सुरक्षा परिषद शांति एवं सुरक्षा बनाये रखने का मूलभूत उत्तरदायित्व का वहन करती है। यह संयुक्त राष्ट्र का एकमात्र कार्याही अभिकरण है, जिसे संयुक्त राष्ट्र का प्रवर्तन स्कंध (Enforcement Wing) भी कहा जाता है।
- सुरक्षा परिषद में मूल रूप से 11 सदस्य थे, जिन्हें 1965 में बढ़ाकर 15 कर दिया गया।
- इनमें 5 स्थायी तथा 10 अस्थायी सदस्य होते हैं।
- स्थायी सदस्यों में ब्रिटेन, अमेरिका, चीन, रूस तथा फ्रांस शामिल हैं।
- अस्थायी सदस्यों को दो वर्षीय कार्यकाल हेतु दो-तिहाई बहुमत के आधार पर महासभा द्वारा निर्वाचित किया जाता है। पांच अस्थायी सदस्य प्रतिवर्ष सेवामुक्त होते हैं।
दस स्थानों का बंटवारा महासभा के प्रस्ताव 1991 (1968 का XVIII A) में उल्लिखित सूत्र के द्वारा किया जाता है। इस सूत्र के अनुसार एफ्रो-एशियाई क्षेत्र को पांच, पूर्वी यूरोप को एक, लैटिन अमेरिका को दो, पश्चिमी यूरोप तथा अन्य क्षेत्रों को दो स्थानों का आवंटन किया गया है।
न्यायोचित भौगोलिक वितरण के साथ-साथ अंर्तराष्ट्रीय शांति एवं व्यवस्था को बनाये रखने में दिये गये योगदान को अस्थायी सदस्य के निर्वाचन में मुख्य मापदंड बनाया जाता है। सदस्यता मुक्त होने वाले सदस्यों को पुनः निर्वाचित नहीं किया जा सकता।
परिषद के सदस्य संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में स्थायी रूप से प्रतिनिधित्व रखते हैं। सुरक्षा परिषद में प्रतिनिधित्व न रखने वाले संयुक्त राष्ट्र सदस्य सुरक्षा परिषद के विचार-विमशों में भाग ले सकते हैं किंतु उन्हें मताधिकार प्राप्त नहीं होता।
परिषद की अध्यक्षता प्रतिमाह चक्रानुक्रम में बदलती रहती है, जिसका आधार सदस्य राष्ट्रों के नामों का अंग्रेजी वर्णक्रम होता है।
मतदान
सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य को एक मत प्राप्त होता है तथा अंतिम निर्णय के लिए सभी पांच स्थायी सदस्यों की स्वीकृति प्राप्त होनी अनिवार्य होती है। प्रक्रियात्मक या गूढ़ मसलों पर निर्णय के लिए सकारात्मक मत देने वाले 9 सदस्यों की स्वीकृति आवश्यक होती है। इन नौ सदस्यों में पांच स्थायी सदस्यों का शामिल होना जरूरी है।
स्थायी सदस्यों को निषेधाधिकार (Veto) का विशेष मतदान अधिकार प्राप्त होता है, जिसके अंतर्गत किसी भी स्थायी सदस्य के विरोधी मतदान करने पर विचाराधीन प्रश्न पराजित हो जाता है। मतदान से दूर रहने को निषेधाधिकार का प्रयोग नहीं माना जाता। निषेधाधिकार के प्रयोग ने संयुक्त राष्ट्र को कई प्रमुख समस्याओं से निबटने में बाधित किया है। अधिकांश मामलों में अस्थायी सदस्यों द्वारा अपने राष्ट्रीय हितों को पोषित करने के लिए निषेधाधिकार का प्रयोग किया गया है। 1972 में चीन ने बांग्लादेश की सदस्यता के विरोध में निषेधाधिकार का प्रयोग किया। सोवियत संघ ने सर्वाधिक अवसरों पर निषेधाधिकार का प्रयोग किया। उसके बाद अमेरिका तथा अन्य देशों का स्थान रहा।
