रसायन विज्ञान-महत्वपूर्ण तथ्य Chemistry-Important Facts
- भूपर्पटी चट्टानों से बनी है और चट्टानें खनिजों से बनी हैं।
- चट्टानों को आग्नेय, अवसादी और कायान्तरिक चट्टानों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- चट्टानें एक खनिज से या बहुत से खनिजों के समूह मिलकर बनी होती हैं।
- खनिज प्रकृति में पाये जाने वाले पदार्थ हैं, जिनका एक निश्चित संघटन होता है।
- कोई खनिज एक तत्व या एक से अधिक तत्वों के परमाणुओं से मिलकर बना हो सकता है। भूपर्पटी में मुख्यत: 8 तत्व पाये जाते हैं। इनमें से दो अधातुएं हैं-ऑक्सीजन तथा सिलिकॉन। अन्य 6 तत्व धातुएं हैं- ऐलुमिनियम, लोहा, कौल्सियम्, सोडियमं, पोटैशियम तथा मैग्नीशियम।
- किसी खनिज की पहचान उसके भौतिक गुणों, जैसे-रंग, चमक, कठोरता तथा विदलन से की जा सकती है।
- कोई खनिज जो धातु का स्रोत हो, अयस्क कहलाता है।
- अधिकांश अयस्क सल्फाइड, ऑक्साइड और कार्बोनेट के रूप में पाए जाते हैं।
- अयस्क से धातु का निष्कर्षण चार पदों में पूर्ण होता है- सान्द्रण, भर्जन, प्रगलन तथा परिष्करण।
- धातु ऑक्साइड को कार्बन के साथ गर्म करके उसका धातु में अपचयन किया जाता है।
- धातु सल्फाइड और धातु कार्बोनेट अयस्कों को पहले वायु में अत्यधिक गर्म करके ऑक्साइड में अपचयित किया जाता है।
- सभी धातु ऑक्साइड कार्बन के साथ गर्म करने पर सरलता से धातुओं में अपचयित नहीं होते।
- हेमाटाइट को चूना पत्थर तथा कोयले के साथ वात्या भट्टी में गर्म करके लोहा प्राप्त किया जाता है।
- पिटवां लोहा, लोहे का शुद्धतम रूप है, जिसमें 2% कार्बन होता है।
- तांबे का निष्कर्षण मुख्यत: कॉपर पाइराइट से किया जाता है।
- अशुद्ध तांबे का परिष्करण विद्युत अपघटन विधि द्वारा किया जाता है।
- ऐलुमिनियम, बॉक्साइट से विद्युत अपघटन विधि द्वारा प्राप्त किया जाता है।
- लोहा, तांबा तथा एल्युमीनियम के हमारे दैनिक जीवन में असंख्य उपयोग है।
- मिश्रधातु दो या अधिक धातुओं अथवा अधातुओं की एक समांगी मिश्रण होती है। इन्हें इनकी प्रगलित अवस्था में मिलाकर बनाया जाता है।
- पीतल, कांसा और स्टील मिश्रधातु के सामान्य उदाहरण हैं।
- किसी मिश्रधातु के गुण उसकी अवयव धातुओं के गुणों से भिन्न होते हैं। मिश्रधातुएं अधिक कठोर तथा अधिक संक्षारणरोधी होती हैं।
- मिश्रधातुएं मानव की सेवा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- मानव ने बहुत सी नयी उपयोगी वस्तुएं बनाई हैं।
- सीमेन्ट एवं कक्रीट के विकास ने सड़कों, पुलों, बांधों तथा बहुमंजिले भवनों के निर्माण में क्रांति ला दी है।
- सीमेन्ट में स्टील अन्त: स्थापित करने से कक्रीट की प्रबलता बढ़ जाती है।
- रेत को सोडियम कार्बोनेट और कैल्सियम कार्बोनेट के साथ संगलित करके कांच बनाया जाता है।
- विशेष गुणों वाले कांचों का निर्माण मूल पदार्थों में अन्य उचित पदार्थ मिलाकर किया जाता है।
- हमारे दैनिक जीवन में बहुलकों तथा प्लास्टिक का विस्तृत उपयोग है।
- कोई भी सुघट्य पदार्थ या तो तापसुघट्य होता है अथवा तापदृढ़ होता है।
- संश्लिष्ट तन्तु हमें वस्त्रों के लिए एक सुगम पदार्थ प्रदान करते हैं।
- बहुत सी मानव-निर्मित वस्तुएं जैव निम्नकरणीय योग्य नहीं हैं।
- हमारे घरों तथा खेतों में प्रयुक्त उन रसायनों को, जो जैव निम्नकरणीय नहीं हैं, उन रसायनों द्वारा विस्थापित कर देना आवश्यक है, जो प्रकृति में पाये जाने वाले जीवाणु तथा अन्य जीवधारियों द्वारा अपघटित किया जा सकते हों।
- तत्वों का उनके भौतिक एवं रासायनिक गुणों के आधार पर, धातु एवं अधातु में वर्गीकरण किया जा सकता है।
- धातुएं प्राय: चमकीली, कठोर, आघातवर्ध्य एवं तन्य होती हैं। ये ऊष्मा व विद्यतु का चालन करती हैं। सभी धातुएं सामान्य परिस्थितियों में कमरे के ताप पर ठोस अवस्था में होती हैं। पारा इसका अपवाद है, केवल यही धातु कमरे के ताप पर द्रव अवस्था में होती है।
- अधातुओं पर हल्की चमक होती है। ये विद्युत एवं ऊष्मा की कुचालक तथा भंगुर होती हैं। कमरे के ताप पर ठोस, द्रव अथवा गैस, किसी भी अवस्था में हो सकती हैं।
- धातुएं सामान्यत: ऑक्सीजन से संयोग करके क्षारीय ऑक्साइड बनाती हैं।
- अधातुएं सामान्यत: ऑक्सीजन से संयोग कर अम्लीय ऑक्साइड बनाती हैं।
- कुछ धातुएं जल से अभिक्रिया करती हैं। सोडियम तो ठण्डे जल के साथ भी तीव्र अभिक्रिया करके सोडियम हाइड्रॉक्साइड और हाइड्रोजन बनाता है, जबकि सोना, भाप के साथ भी कोई अभिक्रिया नहीं करता।
- कुछ धातुएं, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ अभिक्रिया करके उनके अणुओं में उपस्थित हाइड्रोजन परमाणु को प्रतिस्थापित कर देती हैं। सोने, चांदी तथा तांबे से प्राय: हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की कोई अभिक्रिया नहीं होती।
- ऑक्सीजन, जल तथा अम्ल के साथ अभिक्रियाशीलता के आधार पर कुछ धातुओं की सक्रियता का क्रम इस प्रकार है- सोना, चाँदी, तांबा, लोहा, जिंक, अल्युमिनियम, मैग्नीशियम और सोडियम।
- अधिक सक्रिय धातुएं, अपेक्षाकृत कम सक्रिय धातुओं को उनके यौगिकों से प्रतिस्थापित कर देती हैं।
- अधिकांश धातुएं वायुमण्डल में खुली रखे जाने पर संक्षारित हो जाती हैं।
- कुछ धातुएं, जैसे- सोना वायुमण्डल में खुली रखे जाने पर भी संक्षारित नहीं होती।
- टाइटेनियम आत्यधिक संक्षारणरोधी धातु है।
- संक्षारण के लिए वायु एवं नमी (जल) आवश्यक है।
- धातुओं को संक्षारण के बचाने की कई विधियां हैं।
- साधारण ताप पर पारा, गेलियम और सीजियम धातुएं द्रव हैं और शेष धातुएं ठोस हैं।
- साधारण ताप पर अधातु में ब्रोमीन द्रव है तथा शेष अधातुएं ठोस या गैस हैं।
- धातुओं में चांदी सबसे अच्छा सुचालक और सीसा कुचालक होता है।
- कार्बन को छोड़कर सभी अधातुएं नरम होती हैं।
- हीरा सभी प्राकृतिक वस्तुओं में सबसे अधिक कठोर होता है।
- लेवाशियर (Lavoisier) को रसायन विज्ञान का जन्मदाता कहा जाता है।
- रसायन विज्ञान का विकास सर्वप्रथम मिस्र से हुआ।
