषणा की। पोलैण्ड और चेकेस्लोवाकिया ने भी संधि से अलग होने की घोषणा की। जर्मनी के एकीकरण के साथ ही पूर्वी जर्मनी की सदस्यता समाप्त हो गई। सोवियत संघ के विघटन के बाद संधि की भंग कर दिया गया और इस प्रकार यह संगठन अब अस्तित्वहीन है।
12 मार्च, 1999 को, चेक गणराज्य, हंगरी, और पोलैंड ने नाटो (एनएटीओ) को स्वीकार कर लिया; मार्च 2004 में बुल्गारिया, एस्टोनिया, लाटविया, लिथुआनिया, रोमानिया, और स्लोवाकिया नाटो में शामिल हो गए; और 1 अप्रैल, 2009 को अल्बानिया भी इसमें शामिल हो गया। रूस और अन्य कुछ यूएसएसआर पश्चात् देश सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) में शामिल हो गए।