एक प्रावधान के अनुसार किसी विवाद में शामिल सदस्यों की सुरक्षा परिषद में उस मामले पर जारी विचार-विमर्श के दौरान मत देने का अधिकार नहीं होता।
सुरक्षा परिषद भी अपनी जरूरतों के अनुसार विभिन्न समितियां गठित कर सकती है। चार्टर द्वारा शस्त्रीकरण व निरस्त्रीकरण के विनियमन तथा शांतिरक्षण हेतु परामर्श उपलब्ध कराने तथा परिषद की सैनिक आवश्यकताओं में सहायता देने के लिए एक सैन्य स्टाफ समिति गठित की गयी है, जिसमें पांचों स्थायी सदस्यों के सैन्य प्रतिनिधि शामिल हैं। इसके अतिरिक्त परिषद के कार्यों में सहायता करने तथा संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता हेतु आवेदनों पर विचार करने के लिए समय-समय पर अन्य समितियों का गठन भी किया जाता है। वर्तमान में सुरक्षा परिषद की तीन स्थायी समितियां हैं-प्रक्रिया नियमों पर विशेषज्ञों की समिति, नये सदस्यों के प्रवेश पर समिति तथा मुख्यालय से दूर परिषद की बैठकों पर समिति।
बैठकें
सुरक्षा परिषद की बैठकें सामान्यतः संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय स्थित सम्मेलन भवन के विशेष कक्ष में होती हैं। प्रतिनिधि एवं उनके सहायक एक अर्द्ध-गोलाकार मेज के चारों ओर बैठते हैं, जबकि दुभाषिये या अन्य कर्मचारी बीच में स्थित लंबी मेज पर बैठते हैं। परिषद की बैठकें उपयुक्त परामर्श के आधार पर मुख्यालय से बाहर अन्य स्थानों पर भी आयोजित की जा सकती हैं।
सुरक्षा परिषद् शांतिरक्षण बल |
शांतिरक्षक सेनाएं या बल के कार्य
- संयुक्त राष्ट्र युद्ध-विराम निगरानी संगठन (यूएनटीएसओ)- 1948 के अरब-इजरायल युद्ध के बाद सुरक्षा परिषद द्वारा लागू युद्धर्विराम की निगरानी के लिए 29 मई, 1948 को इस संगठन की स्थापना की गयी।
- भारत व पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षण दल (यूएनएमओजीआईपी)- भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध-विराम के क्रियान्वयन में सहायता देने के लिए अगस्त 1948 में इस पर्यवेक्षक दल की स्थापना की गयी। इसका मुख्यालय रावलपिंडी (नवंबर से अप्रैल तक) तथा श्रीनगर (मई से अक्टूबर तक) में था।
- साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र सेना (यूएनएफआईसीवाईपी)- इस सेना की स्थापना 4 मार्च, 1964 को यूनानी एवं तुर्की मूल के साइप्रसवासियों के बीच छिड़े संघर्ष को शांत करने के उद्देश्य से की गयी। इसका मुख्यालय निकोसिया में है।
- संयुक्त राष्ट्र वचनबद्धता उल्लंघन पर्यवेक्षक बल (यूएनडीओएफ)- यह दल 1973 के अरब-इजरायल युद्ध के बाद इजरायल एवं सीरिया के बीच युद्ध-विराम की निगरानी हेतु मई 1974 में गठित किया गया।
- लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल (यूनिफिल)- यह बल मार्च 1978 में गठित हुआ। इसका उद्देश्य इजरायली सेना की वापसी के बाद लेबनानी सत्ता की वापसी में सहायता करना तथा शांति व व्यवस्था को कायम रखना था।
यह कार्यक्रम अब संचालित नहीं हो रहा है।