- रसायन विज्ञान के अन्तर्गत द्रव्य (Matter) के संघटन और उसके अति सूक्ष्म कणों की सरंचना का अध्ययन किया है। इसके अन्तर्गत द्रव्य के गुण, द्रव्यों में परस्पर संयोग के नियम, ऊष्मा आदि ऊर्जाओं का द्रव्य पर प्रभाव, यौगिकों का संश्लेषण, जटिल व मिश्रित पदार्थों से सरल व शुद्ध पदार्थ अलग करना आदि आता है।
- द्रव्य की कठोरता उसमें खरोंच (Scratch) की प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करती है, जिसका मापन मॉह के कठोरता मापांक (Moh’s Hardness Scale) पर निर्भर करता है। मॉह स्केल पर कुछ प्रमुख द्रव्यों की कठोरता निम्नवत है- द्रव्य (कठोरता) : हीरा (10), कोरण्डम (9), टोपाज (8), क्वार्टज़ (7), ग्रेफाइट (7)।
- द्रव्य (Matter) का वर्गीकरण दो प्रकार का होता है- समांगी द्रव्य (Homogeneous Matter) विषमांगी द्रव्य (Heterogeneous Matter)।
- तत्व (Element), द्रव्य का वह भाग, जो किसी भी ज्ञात भौतिक व रासायनिक विधि से, न तो दो से अधिक द्रव्यों में विभाजित किया जा सकता है और न ही बनाया जा सकता है, जैसे- लोहा, ताँबा, सोना या गैसीय तत्व (ऑक्सीजन) आदि।
- पृथ्वी पर पाये जाने वाले प्रमुख तत्वों का प्रतिशत आरोही क्रम है- आक्सीजन (9%), सिलिकान (26%), एल्युमीनियम (7.3%) आदि।
- सामान्य मानव शरीर में तत्वों की औसत मात्रा- आक्सीजन (65%), कार्बन (18%), हाइड्रोजन (10%) आदि।
- दो या दो से अधिक तत्वों के निश्चित अनुपात में मिलाने से यौगिक प्राप्त होते हैं, जो साधारण विधि से पुन: तत्वों में विभाजित किये जा सकते हैं। यौगिक के गुण इसके संघटक तत्वों के गुणों से पूर्णत: भिन्न होते हैं। यौगिक में उपस्थिति तत्वों का अनुपात सदैव एक समान रहता है। जैसे- जल में H2 व O2, 2:1 के अनुपात में पाये जाते हैं। उदाहरण-पानी, नमक, चीनी, एल्कोहल आदि।
- दो या दो से अधिक तत्वों को अनिश्चित अनुपात में मिलाने से मिश्रण (Mixture) प्राप्त होता है। मिश्रण में उपस्थित विभिन्न घटकों के गुण नहीं बदलते। उदाहरण- दूध, बालू, चीनी का जलीय विलयन आदि।
- मिश्रण में उपस्थित घटकों को पृथक करने के लिये प्रयुक्त विधियाँ- क्रिस्टलन 2. आसवन 3. उर्ध्वपातन 4. प्रभाजी आसवन 5. वर्णलेखन तथा भाप आसवन।
- क्रिस्टलन विधि, अकार्बनिक ठोसों के पृथक्करण व शुद्धिकरण के लिये प्रयुक्त होती है।
- आसवन विधि में उन द्रवों के मिश्रण को पृथक किया जाता है, जिनके क्वथनांक (Boiling Point) में अधिक अन्तर होता है, जबकि प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation) के द्वारा उन मिश्रित द्रवों को पृथक करते हैं, जिनके क्वथनांकों में बहुत कम अन्तर होता है। कच्चे तेल से पेट्रोल, डीजल आदि इसी विधि द्वारा पृथक किये जाते हैं।
- उर्ध्वपातन विधि के द्वारा दो ऐसे ठोसों के मिश्रण को पृथक करते हैं, जिसमें एक ठोस, उर्ध्वपातन (Sublimate) होता है, दूसरा नहीं। इस विधि के द्वारा कपूर, नेफ्थलीन, अमोनियम क्लोराइड, बेन्जोइक अम्ल आदि पदार्थ शुद्ध किये जाते हैं।
- कुछ ठोस पदार्थ गर्म किये जाने पर, द्रव अवस्था में आने की बजाय सीधे वाष्प में बदल जाते हैं और वाष्प को ठण्डा किये जाने पर पुनः सीधे ठोस अवस्था में आ जाते हैं। ऐसे पदार्थ उर्ध्वपातन (Sublimate) कहलाते हैं, जैसे-कपूर, नेफ्थलीन आदि।
- भाप आसवन के द्वारा ऐसे कार्बनिक पदार्थों को शुद्ध करते हैं, जो जल में अघुलनशील होते हैं परन्तु भाप के साथ वाष्पशील होते हैं। जैसे-ऐसीटोन, मेथिल एल्कोहल आदि का शुद्धिकरण इसी विधि के द्वारा किया जाता है।
- कोलाइडी विलयन एक विषमांग तन्त्र होता है। जब कोई ठोस पदार्थ द्रव में परिक्षेपित होकर कोलाइड विलयन बनाता है तो वह साल (Sol) कहलाता है।
- ऐसे विलयन, जो चर्म पत्र अथवा जैविक झिल्ली में से होकर गमन नही कर सकते, जैसे- स्टार्च, गोंद, जिलेटिन आदि कोलाइडी विलयन कहते हैं।
- धुंआ (Smoke) वायु में कार्बन और अन्य कणों का कोलाइडी विलयन होता है।
- कोलाइडी विलयन में विलेय के कणों का आकार 10-4 सेमी. से 10-18 सेमी. तक होता है। इससे छोटे आकार के कणों वाले विलयन, वास्तविक विलयन और इससे बड़े आकार के कणों वाले विलयन, निलम्बन कहलाते हैं।
- जब किसी कोलाइडी विलयन में किसी विद्युत अपघट्य का विलयन थोड़ी मात्रा में मिलाया जाता है तो कोलाइडी कण परस्पर संयुक्त होकर अवक्षेप बना सकते हैं। इस क्रिया को स्कन्दन (Coagulation) कहते हैं।
- नदियों के जल में मिट्टी व रेत का घोल कोलाइडी होता है। जब नदी, समुद्र के खारे पानी से मिलती है तो खारा पानी, जिसमें NaCl होता है, इसका स्कन्दन कर देता है और डेल्टा (Delta) का निर्माण हो जाता है।
- जब कोई द्रव किसी ठोस में परिक्षेपित होकर कोलाइडी विलयन बनाता है तो वह जैल (Gel) कहलाता है, जैसे-जेली, पनीर, मक्खन आदि।
- जब एक द्रव दूसरे अमिश्रणीय द्रव में परिक्षेपित होकर कोलाइडी विलयन बनाता है तो वह पायस (Emulsion) कहलाता है, जैसे- दूध, काड लिवर आयल।
- कोलाइडी विलयनों में प्रकाश के प्रर्कीणन को टिण्डल प्रभाव (Tindal Effect) कहते हैं।
- कोहरा, बादल, गैस व द्रव का कोलाइडी विलयन है।
- द्रव्य के गतिज आणविक सिद्धान्त के अनुसार द्रव्य (ठोस, द्रव, गैस) छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना होता है, इन्हें अणु (Molecule) कहते हैं।
- परमाणु (Atom), तत्व का वह छोटा-से-छोटा कण है, जो किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में भाग ले सकता है परन्तु स्वतन्त्र अवस्था में नहीं रह सकता।
- इलेक्ट्रान की खोज जे.जे. थेॉमसन ने 1897 में की।
- इलेक्ट्रान के आवेश का अविष्कार मिलिकन ने किया था। एनोड किरणों के प्रयोग के समय प्रोटान की खोज हुई। खोज करने वाले वैज्ञानिक ई. गोल्डस्टीन थे। रदरफोर्ड ने परमाणु नाभिक की खोज की थी।
- कैथोड किरणों के प्रयोग के समय इलेक्ट्रान की खोज हुई।
- न्यूट्रान की खोज चैडविक ने सन् 1932 में की।
- परमाणु मुख्यतः तीन कणों से मिलकर बने होते हैं- प्रोटॉन, न्यूट्रान व इलेक्ट्रान। प्रोटॉन का आवेश +1 होता है, न्यूट्रान आवेश रहित, जबकि इलेक्ट्रान का आवेश -1 होता है।
