जलियांवाला बाग हत्याकांड Jallianwala Bagh Massacre
13 अप्रैल 1919
13 अप्रैल 1919 को बैशाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा का आयोजन किया गया। सभा में भाग लेने वाले अधिकांश लोग आसपास के गांवों से आये हुये ग्रामीण थे, जो सरकार द्वारा शहर में आरोपित प्रतिबंध से बेखबर थे। ये लोग 10 अप्रैल 1919 को सत्याग्रहियों पर गोली चलाने तथा अपने नेताओं डा. सत्यपाल व डा. किचलू को पंजाब से बलात् बाहर भेजे जाने का विरोध कर रहे थे। जनरल डायर ने इस सभा के आयोजन को सरकारी आदेश की अवहेलना समझा तथा सभा स्थल को सशस्त्र सैनिकों के साथ घेर लिया। डायर ने बिना किसी पूर्व चेतावनी के सभा पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। लोगों पर तब तक गोलियां बरसायी गयीं, जब तक सैनिकों की गोलियां समाप्त नहीं हो गयीं। सभा स्थल के सभी निकास मागों के सैनिकों द्वारा घिरे होने के कारण सभा में सम्मिलित निहत्थे लोग चारों ओर से गोलियों से छलनी होते रहे। इस घटना में लगभग 1000 लोग मारे गये, जिसमें युवा, महिलायें, बूढ़े, बच्चे सभी शामिल थे। जलियांवाला बाग हत्याकांड से पूरा देश स्तब्ध रह गया। वहशी क्रूरता ने देश को मौन कर दिया। पूरे देश में बर्बर हत्याकांड की भर्त्सना की गयी। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने विरोध स्वरूप अपनी ‘नाइटहुड’ की उपाधि त्याग दी तथा शंकरराम नागर ने वायसराय की कार्यकारिणी से त्यागपत्र दे दिया। अनेक स्थानों पर सत्याग्रहियों ने अहिंसा का मार्ग त्यागकर हिंसा का मार्ग अपनाया, जिससे 18 अप्रैल 1919 को गांधीजी ने अपना सत्याग्रह समाप्त घोषित कर दिया क्योंकि उनके सत्याग्रह में हिंसा का कोई स्थान नहीं था।
सरकार ने अत्याचारी अपराधियों को दडित करने के स्थान पर उनका पक्ष लिया। जनरल डायर को सम्मानित किया गया।