- संयुक्त राष्ट्र इराक-कुवैत पर्यवेक्षण अभियान दल (यूनीकोम)- इसकी स्थापना खाड़ी युद्ध के बाद अप्रैल 1991 में इराक व कुवैत के मध्य विसैन्यीकृत क्षेत्र की निगरानी हेतु की गयी।
यह कार्यक्रम अब संचालित नहीं हो रहा है।
- पश्चिमी सहारा में जनमत संग्रह हेतु संयुक्त राष्ट्र मिशन- यह मिशन पश्चिमी सहारा क्षेत्र में मोरक्को एवं पॉलीसेरियो मोर्चे के बीच युद्ध-विराम को लागू करने के लिए अप्रैल 1991 में कार्यशील हुआ। मिशन द्वारा प्रस्तावित जनमत संग्रह तथा समाधान योजना पर निगरानी रखी गई। इसका मुख्यालय लायोने (प.सहारा) में है।
- जॉर्जिया में संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षण मिशन (यूनोमिग)- इसकी स्थापना अगस्त 1993 में जॉर्जिया सरकार एवं अबकेजियन पृथक्तावादियों के मध्य सम्पन्न युद्ध-विराम की निगरानी हेतु की गयी। इसका मुख्यालय सुकुमी (जॉर्जिया) में है।
- ताजिकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षक दल (अनमोट)- ताजिक विद्रोहियों तथा ताजिकिस्तान की सरकार के मध्य तेहरान में हस्ताक्षरित युद्ध-विराम (सितंबर 1994) की निगरानी हेतु दिसंबर 1994 में इस पर्यवेक्षक दल की स्थापना की गयी।
यह कार्यक्रम अब संचालित नहीं हो रहा है।
- संयुक्त राष्ट्र निरोधक प्रस्तरण बल- इस बल की स्थापना 31 मार्च, 1995 को मेसीडोनिया के पूर्व यूगोस्लाव गणराज्य में सीमावर्ती गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए की गई। इसका मुख्यालय स्कोपजे (क्रोएशिया) में है।
- बोस्निया एवं हर्जेगोविना में संयुक्त राष्ट्र मिशन– इसका गठन 15 जनवरी, 1996 को हुआ। इसका कार्य संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा बल के दायित्वों को नाटो नेतृत्वाधीन क्रियान्वयन बल में स्थानांतरित करने में सहायता देना था।
यह कार्यक्रम अब संचालित नहीं हो रहा है।
- प्रिवेलका में संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षण मिशन- इस मिशन की स्थापना जनवरी 1996 में हुई। इसका कार्य सितंबर 1992 में क्रोएशिया व मोंटेनीग्रो के बीच सम्पन्न समझौते के आधार पर प्रिवेलका प्रायद्वीप में शांति को प्रोत्साहित करना तथा क्षेत्र के विसैन्यीकरण पर निगरानी रखना है।
- अंगोला में संयुक्त राष्ट्र पर्यवेक्षक मिशन (मोनुआ)- यह मिशन अंगोला में राष्ट्रीय पुनर्सामंजस्य तथा शांति की स्थापना में सहायता करने के लिए जून 1997 में अस्तित्व में आया।
यह कार्यक्रम अब संचालित नहीं हो रहा है।
- हैती में संयुक्त राष्ट्र नागरिक पुलिस मिशन– इसकी स्थापना नवंबर 1997 में हैती सरकार को अपनी राष्ट्रीय पुलिस के व्यावसायीकरण में सहायता देने के लिए की गयी।
यह कार्यक्रम अब संचालित नहीं हो रहा है।
- क्रोएशिया में संयुक्त राष्ट्र नागरिक पुलिस समर्थन दल- इस दल की स्थापना डेन्यूब क्षेत्र में क्रोएशियाई पुलिस के कार्य निष्पादन पर निरंतर निगरानी रखने के लिए दिसंबर 1997 में की गयी।