- परमाणु में उपस्थित सभी कणों में न्यूट्रान पाया जाता है। नाभिक के बाहर न्यूट्रान रेडियोधर्मी हो जाता है।
- विधुत धारा का निर्माण गतिशील इलेक्ट्रान करते हैं।
- इलेक्ट्रान की अनिश्चितता का सिद्धान्त, हाइजेनवर्ग ने प्रतिपादित किया था।
- समान परमाणु संख्या परन्तु भिन्न भिन्न परमाणु भार के तत्व, समस्थानिक (Isotopes) कहलाते हैं, जैसे- हाइड्रोजन (1H1), ड्यूटेरियम (1H2) व ट्राइटियम (1H3)।
- तत्व, जिनके परमाणु द्रव्यमान समान, परन्तु परमाणु क्रमांक भिन्न होते हैं, समभारिक (Isobars) कहलाते हैं, जैसे-आर्गन (18Ar40), पोटेशियम (19K40) व कौल्शियम (20Ca40)।
- तत्व, जिनके नाभिक में न्यूट्रानों की संख्या समान परन्तु प्रोट्रानों की संख्या भिन्न हो, समन्युट्रानिक (Isotones) कहलाते हैं, जैसे- 6C13 व 7M14 समन्युट्रानिक हैं क्योंकि न्यूट्रानों की संख्या समान है।
- परमाणु अणु या आयन, जिसमें इलेक्ट्रानों की संख्या समान हो, समइलेक्ट्रानिक (Isoelectronics) कहलाते हैं, जैसे N2 (7+7 = 14e-), CO (6+8 = 14 e-), Cn- (6+8 = 14 e-)।
- पाऊली के अपवर्जन के नियम के अनुसार, दिए गये परमाणु में किन्हीं भी दो इलेक्ट्रानों के लिए चारों क्वाण्टम संख्याओं का मान समान नहीं हो सकता है।
- हुण्ड का अधिकतम बहुलता के नियम के अनुसार, इलेक्ट्रॉन तब तक युग्मित नहीं होते,जब तक रिक्त कक्षक प्राप्य (Available) हैं अर्थात् जब तक सम्भव होता है, इलेक्ट्रान अयुग्मित रहते हैं।
- इलेक्ट्रान का प्रतिकरण पाजिट्रान है। केवल हाइड्रोजन परमाणु ही ऐसा परमाणु है, जिसके नाभिक में न्यूट्रान नहीं होता है।
- केवल हाइड्रोजन एक ऐसा तत्व है, जिसके सभी समस्थानिकों को अलग-अलग नाम दिए गये हैं, जैसे-प्रोटियम, डयूटीरियम व ट्राइटियम।
- अल्फा (α) कण हीलियम नाभिक के समकक्ष होता है। बीटा कण (β) इलेक्ट्रान के समकक्ष होता है।
- पोलोनियम (P) के सर्वाधिक समस्थानिक (27) होते हैं।
- द्रव्यमान संख्या (Mass Number): किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोट्रानों व न्यूट्रानों की संख्याओं का योग, द्रव्यमान संख्या कहलाती है। इसे ‘A’ से प्रदर्शित करते हैं।
- किसी तत्व का परमाणु भार वह संख्या है, जो प्रदर्शित करती है कि तत्व का एक परमाणु, कार्बन परमाणु के द्रव्यमान के 1/12 भाग से कितना गुना भारी है।परमाणु भार = तत्व को परमाणु का द्रव्यमानकार्बन परमाणु के द्रव्यमान का बारहवां भाग
- परमाणु क्रमांक की खोज मोसले ने की थी, जो किसी तत्व के परमाणु में उपस्थित प्रोटॉनों तथा इलेक्ट्रानों की संख्या के बराबर होती है।
- परमाणु की त्रिज्या का मात्रक फर्मी (Fermi) होता है।
- इलेक्ट्रान, तरंग तथा कण दोनों के गुण प्रदर्शित करता है।
- इलेक्ट्रान पर आवेश 6×10-19 कूलॉम होता है।
- पाजिट्रान (Positron) की खोज 1932 में एण्डरसन ने की थी। यह एक धनावेशित मूल कण है, जिसका द्रव्यमान व आवेश इलेक्ट्रान के बराबर होता है। इसे इलेक्ट्रान का एण्टीकण (Antiparticle) भी कहते हैं।
- न्युट्रिनो (Nutrino) खोज 1930 में पाउली (Pauli) ने की। ये द्रव्यमान व आवेश रहित मूल कण हैं।
- पाई मेसान (π Meson) की खोज 1935 में युकावा (Yuksua) ने की। ये कण दो प्रकार के होते हैं- धनात्मक पाई मेसान व ऋणात्मक पाई मेसान। ये अस्थायी कण हैं, जिनका जीवन काल 10-8 सेकण्ड व द्रव्यमान इलेक्ट्रान के द्रव्यमान का 274 गुना होता है।
- फोटान (Photon), ये ऊर्जा के बण्डल हैं, जो प्रकाश की चाल से चलते हैं। सभी प्रकार की विद्युत चुम्बकीय किरणों का निर्माण इन्हीं मूल कणों से होता है। इनका विराम द्रव्यमान (Rest Mass) शून्य होता है।
- यौगिक, जिनके अणुसूत्र समान होते हैं, परन्तु संरचनात्मक सूत्र भिन्न-भिन्न होते हैं, समावयवी (Isomeristics) कहलाते हैं, जैसे-एथिल एल्कोहल व डाइमेथिल ईथर एक-दूसरे के समावयवी हैं।
- जब एक ही तत्व भिन्न-भिन्न रुपों में पाया जाता है तो ये रुप उस तत्व के अपरुप कहलाते हैं तथा इस गुण को अपरुपता (Allotropy) कहते हैं, जैसे-हीरा व ग्रेफाइट कार्बन के दो अपरुप हैं।
- किसी पदार्थ की वह मात्रा, जिसमें उस पदार्थ के 023 × 1023 कण होते हैं, पदार्थ का एक मोल (Mole) कहलाता है।
- किसी तत्व के एक मोल में स्थित परमाणुओं की संख्या 023 × 1023 होती है। इस संख्या को आवोगाद्रो (Avogadro’s No) संख्या कहते हैं।
- किसी भी परमाणु की बाहृयतम कक्षा के इलेक्ट्रान संयोजी इलेक्ट्रान (Valence Electron) और भीतरी कक्षाओं के इलेक्ट्रान, कोर इलेक्ट्रान (Core Electron) कहलाते हैं, जैसे-सोडियम (Na11) में, Na11– 2, 8, 1, जिसमें 1 संयोजी व बाकी दस (2, 8) कोर इलेक्ट्रान हैं।
- संयोजी इलेक्ट्रानों में अधिक ऊर्जा होने के कारण ये रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेते हैं। ये इलेक्ट्रान ही उस तत्व की संयोजकता को प्रदर्शित करते हैं।
- जब परमाणु आपस में संयोग करके अणु बनाते हैं तो इस प्रक्रिया में एक से अधिक इलेक्ट्रानों का स्थानांतरण एक परमाणु से दूसरे परमाणु में होता है, जिसके परिणामस्वरुप परमाणु अपने समीपस्थ निष्क्रिय गैसों (Inert Gases) के इलेक्ट्रनिक विन्यास को प्राप्त कर लेते हैं। इलेक्ट्रान त्यागने वाले परमाणु पर धनावेश तथा इलेक्ट्रान ग्रहण करने वाले परमाणु पर ऋणावेश उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार आवेशित परमाणुओं को आयन (Ion) कहा जाता है। विपरीत आवेश वाले आयन आपस में वैद्युत आकर्षण बल द्वारा एक-दूसरे से बंधे रहते हैं। परमाणुओं के इस प्रकार संयोग करने की विधि को वैद्युत संयोजकता का सिद्धान्त कहते हैं तथा उनके बीच स्थापित बन्ध को वैद्युत संयोजी बन्ध अथवा आयनिक बन्ध कहा जाता है।
- यौगिक, जिनका संयोजन एक परमाणु से दूसरे परमाणु में इलेक्ट्रानों के स्थानान्तरण के फलस्वरुप होता है, विद्युत संयोजी यौगिक (Electrovalent Compound) या आयनिक यौगिक (Ionic Compounds) कहे जाते हैं- NaCl.
