शैवाल Algae
शैवाल पर्णहरिमयुक्त, संवहन उतक रहित, थैलोफाइट्स हैं, जिनके थैलस में वास्तविक जड़ें, तना तथा पत्तियां आदि नहीं होते। इनमें सूक्ष्म एककोशीय पौधों से लेकर विशालकाय बहुकोशीय पौधे पाये जाते हैं। इनमें जननांग प्रायः एककोशीय होते हैं, यद्यपि कुछ भूरे रंग के शैवालों में ये बहुकोशीय भी होते हैं। वनस्पति-विज्ञान की वह शाखा, जिसमें शैवाल का अध्ययन करते हैं, फाइकोलॉजी कहलाती है।
शैवालों का आर्थिक महत्त्व
शैवाल खाद्य के रुप में
शैवालों में कार्बोहाइड्रेट्स, अकार्बनिक पदार्थ तथा विटामिन्स प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। विटामिन ए, सी, डी और इ इनमें मुख्य रुप से होते हैं। फियोफायसी वर्ग का शैवाल पोरफाइरा, सामान्य रुप से जापान में खाया जाता है। जापान तथा निकटवतीं देशों में एलेरिया, अलवा, सारगासम, लेमिनेरिया आदि शैवाल शाक के रुप में प्रयोग किये जाते हैं। लेमिनेरिया नामक शैवाल से आयोडीन उत्पन्न होती है। अलवा को प्रायः समुद्री सलाद कहते हैं। कुछ शैवालों, जैसे- जेलीडियम, ग्रेसीलेरिया आदि से अगार-अगार नामक पदार्थ प्राप्त होता है जो कि जैली तथा आइसक्रीम बनाने के काम आता है। जापान में सारगासम से कृत्रिम ऊन का निर्माण किया जाता है। कोराड्रस नामक शैवाल से श्लेष्मिक नामक पदार्थ निकाला जाता है, जिसका प्रयोग श्रृंगार-प्रसाधनों, जूतों की पालिश तथा शैम्पू आदि बनाने में होता है।
नाइट्रोजन स्थिरीकरण
मिक्सोफाइसी वर्ग के पौधे, जैसे नोस्टोक, एनाबीना आदि वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को पौधों के काम में आने योग्य यौगिकों में परिवर्तित करते हैं।
शैवाल का औषधीय महत्त्व
क्लोरेला से एक प्रतिजैविक क्लोरेलीन तैयार की जाती है। कारा तथा नाइटेला नामक शैवाल जलाशयों में उपस्थित मच्छरों को मारकर मलेरिया उन्मूलन में सहायक होते हैं।