- कोसोवो- जून 1999 में यहां संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षण अभियान के तहत पूर्ण प्रशासन की हाथ में लिया गया, जिसमें 37 सैनिक, 3633 पुलिस, 833 अंतरराष्ट्रीय नागरिक तथा 2743 स्थानीय नागरिक कर्मियों की भागीदारी रही। इसका वार्षिक बजट 461.4 मिलियन डॉलर था।
- सिएरा लियोन- यहां शांतिरक्षक सेना द्वारा अक्टूबर 1999 में एक शांति निर्माण व्यवस्था कायम की गयी। इसमें 11696 सैनिक, 24 पुलिस, 185 अंतरराष्ट्रीय तथा 126 स्थानीय नागरिक कर्मचारी शामिल थे। इसका वार्षिक बजट 504.4 मिलियन डॉलर था।
- पूर्वी तिमोर- संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षण अभियान के तहत अक्टूबर 1999 में पूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की गयी, जिसमें 8561 सैनिक, 1243 पुलिस, 716 अंतरराष्ट्रीय तथा 1879 स्थानीय नागरिक कर्मियों की भागीदारी थी । इस अभियान का वार्षिक बजट 584.1 मिलियन डॉलर था।
- कांगो- यहां दिसंबर 1999 में स्थापित शांतिरक्षक व्यवस्था का वार्षिक बजट 141.3 मिलियन डॉलर था। इसमें 225 सैनिक, 111 अंतरराष्ट्रीय तथा 168 स्थानीय नागरिक कर्मी शामिल थे।
- कोट डी आईवरी में संयुक्त राष्ट्र अभियान (यूएनओसीआई)- यूएनओसीआई अप्रैल 2004 से स्थापित किया गया। यूएनओसीआई संयुक्त राष्ट्र के यूएन-एमसीआई के स्थान पर लाया गया। परिषद् द्वारा स्थापित किया गया यह राजनीतिक मिशन मई 2003 में लाया गया ताकि जनवरी 2003 में हस्ताक्षरित शांति समझौते की क्रियान्वित किया जा सके।
- हैती में संयुक्त राष्ट्र स्थिरीकरण मिशन (एमआईएनयूएसटीएएच)- एमआईएनयूएसटीएएच को अप्रैल 2004 में हैती में अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा के लिए खतरा पैदा होने के चलते स्थापित किया गया। जिसके परिणामस्वरूप, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् द्वारा प्राधिकृत बहुराष्ट्रीय अंतरिम बल (एमआईएफ), से प्राधिकारियों का स्थानांतरण एमआईएनयूएसटीएएच की किया गया।
- तिमोर-लिस्टे में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनएमआईटी)- 20 मई, 2002 की ईस्ट तिमोर एक स्वतंत्र राष्ट्र बना और इसमें संयुक्त राष्ट्र का तीन वर्ष की स्वतंत्रता प्रक्रिया का निर्देश समाप्त हो गया। यूएनएमआईएसईटी (जो बाद में यूएनएमआईटी बना) की स्थापना सुरक्षा परिषद् द्वारा दो साल के लिए, जब तक कि सभी प्रचालनात्मक जिम्मेदारियां ईस्ट तिमोर के प्राधिकारियों को पूरी तरह से हस्तांतरित नहीं हो जाती, सहायता प्रदान करने के लिए किया गया। नए राष्ट्र ने 20 मई, 2002 को अपना नाम बदलकर तिमोर-लिस्टे कर दिया। यह 27 सितंबर, 2002 को संयुक्त राष्ट्र का 191वां सदस्य बन गया।
- सूडान में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनएमआईएस)- यूएनएमआईएस का गठन मार्च 2005 में सूडान सरकार और सूडान पीपुल्स लिबरेशन मूवमेंट/आर्मी के बीच जनवरी 2005 में शांति समझौता के क्रियान्वयन हेतु किया गया।