- दो परमाणुओं के संयुक्त होने की वह प्रक्रिया, जिसमें इलेक्ट्रानों की पारस्परिक साझेदारी होती है, सह संयोजकता (Co-Valency) कहलाती है। परमाणुओं के बीच में जितने इलेक्ट्रान युग्म होते हैं, उनमें उतने ही बन्ध स्थापित होते है, जैसे-क्लोरीन के परमाणुओं के मध्य एकाकी बन्ध (Single Bond), आक्सीजन के परमाणुओं के मध्य द्विबन्ध (Double Bond) आदि। सहसंयोजक यौगिक में किसी तत्व की सह संयोजकता का संख्यात्मक मान, तत्व के परमाणुओं द्वारा साझीकृत इलेक्ट्रान युग्मों की संख्या है। इस प्रकार क्लोरीन व आक्सीजन की सह संयोजकता क्रमश: 2 तथा 3 है।
- सह संयोजकता में सहभाजित इलेक्ट्रान युग्म की रचना के लिये प्रत्येक संयोजी परमाणु का एक-एक इलेक्ट्रान भाग लेता है परन्तु कुछ अणु ऐसे हैं, जिसमें सहभाजित इलेक्ट्रान युग्म का सहभाजन, दोनों परमाणुओं में से किसी एक ही परमाणु द्वारा दिया जाता है, पर इलेक्ट्रान युग्म का सहभाजन दोनों परमाणुओं के बीच होता है। इस प्रकार के बन्ध को उप-सह संयोजक (Co-Ordinate Bond) कहते हैं। इस बन्ध रचना में इलेक्ट्रान युग्म प्रदान करने वाले परमाणु को दाता (Donar) तथा ग्रहण करने वाले परमाणु को ग्राही (Acceptor) कहा जाता है। उदाहरण-अमोनिया आयन (NH4) का बनना।
- संयोजकता का इलेक्ट्रानिक सिद्धान्त (Electronic Theory ofValency) के अनुसार, प्रत्येक तत्व के परमाणु की यह प्रवृत्ति होती है कि वह अपनी बाहृय कक्षा में आठ इलेक्ट्रान पूरा करके स्थायी अवस्था प्राप्त कर ले। यदि परमाणु की बाहरी कक्षा में इलेक्ट्रानों की संख्या 8 से कम होती है तो यह उतने ही इलेक्ट्रानों को प्राप्त कर अपना अष्टक पूर्ण करना चाहता है और ऐसे तत्वों की संयोजकता ऋणात्मक होती है और यदि तत्व के बाहरी कक्षा में इलेक्ट्रानों की संख्या 8 से अधिक है तो यह परमाणु अधिक इलेक्ट्रानों को त्याग कर अपना अष्टक पूर्ण करता है, ऐसे तत्वों की संयोजकता धनात्मक होती है।
- जिन तत्वों के परमाणुओं की बाहृय कक्षा में आठ इलेक्ट्रान नहीं होते, उनके परमाणु ही रासायनिक क्रिया में भाग लेते हैं तथा क्रियाशील होते हैं। इसके विपरीत जिन तत्वों के परमाणुओं की बाहृय कक्षा में आठ इलेक्ट्रान होते हैं, उनके परमाणु अक्रिय होते हैं तथा रासायनिक क्रिया में भाग नहीं लेते।
- प्रकृति में 6 गैसों के परमाणु अक्रिय होते हैं। इनमें हीलियम को छोड़कर सभी के परमाणुओं की बाहृय कक्षा में आठ इलेक्ट्रान होते हैं। ये गैसे अक्रिय गैसें (Inert Gases) कहलाती हैं।
- अक्रिय गैसें आवर्त सारणी के शून्य वर्ग में अवस्थित हैं। इनके नाम हैं- हीलियम, निआन, आर्गन, क्रिप्टान, जेनॉन तथा रेडान।
- हीलियम और आर्गन जल में विलेय हैं, अतः अल्प मात्रा में ये नदियों, समुद्रों तथा वर्षा के जल में भी पायी जाती हैं।
- रेडान प्रकृति में नहीं पायी जाती। यह उच्च रेडियोएक्टिव गैस है, जिसका उपयोग रेडियोधर्मी अनुसंधानों तथा कैंसर की शल्य क्रिया रहित उपचार में होता है।
- हीलियम की खोज फ्रेकलैण्ड व लाकियर ने की। यह हाइड्रोजन को छोड़कर अन्य समस्त गैसों से हल्की है। अज्वलनशील होने के कारण हीलियम वायुयान के टायरों एवं गुब्बारों के भरने में प्रयुक्त होती है।
- समुद्री गोताखोरों को और अस्थमा (Asthma) के उपचार में हीलियम तथा आक्सीजन का मिश्रण श्वास लेने के लिए दिया जाता है।
- हीलियम तापमापी, निम्न तापमिति में उपयोग में लाये जाते हैं।
- हीलियम का उपयोग खाद्य-पदार्थों की सुरक्षा हेतु भी किया जाता है।
- निआन (Neon) का उपयोग विज्ञापनों, विद्युत संकेतों, साइनबोर्डों तथा समुद्री प्रकाश स्तम्भ में होता है। निआन का तीक्ष्ण प्रकाश कोहरे एवं तूफानों में भी दूर से दिखता है।
- फ्लोरेसेन्ट ट्यूब में मरक्युरिक ऑक्साइड व निआन गैस का मिश्रण भरा जाता है।
- आर्गन की खोज रैमजे ने की, यह कम ताप चालकता, निष्क्रिय प्रकृति के कारण प्रकाश बल्बों व ताप दीप्ति लैपों में भरने के काम में आती है।
- क्रिप्टॉन का उपयोग प्रतिदीप्ति विसर्जन लैम्पों में तथा कास्मिक किरणों के मापन हेतु आयनीकृत चैम्बर में किया जाता है।
- तत्वों को वर्गीकृत करने का प्रथम प्रयास रुसी वैज्ञानिक मेन्डलीफ (Mendeleeff) द्वारा 1869 में किया गया, जो कि परमाणु भार पर आधारित आवर्त सारणी थी। इनके अनुसार, तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु भारों के आवर्तफल होते हैं।
- आधुनिक आवर्त सारणी परमाणु क्रमांक के आधार पर मोस्ले (Moseley) द्वारा प्रस्तुत की गयी, जिसमें तत्व परमाणु क्रमांक के आधार पर अवस्थित किये गये। इनके अनुसार- तत्वों के भौतिक एवं रासायनिक गुण उनके परमाणु क्रमांक के आर्वतफल होते हैं।
- आवर्त सारणी की क्षैतिज पाक्तियों (Horizontal Rows) को आवर्त (Periods) तथा खड़ी पक्तियों (Vertical Rows) को वर्ग (Group) कहते हैं।
- आवर्त की संख्या तत्व के सबसे बाहरी कक्षा की इलेक्ट्रान संख्या को प्रदर्शित करती है। आवर्त उन तत्वों के साथ शुरु होता है, जिनके परमाणु के बाहरी कक्षा में एक इलेक्ट्रान होता है और आवर्त शून्य वर्ग के तत्वों के साथ समाप्त होते हैं, जिनके परमाणुओं की बाहृय कक्षा पूर्णतया भरी हुई होती है।
- प्रथम आवर्त से अन्तिम आवर्त तक धातु से अधातु पारगमन (Transition) होता दिखायी देता है।
- प्रत्येक वर्ग के तत्वों का बाह्वय इलेक्ट्रनिक विन्यास (Outer Electronic Configuration) समान होता है अर्थात एक वर्ग के सभी तत्वों की विशेषतायें समान होती हैं।
- आधुनिक आवर्त सारणी में तत्वों की संख्या 115 (एक सौ पन्द्रह) है।
- सभी संक्रामक तत्व धातु (Metals) होते हैं। ये आवर्त सारणी में मध्य में स्थित हैं।
- आन्तरिक संक्रामक तत्व, जिसमें लैन्थेनाइड व एक्टीनाइड (Lanthanide & Actinide) श्रृंखला के तत्व आते हैं। ये आवर्त सारणी के नीचे पृथक रुप से दो क्षैतिज पक्तियों में स्थित होते हैं।
- लैन्थेनाइड (Pure Earth Metals) व एक्टीनाइड (Radioactive Metals) दोनों ही श्रृंखलाओं में 14, 14 तत्व होते हैं।
- आवर्त सारणी के सेतु तत्व (Bridge Elements) द्वितीय आवर्त के कुछ तत्व तृतीय आवर्त के अगले समूह के तत्वों के साथ कुछ समानतायें प्रकट करते हैं, सेतु तत्व कहलाते हैं।
- सोडियम (Na), मैग्नीशियम (Mg), पोटैशियम (K), कैल्शियम (Ca) और बेरियम (Ba) के अविष्कारक एच. डेवी, (H. Deuy) हैं।
- आर्गन (Ar), क्रिप्टॉन (Cr) और जेनान (Xn) की खोज, रैमजे और ट्रेवर्स ने की।
- जरकोनियम (Zr) तथा यूरेनियम (U) की खोज क्लैप्रोथ (जर्मनी) ने की।
- सिलिकान (Si) तथा थोरियम (Th) की खोज जे. जे. बर्जीलियस ने की।
- हाइड्रोजन की खोज एच. कैवेण्डिस ने की।
- ऑक्सीजन की खोज शीले व प्रीस्टले ने की।
- नाइट्रोजन की खोज रदरफोर्ड ने की।
- ऐसे तत्व, जिनमें धातु एवं अधातु दोनों के गुण पाये जाते हैं, उपधातु (Semimetals / Metalloids) कहलाते हैं।
- उपधातुयें (Metalloids) हैं- सिलिकन, जर्मेनियम।
- धातुयें ऊष्मा एवं विद्युत की सुचालक, आघातध्र्य व तन्य और ठोस (अपवाद-पारा) होती हैं। धातुएं क्षारीय आक्साइड बनाती हैं।
- अधातुयें ऊष्मा एवं विद्युत की कुचालक (ग्रेफाइट को छोड़कर), सामान्यतः भंगुर व ठोस द्रव्य व गैस-तीनों रुपों में पायी जाती हैं। अधातुएं अम्लीय अथवा उदासीन आक्साइड बनाती हैं।
- धातुएं अधिकांशतः ठोस होती हैं, (द्रव धातु हैं-पारा, गेलियम)।
- सबसे कठोर धातु प्लैटिनम है एवं सर्वाधिक ऊष्मा चालक धातु चांदी है।
- रणनीतिक धातु (Strategic Metal) टाइटेनियम एवं जिरकानियम को कहा जाता है, जिसका उपयोग अंतरिक्ष यान में वायुयान के इंजन में, सेना के उपकरणों, रिएक्टरों व रासायनिक उद्योगों में किया जाता है।
- सर्वाधिक विद्युत चालक अधातु ग्रेफाइट है।
- एस्टैटीन ठोस अधातुओं में सबसे भारी तत्व है। सबसे भारी धातु ओसमियम (Os) है।
- लीथियम सबसे हल्का धात्विक तत्व है। लीथियम सबसे प्रबल अपचायक भी है।
- रेडान गैसीय तत्वों में सबसे भारी तत्व है।
- सर्वाधिक वैद्युत ऋणात्मक तत्व फ्लोरीन है।
- सर्वाधिक वैद्युत धनात्मक तत्व फ्रान्शियम है।
- उच्चतम इलेक्ट्रान बन्धुता वाला तत्व क्लोरीन होता है।
- प्लेटिनम को सफेद स्वर्ण (White Gold) कहते हैं।
- पेट्रोल को द्रव स्वर्ण (Liguid Gold) कहते हैं।
- पारे को क्विक सिल्वर (Quick Silver) कहते हैं।
- आयरन सल्फाइड को झूठा सोना (False Gold) या मूर्खो का सोना (Fool’s Gold) कहा जाता है।
- कैल्शियम आक्साइड, को क्विक लाइम (Quick Lime) कहा जाता है।
- मिश्र धातु में कम-से-कम एक तत्व धातु अवश्य होती है। मिश्र धातुओं के भौतिक गुण, उनके शुद्ध घटक धातुओं के गुणों से भिन्न होते हैं।
- वह मिश्र धातु, जिसमें एक अवयव पारा अवश्य होता है, अमलगम कहलाती है।
- कांसा, ताबे व टिन की मिश्र धातु है।
- पीतल, तांबा और जस्ता (70% +30%) की मिश्र धातु है।
- जर्मन सिल्वर, तांबा (50%), जस्ता (35%), और निकिल (15%) की मिश्र धातु है।
- सोना और प्लेटिनम नोबेल धातुयें (Nobel Metals) कहलाती हैं। ये प्रकृति में मुक्त अवस्था (शुद्ध) में पायी जाती हैं।
- लीथियम, बैरीलियम, स्ट्रान्शियम दुर्लभ धातुयें (Rare Metals) कहलाती हैं।
- क्रोमियम, जिंक, निकिल व टिन को संरक्षित धातुयें (Protective Metals) कहा जाता है क्योंकि दूसरी धातुओं को इनके लेपन से खरोंच युक्त बनाया जाता है।
- सोडियमः, पौटिशियम, हल्की धातुयें (Light Metals) हैं।
- यूरेनियम, रेडियम, थोरियम, रेडियोसक्रिय धातुयें (Radioactive Metals) हैं।
- स्वतन्त्र अवस्था (शुद्ध) में सोना मुलायम, बहुत तन्य तथा आघातवर्द्ध (धातु का वह गुण, जिसके कारण उसे पतली चादरों के रुप में परिवर्तित किया जा सकता है जैसे-मिठाइयों पर चढ़ा चांदी का वर्क) होता है, अतः इसके जेवरात बनाने के लिये, इसमें चांदी व तांबा मिलाया जाता हैं, जिससे यह कठोर हो जाये।
- जेवरात में सोने की मात्रा कैरेट (Carat/Karat) से प्रदर्शित करते हैं। कैरेट, सोने की मिश्र धातु में उपस्थित 24 भाग सोने की मात्रा है। अर्थात शुद्ध सोने का कैरेट मान 24 होता है। जैसे-जैसे सोने में धातु मिश्रित की जाती है। इसका कैरेट मान कम होता जाता है।
- कॉपर, निकिल, जिंक का उपयोग आजकल सिक्के बनाने में किया जाता है अत: इन्हें सिक्का धातुयें (Coinage Metals) कहा जाता है।