- मध्य अफ्रीकी रिपब्लिक और चाड में संयुक्त राष्ट्र मिशन (एमआईएनयूआरसीएटी)- इस मिशन का गठन सितंबर 2007 में नागरिकों की सुरक्षा; मानवाधिकार को प्रोत्साहित करने एवं कानून का शासन स्थापित करने; और क्षेत्रीय शांति को बढ़ावा देने के लिए किया गया। जनवरी 2009 में, परिषद् ने यूरोपियन यूनियन मिलिट्री फोर्स, जिसे ईयूएफओआर के नाम से जाना जाता है, की निगरानी के लिए एमआईएनयूआरसीएटी की सैन्य टुकड़ी को तैनात करने का आदेश दिया। मई, 2010 में, परिषद् ने मिशन के मेंडेट को संशोधित किया और अभी तक की समग्र उपलब्धियों के संचय की दिशा में चाड सरकार के साथ काम करने की अनुमति दी।
- लाइबेरिया में संयुक्त राष्ट्र मिशन (यूएनएमआईएल)- युद्ध विराम समझौता एवं शांति प्रक्रिया के क्रियान्वयन में मदद करने, संयुक्त राष्ट्र कर्मियों, सुविधाओं एवं नागरिकों की रक्षा करने; लोकोपकारी एवं मानवाधिकारों से सम्बद्ध गतिविधियों के समर्थन करने; और साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा सुधार में मदद करने जिसमें राष्ट्रीय पुलिस प्रशिक्षण और एक नवीन एवं पुनर्गठित सेना में मदद करने के लिए यूएनएमआईएल की स्थापना सितंबर, 2003 में की गई।
- अफ्रीकी संघ/दारफुर में संयुक्त राष्ट्र हाइब्रिड ऑपरेशन (यूएनएएमआईडी)- इसकी स्थापना जुलाई 2007 में की गई। जुलाई 2008 में, सुरक्षा परिषद् ने यूएनएएमआईडी के मेंडेट को 12 महीने के लिए 31 जुलाई, 2009 तक बढ़ा दिया और फिर दोबारा अगस्त 2009 में, 12 महीनों के लिए 31 जुलाई, 2010 तक के लिए बढ़ाया। इसका मुख्य कार्य नागरिकों की रक्षा करना था, लेकिन इसने लोकोपकारी सहायता, समझौतों की निगरानी एवं क्रियान्वयन का सत्यापन, समग्र राजनीतिक प्रक्रिया में सहायता, मानवाधिकारों एवं कानून के शासन को प्रोत्साहित करने में भी महत्वपूर्ण कार्य किया।
- अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (यूएनएएमए)- इसकी स्थापना मार्च, 2002 में की गई। इसका मूल कार्य बॉन समझौते (दिसंबर 2001) का समर्थन करना था। इसे वार्षिक रूप से देश की जरूरतों को प्रतिबिम्बित करने के लिए परिवर्तित किया जाता रहा और 23 मार्च, 2011 तक बढ़ाया गया। इसके कार्यों में-शांति कार्यों के लिए राजनीतिक एवं रणनीतिक परामर्श प्रदान करना, अच्छे कार्यालय प्रदान करना; अफगानिस्तान समझौते के क्रियान्वयन हेतु सरकार की मदद करना शामिल हैं।
- माली मे संयुक्त राष्ट्र बहुआयामीय समन्वित स्थिरीकरण मिशन (एमआईएनयूएसएमए)- इस मिशन की स्थापना 25 अप्रैल, 2013 को सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव 2100 द्वारा माली में राजनीतिक प्रक्रियाओं को समर्थन प्रदान करने और सुरक्षा संबंधी अन्य कई कार्यों को जारी रखने के लिए की गई। मिशन को देश में स्थिरीकरण लाने में माली के संक्रमणीय प्राधिकारियों को समर्थन प्रदान किया जाए और संक्रमणीय रोडमैप के क्रियान्वयन, बड़ी जनसँख्या वाले केंद्रों और संचार क्षेत्रों पर ध्यान देने, नागरिकों की रक्षा, मानवाधिकारों की निगरानी, मानवतावादी सहायता के प्रावधान के लिए दशाओं का सृजन करने और विस्थापित लोगों की वापसी सुनिश्चित करने, राज्य प्राधिकार का विस्तार और स्वतंत्र, समावेशी और शांतिपूर्ण चुनाव की तैयारी में समर्थन देने का कार्य सौंपा गया है।