- एल्युमीनियम, चाँदी,सोना काफी आघातवर्द्ध धातुयें हैं,इन्हें पीटकर आसानी से पतली से पतली चादरों में बदला जा सकता है। मिठाइयों पर लगा चाँदी का वर्क तथा भोज्य पदार्थो, दवा, चाकलेट्स आदि के ऊपर लिपटा एल्युमीनियम वर्क (Foil) चांदी और एल्युमीनियम की आघातवर्द्ध के ही कारण सम्भव है।
- सीमेंट (Cement) में कैल्शियम आक्साइड, सिलिकन डॉइआक्साइड, एल्युमीनियम ऑक्साइड और अल्प मात्रा में आयरन ऑक्साइड होते है।
- जब सीमेण्ट में पानी मिला दिया जाता है तो सीमेंट के पदार्थ आपस में क्रिया करके कैल्सियम और एल्युमीनियम सिलिकेट्स का मिश्रण बनाते हैं, जिसे कंक्रीट (Concrete) कहते हैं।
- सिक्का धातु में 75% तांबा व 25% निकिल होता है।
- टांका (सोल्डर), टिन (67%) व सीसे (33%) की मिश्र धातु है।
- बेल्डिंग करने में ऑक्सीजन व ऐसीटिलीन गैस का मिश्रण प्रयोग किया जाता है।
- एक खनिज को अयस्क तब कहा जाता है, जब उससे धातु फायदेपूर्ण (व्यापारिक) बनाई जा सकती हो। इसीलिए सभी अयस्क खनिज होते हैं।
- खनिज अयस्क सामान्यतः मृदा अशुद्धियों जैसे- रेत, चट्टानों तथा चूने के पत्थर आदि से जुड़ा होता है, जो गैंग या मैट्रिक्स कहलाती है।
- ऐसे पदार्थ, जो जलीय विलयन में हाइड्रोजन आयन (H+) प्रदान करें या ऐसे पदार्थ, जो एक जोड़े इलेक्ट्रान को ग्रहण करें, अम्ल हैं, जैसे– HCl, H2SO4, HNO3 आदि।
- पदार्थ, जिनमें हाइड्रॉक्सिल समूह पाया जाता है तथा जिनके जलीय विलयन में हाइड्रॉक्सिल आयन (OH) उपस्थित रहते हैं या ऐसे पदार्थ जो प्रोटान ग्रहण करें या एक जोड़े इलेक्ट्रान को प्रदान करें, क्षार (Base) कहलाते हैं, जैसे—NaOH, KOH, Ca(OH)2, आदि।
- अधातु के आक्साइड अम्लीय गुण दिखाते हैं। यद्यपि उनमें H+ आयन नही होते हैं, जैसे- SO2, CO2, SO3 आदि।
- धातु के आक्साइड क्षारीय गुण दिखाते हैं। यद्यपि उनमें OH– नहीं होते हैं, जैसे- K2O, Na2O, Feo आदि।
- अम्ल और क्षार के बीच अभिक्रिया के उपरान्त यदि अम्ल के हाइड्रोजन का विस्थापन हो जाता है तो लवण (Salt) का निर्माण होता है। जैसे – HCl + NaOH = NaCl + H2O
- अम्ल नीले लिटमस पत्र को लाल कर देता है, तथा क्षार लाल लिटमस पत्र को नीला कर देता है।
- ph– मूल्य एक संख्या होती है जो पदार्थों की अम्लीयता या क्षारयीता को प्रदर्शित करती है। इसका मान हाइड्रोजन आयन (H+) के सान्द्रण के व्युत्क्रम के लघुगणक के बराबर होता है।
- ph का मान 0 से 14 के बीच होता है। जिन विलयनों का ph मान 7 से कम होता है, वे अम्लीय होते हैं तथा जिनका मान 7 से अधिक होता है, वे क्षारीय होते हैं।
- ph स्केल की खोज सोरेन्सन ने की।
- जल एक अम्ल तथा क्षार, दोनों की तरह कार्य करता है क्योंकि यह प्रोटॉन दे सकता है तथा प्रोटॉन ग्रहण कर सकता है।
- पेट की अम्लीयता को दूर करने के लिए प्रभावी अम्ल (Antiacid) के रुप में ऐल्यूमिनियम हाइड्राक्साइड [Al(OH)3] का प्रयोग किया जाता है।
- भाप, अंगार गैस, हाइड्रोजन तथा कार्बन मोनोआक्साइड गैसों का मिश्रण होती है। इसका उपयोग पेंट बनाने में किया जाता है।
- प्रोड्यूसर गैस में मुख्यतः नाइट्रोजन व कार्बन मोनोआक्साइड का मिश्रण है। इसमें 60% नाइट्रोजन, 30% कोबाल्ट व शेष कार्बन डाइआक्साइड व मीथेन गैस होती है। इसका प्रयोग ईंधन तथा कांच व इस्पात बनाने में किया जाता है।
- कोल गैस में 54% H2, 35% NH4, 11% CO, 5% हाइड्रोकार्बन व 3% CO2 आदि गैसों का मिश्रण होता है। कोयले के भंजक आसवन के द्वारा निर्मित, यह रंगहीन व विशेष गन्ध वाली गैस है, जो वायु के साथ विस्फोटक मिश्रण बनाती है।
- मेथिल आइसो साइनेट (MIC) को मिक गैस कहते हैं, यह अत्यन्त विषैली गैस है।
- वाटर गैस, कार्बन मोनो आक्साइड व हाइड्रोजन गैसों का मिश्रण। इस गैस से बहुत अधिक ऊष्मा की प्राप्त होती है। इसका प्रयोग अपचायक के रुप में एल्कोहल, हाइड्रोजन आदि के औद्योगिक निर्माण में होता है।
- मार्श गैस, मीथेन होती है, जो कि कोयले की खान व दलदली स्थानों से निकलती है।
- अश्रु गैस (Tear Gas) के रुप में अल्फा क्लोरो एसिटोफीनोल व एक्रोलीन प्रयुक्त की जाती है।
- हंसाने वाली गैस (Laughing Gas) N2O होती है।
- फास्फीन गैस का उपयोग समुद्री यात्रा में होम सिग्नल देने में किया जाता है।
- बेल्डिंग करने में ऑक्सीजन व एसीटिलीन गैस का मिश्रण प्रयोग किया जाता है।
- गोबर गैस का प्रमुख अवयव मीथेन होती है।
- मस्टर्ड गैस एक जहरीली गैस है, जिसका रासायनिक सूत्र CH2Cl-S-CH2-CH2CI (डाइक्लोरो एथिल डाइ सल्फाइड) होता है।
- घरों में ईंधन के रुप में प्रयुक्त की जाने वाली द्रवित प्राकृतिक गैस को एल. पी. जी. कहते हैं। यह ब्यूटेन तथा प्रोपेन आदि गैसों का मिश्रण होती है। इसके मुख्य अवयव ब्यूटेन व आइसो ब्यूटेन हैं।
- सी.एन.जी. अर्थात संपीडित प्राकृतिक गैस (Compressed Matural Gas-CNG) एक प्रकार की हाइड्रोकार्बन मिश्रित गैस है। इसमें 80-90% मात्रा मीथेन गैस की होती है। इसका प्रयोग वाहनों में ईंधन के रुप में होता है। इसे प्राकृतिक गैस भी कहते हैं। वाहनों में प्रयोग के लिए इसे 200 से 250 किग्रा. प्रति वर्ग सेटीमीटर तक दबाया या संपीडित किया जाता है। यह पर्यावरण मित्र गैस है।
- एथिलीन गैस का उपयोग कच्चे फलों को पकाने में किया जाता है।
- क्लैथरेट (Clathret) वस्तुत: जल के अणुओं में व्याप्त मीथेन गैस है। यह अत्यन्त ज्वलनशील गैस है, जो कि 350°C तापमान पर भी पिघलती नहीं है। वैज्ञानिकों का मत है कि भविष्य में यह विश्व का एकमात्र ईधन होगा।
- हाइड्रोजन पराक्साइड का प्रयोग रेशम, ऊन तथा हाथी दाँतों के विरंजन में किया जाता है।
- हाइड्रोजन पराक्साइड के तनु विलयन का प्रयोग कीटाणुनाशक के रुप में दांत, कान, घाव आदि धोने में किया जाता है।
- पुराने तैल चित्रों को चमकदार बनाने के लिए हाइड्रोजन पराक्साइड का प्रयोग किया जाता है।
- सोडियम हाइड्रॉक्साइड का प्रयोग सूती कपड़ों में चमक पैदा करने में भी किया जाता है।
- नाइट्रोजन की खोज डेनियल रदरफोर्ड ने तथा अमोनिया की खोज हैबर ने की थी।
- ऑक्सीजन की खोज प्रीस्टले ने तथा फास्फोरस की खोज ब्रांड ने की।
- क्लोरीन की खोज शीले ने तथा ओजोन की खोज स्कोनबेन ने की।
- रसायनों का राजा- सल्फ्युरिक अम्ल को कहा जाता है।
- सल्फ्युरिक अम्ल को ऑयल आफ विट्रोल (Oil of vitriol) कहते हैं।
- सर्वाधिक वैद्युत ऋणात्मक तत्व फ्लोरीन है।
- सर्वाधिक वैद्युत धनात्मक तत्व फ्रांसियम है।
- मानव निर्मित प्रथम तत्व पोलोनियम है।
- मतदाताओं की उंगलियों पर लगाई जाने वाली स्याही बनती है- सिल्वर नाइट्रेट से।
- लाल दवा पोटैशियम परमैगनेट को कहते हैं।
- ठोस कार्बन डाइऑक्साइड शुष्क बर्फ कहलाती है क्योंकि यह बिना द्रवित हुये वाष्पित हो जाती है।
- माचिस उद्योग में लाल फास्फोरस का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि यह विषैला नहीं होता है।
- पराबैंगनी किरणों को क्रुक्स काँच के द्वारा रोका जा सकता है। क्रुक्स कांच, सीरीयम ऑक्साइड से युक्त विशेष प्रकार का प्राकृतिक कांच है, जो ऑखों के लिए हानिकारक अल्ट्रावायलेट (UV) किरणों को रोक देता है।
- मेथिल एल्कोहल (CH3OH) को वुड एल्कोहल, वुड नेफ्था या वुड स्पिरिट भी कहते हैं।
- 100% एथिल एल्कोहल को एब्सोल्यूट एल्कोहल कहते हैं।
- शराब (Wine) में लगभग 12% एथिल एल्कोहल होता है। एथिल एल्कोहल की Spirit of Wine भी कहते हैं।
- बीयर में लगभग 4% एथिल एल्कोहल होता है।
- व्हिस्की और ब्रान्डी में 40-50% एथिल एल्कोहल होता है।
- मेथिलेटेड स्प्रिट या डिनेचर्ड स्प्रिट में 4% मेथिल एल्कोहल, सूक्ष्म मात्र में एसीटोन या पिरीडीन एवं कुछ कॉपर सल्फेट होता है।
- रेक्टिफाइड स्प्रिट में 95.6% एथिल एल्कोहल तथा 4.4% जल होता है। इसे कमर्शियल एल्कोहल भी कहते हैं।
- बेंजीन, पेट्रोल और एथिल अल्कोहल के मिश्रण को पावर एल्कोहल कहते हैं।
- भूपर्पटी में सबसे कम मात्रा में पाया जाने वाला तत्व एस्टैटीन (At) है।
- भूपर्पटी में सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्व आक्सीजन (O2) है।
- वायुमंडल में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्व नाइट्रोजन है।
- पृथ्वी की सतह में सबसे अधिक पाई जाने वाली धातु एल्युमीनियम है। पृथ्वी की सतह में प्रचुरता से पाई जाने वाली दूसरी धातु लोहा है। यह रक्त की लाल रुधिर कणिकाओं में भी पाया जाता है।
- ढलवां या कच्चा लोहा (Cast or Pig iron) लोहे का सबसे अशुद्ध रुप है। इसमें कार्बन की अधिकतम मात्रा 2.5-5% तक होती है।
- पिटवां लोहा या अघातवर्ध्य लोहा आक्सीजन से अभिक्रिया करके लौह ऑक्साइड जंग (Fe2O.XH2O) में परिवर्तित हो जाता है। इस अभिक्रिया के दौरान लोहे के साथ O2 की मात्रा भी जुड़ जाती है, जिससे लोहे का भार बढ़ जाता है।
- तिजोरियां, मैग्नीज इस्पात से बनाई जाती है।
- दर्पण के रजतीकरण में सिल्वर नाइट्रेट का उपयोग होता है।
- विद्युत खंभे ढलवां लोहे से बनाए जाते हैं।
- स्प्रिंग बनाने में क्रोमोवेनेडियम इस्पात नामक मिश्र धातु का प्रयेाग होता है।
- विस्फोटक वे पदार्थ हैं, जो दहन पर अत्यधिक ऊष्मा व तीव्र ध्वनि उत्पन्न करते हैं।
- टी.एन.टी. (Trinitrotoluene) हल्का पीला क्रिस्टलीय ठोस विस्फोटक है, जो टाल्वीन (C6H5CH3) को साथ सान्द्र सल्फ्युरिक अम्ल व सान्द्र नाइट्रिक अम्ल की क्रिया से बनाया जाता है।
- टी.एन.जी. (Trinitroglycerin) रंगहीन, तैलीय द्रव है, जो डायनामाइट के बनाने के काम में आता है। इसकी खोज अल्फ्रेड नोबेल ने की थी, इसे नोबेल का तेल (Nobel’s oil) भी कहते हैं।
- आर. डी. एक्स. (Research and developed explosive) इसका रासायनिक नाम साइक्लोट्राई मेथलीन ट्राईनाइट्रोमाइन है। इसे प्लास्टिक विस्फोटक भी कहा जाता है। इसे USA में साइक्लोनाइट, जर्मनी में हेक्साजोन तथा इटली में T-4 के नाम से जाना जाता है। इस विस्फोटक की खोज 1899 में जर्मनी के हैंस हंनिग ने की थी।
- डायनामाइट का अविष्कार अल्फ्रेड नोबेल ने 1863 में किया था। आधुनिक डायनामाइट में नाइट्रो ग्लिसरीन की जगह सोडियम नाइट्रेट का प्रयोग किया जाता है।
- गन पाउडर (आधुनिक विस्फोटक) की खोज, रोजर बेकन ने की।
- PETN एक अति संवेदनशील विस्फोटक है। रासायनिक नाम- Penta eargthritol tetranitramine.
- PENT की विस्फोटक गति 8.300 मी. प्रति सेकण्ड है, RDX की विस्फोटक गति 8,180 मी. प्रति सेकण्ड है, जबकि TNT की विस्फोटक गति 6900 मी. प्रति सेकण्ड है।
- PLX (Picatine liquid explosive) अत्यन्त खतरनाक विस्फोटक है। इसका निर्माण नाइट्रो मीथेन और एथलीन डाइयोमाइन के संयोग से होता है। रंगहीन व गंधहीन इस खतरनाक विस्फोटक का प्रयोग आत्मघाती दस्ते द्वारा किया जाता है।
- Guncotton- रुई अथवा लकड़ी के रेशों पर सान्द्र नाइट्रिक अम्ल की अभिक्रिया से पहाड़ों को तोड़ने तथा युद्ध में किया जाता है।
- नॉन स्टिक कुंकिग बर्तन बनाने में Teflon का प्रयोग किया जाता है, जो कि Tetrafluroethylene इकाइयों का बहुलक है।
- बहुलक (Polymer), Poly stieriene का उपयोग रेडियो व टेलीविजन कैबिनेट बनाने में तथा बोतलों की टोपियों को बनाने में किया जाता है।
- पी.वी.सी. (Poly Vinylchloride), विनाइल क्लोराइड मोनोमर का बहुलक है। इसका उपयोग बरसाती, सीट कवर, पतली चादर तथा बिजली के तार बनाने में किया जाता है।
- पालीथीन, एथलीन मोनोमर के द्वारा निर्मित होती है जिसका उपयोग थैलियां, ट्यूब, पैकिंग साम्रगी बनाने में किया जाता है। असंतृप्त हाइड्रोकार्बन, जैसे- एथलीन, प्रोपलीन आदि बहुलीकरण की क्रिया के पश्चात् जो उच्च बहुलक बनाते हैं उसे प्लास्टिक कहते हैं।
- डयुटेरियम ऑक्साइड अर्थात् भारी जल रंगहीन, गंधहीन तथा स्वादहीन होता है।
- नाभिकीय विखण्डन के लिए यूरेनियम-238 की तुलना में यूरेनियम-235 अधिक उपयोगी होता है क्योंकि यूरेनियम-235 का नाभिक अपेक्षाकृत अधिक अस्थायी होता है।
- द्रव का ताप बढ़ने पर उसका पृष्ठ-तनाव घटता है।
- केशिकात्व सिद्धान्त के कारण लालटेन में बत्ती के सहारे तेल चढ़ता है।
- पुरातत्व अवशेषों अथवा जीवाश्म की आयु निर्धारित करने के लिए रेडियो-सक्रिय कार्बन का उपयोग सबसे अधिक किया जाता है।
- हीरे का अपवर्तनांक सबसे अधिक होता है और पूर्ण आन्तरिक परावर्तन के कारण वह अत्यधिक चमकीला दिखाई देता है।
- जल की सतह पर कोई चिकनाई (जैसे, तेल या ग्रीज) गिराने पर जल का पृष्ठ तनाव घट जाता है।
- यदि किसी द्रव में घुलनशील पदार्थ मिलाया जाये, तो द्रव का पृष्ठ तनाव बढ़ जाता है।
- किसी भी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या, उस तत्व की परमाणु संख्या कहलाती है।
- किसी भी तरह के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों और न्यूटॉनों की संयुक्त संख्या, उस तत्व की द्रव्यमान संख्या कहलाती है।
- यदि क्लोरोफॉर्म को सूर्य के प्रकाश में वायुमण्डल में खुला छोड़ दिया जाए, तो वह विषैली गैस फॉस्जीन में बदल जाता है।
- वायुमण्डलीय मुक्त नाइट्रोजन को नाइट्रेट में परिवर्तन करने की प्रक्रिया नाइट्रेजन स्थिरीकरण कहलाती है।
- मिट्टी में क्षारकत्व के घटाने के लिए जिप्सम का प्रयोग किया जाता है।
- टेल्कम पाउडर के निर्माण में थियोफ्रेस्टस खनिज का उपयोग किया जाता है।
- पानी की स्थाई कठोरता दूर करने के लिए पोटैशियम क्लोराइड सर्वाधिक उपयुक्त है।
- धातुओं के टुकड़ों को टांका लगाने वाला मिश्रण, टीन और सीसा का मिश्रण होता है।
- प्लैटिनम सबसे कठोर धातु है। अधातु हीरा विश्व के सभी पदार्थों से अधिक कठोर है।
- अधिक भारी अणुओं में न्यूट्रॉनों की संख्या की अपेक्षा प्रोट्रॉनों की संख्या अधिक होती है।
- शुष्क बर्फ अर्थात् ठोस कार्बन डाइऑक्साइड को गर्म करने पर वह सीधे गैस में परिवर्तित हो जाती है।
- पिकरिक अम्ल एक कार्बनिक यौगिक है, जिसका उपयोग प्रयोगशालाओं में अभिकर्मक के रूप में किया जाता है।
- क्रीम एक प्रकार का दूध होता है, जिसमें वसा की मात्रा बढ़ जाती है तथा पानी की मात्रा कम हो जाती है।
- एक किलोग्राम शहद से लगभग 3500 किलो कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
ओजोन को क्षति पहुचोने वाली गैस व उनके स्रोत | |
गैस का नाम | स्रोत |
सी.एफ.सी.-11 | एरोसोल व फोम |
सी.एफ.सी.-12 और सी.एफ.सी.-22 | प्रशीतक |
हैलोजन (क्लोरीन, फ्लोरीन व ब्रोमीन) | अग्निशामक यंत्र |
मीथेन | कृषि, पशु एवं उद्योग |
नाइट्रस ऑक्साइड | औद्योगिक क्रियाकलाप |
कार्बन-डाई-ऑक्साइड | जीवाश्म ईंधन के जलने से |
सर्वाधिक प्रतिक्रियाशील ठोस तत्व | लीथियम |
सर्वाधिक प्रतिक्रियाशील तरल तत्व | सीजियम |
सर्वाधिक प्रतिक्रियाशील गैसीय तत्व | फ्लोरीन |
सर्वाधिक विद्युत ऋणात्मकता | फ्लोरीन |
सर्वाधिक आयनीकरण क्षमता | हीलियम |
रेडियो सक्रियता प्रकृति वाला तरल तत्व | पेंसियम |
आवर्त सारणी में रेडियोसक्रिय तत्वों की कुल संख्या | 25 |
वह तत्व जिसमें न्युट्रॉन नहीं होते | 1H1 |
पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में पाये जाने वाले तत्व | ऑक्सीजन |
पृथ्वी का सर्वाधिक दुर्लभ तत्व | एस्टेटीन |
पृथ्वी पर पाया जाने वाली प्रचुर मात्रा में धातु | एल्यूमिनियम |
वह तत्व जिसमें (श्रृंखला बनाने की) की सर्वाधिक चेष्टा होती है | कार्बन |
सर्वाधिक हल्का तत्व | हाइड्रोजन |
प्राकृतिक रुप में पाया जाने वाला सबसे भारी तत्व | Ս238 |
विद्युत का न्यूनतम सुचालक | लेड (धातु), सल्फर (अधातु) |
अधातु,जो देखने में धातु सदृश है | आयोडीन, ग्रेफाइट |
पदार्थ, जो गर्म करने पर उर्ध्वपतित हो जाते हैं | आयोडीन, कपूर, नैप्थलीन, गंधक |
अक्रिय धातु | प्लैटिनम, सोना |
उच्च गलनांक एवं उच्च क्वथनांक वाली अधातु | हीरा |
अत्यधिक फैलाव क्षमता वाला तत्व | बोरान |
नाभिकीय संयंत्र में प्रशीतक | D2O (भारी जल) |
सबसे नवीन खोजा गया तत्व | Hahnium (Ha, atomic no-105) Eka (Eka mercury atomic no. 112) |
पानी में रखा जाने वाला तत्व | पीला फॉस्फोरस |
केरोसिन तेल में रखा जाने वाला तत्व | सोडियम, पोटेशियम, आयोडीन, सीजियम (Cs) |
शुष्क बर्फ | ठोस कार्बन डाइऑक्साइड |
कृत्रिम विस्फोटक | डायनामाइट |
रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार पाने वाले प्रथम वैज्ञानिक | वांट होफ |
टिंचर आयोडीन | एल्कोहल में आयोडीन |
कुछ बहुआकृतिक तत्व | ऑक्सीजन, सल्फर, फॉस्फोरस |