- मध्य अफ्रीकी रिपब्लिक में संयुक्त राष्ट्र बहुआयामी शांतिरक्षण अभियान (एमआईएनयूएससीए)- मध्य अफ्रीकी रिपब्लिक में रक्षा, मानवतावादी, मानवाधिकारों और राजनीतिक संकट तथा इसके क्षेत्रीय निहितार्थों के प्रति चिंताओं के चलते सुरक्षा परिषद् ने 10 अप्रैल, 2014 को एमआईएनयूएससीए मिशन नागरिकों की रक्षा की अपनी प्रथम प्राथमिकता के साथ तैनात किया। इसके अन्य प्रारंभिक कार्यों में संक्रमण प्रक्रिया में सहायता; मानवतावादी सहायता को सुसाध्य बनाना; मानवाधिकारों का संरक्षण एवं प्रोत्साहन; न्याय एवं कानून के शासन का समर्थन; और निःशस्त्रीकरण, विस्थापन रोकथाम, पुर्नएकीकरण प्रक्रियाओं में मदद करना शामिल है।
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शक्तियां
सुरक्षा परिषद अंतरराष्ट्रीय विवादों के समाधान हेतु संयुक्त राष्ट्र द्वारा की जाने वाली कार्यवाही का निर्णय करती है। चार्टर के अनुसार, परिषद के निर्णय सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्यों के नाम पर लिये जाते हैं, अतः सभी के लिए इन्हें स्वीकार एवं क्रियान्वित करना अनिवार्य है। परिषद किसी विवाद की जांच कर सकती है तथा इसके समाधान के उपाय सुझा सकती है। यह संयुक्त राष्ट्र सदस्यों से इस बात की मांग कर सकती है कि वे शांति व सुरक्षा को खतरा पहुंचाने वाले किसी देश के साथ व्यापार रोक दें तथा संचार संपर्क तोड़ लें अथवा उस देश की सरकार के साथ संबंध समाप्त कर लें। यदि ये कार्यवाहियां अप्रभावी सिद्ध होती हैं, तब सुरक्षा परिषद विवाद के समाधान हेतु सदस्य राष्ट्रों से सैनिक सहायता उपलब्ध कराने के लिए कह सकती है।
सुरक्षा परिषद को प्राप्त अन्य महत्वपूर्ण शक्तियों में संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता हेतु प्राप्त सभी आवेदनों को स्वीकृति देना, शस्त्र नियंत्रण योजनाओं का अनुमोदन करना, महासचिव की नियुक्ति हेतु महासभा को सिफारिशें भेजना तथा महासभा के साथ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति करना सम्मिलित हैं।
गतिविधियां
शतिरक्षण गतिविधियों में तथ्य अन्वेषण, पर्यवेक्षण, मध्यस्थता, समाधान तथा आंतरिक व्यवस्था कायम रखने में सहायता देना शामिल है। इस उद्देश्य से सुरक्षा परिषद द्वारा कई शांतिरक्षण सेनाओं तथा पर्यवेक्षक दलों को विभिन्न संकटग्रस्त क्षेत्रों, अफगानिस्तान, सोमालिया, मध्य पूर्व, ईरान-इराक, अंगोला, मध्य अमेरिका इत्यादि, में भेजा गया है। संघर्षों को समाप्त करने या टालने में सुरक्षा परिषद द्वारा निभायी गयी महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए 1988 में इसे शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया।