भारत का प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम India’s Missile Development Program
5 घोषित परमाणु राज्यों (चीन, ब्रिटेन, फ़्रांस, रूस, और संयुक्त राज्य अमेरिका) के बाद, भारत के पास सबसे उन्नत मिसाइल कार्यक्रमों में से एक है| भारत अपने परिष्कृत मिसाइल और अंतरिक्ष कार्यक्रमों के साथ, देश में ही लंबी दूरी की परमाणु मिसाइलों के विकास में तकनीकी रूप से सक्षम है। बैलिस्टिक मिसाइलों में भारत का अनुसंधान 1960 के दशक में शुरू हुआ। जुलाई 1983 में भारत ने स्वदेशी मिसाइल के बुनियादी ढांचे को विकसित करने के उद्देश्य के साथ समन्वित निर्देशित प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम (Integrated Guided Missile Development Program- IGMDP) शुरुआत की। आईजीएमडीपी द्वारा देश में ही विकसित सबसे पहली मिसाइल पृथ्वी (पृथ्वी) थी। भारत की दूसरी बैलिस्टिक मिसाइल प्रणाली, अग्नि (आग) मिसाइलों की श्रृंखला है, जिसकी मारक क्षमता पृथ्वी मिसाइलों से ज्यादा है, साथ ही अग्नि मिसाइलों से अधिक उन्नत भी है|
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भारत की विभिन्न मिसाइलें उसकी सुरक्षा प्रणाली का बेहद अहम हिस्सा है| अग्नि मिसाइलें भारतीय मिसाइल प्रणाली की रीढ़ हैं| भारत की कुछ प्रमुख मिसाइलें इस प्रकार हैं-
बैलिस्टिक मिसाइल Ballistic Missiles
पृथ्वी मिसाइल प्रणाली Prithvi missile system
भारत में सबसे पहले छोटी दूरी के लिए पृथ्वी मिसाइलों का विकास शुरू किया| इन मिसाइलों का विकास 1983 में हैदराबाद में शुरू किया गया और इसका पहला परीक्षण श्रीहरिकोटा, शार केंद्र (SHAR-‘Sriharikota Range’ now ‘Satish Dhawan Space Centre’) नेल्लोर जिले, आंध्र प्रदेश से 25 फ़रवरी 1988 को किया गया| पृथ्वी-1 भारत में विकसित स्वदेशी तकनीकी से बनी बैलिस्टिक मिसाइल थी, जिसकी क्षमता 150 किमी. थी| पृथ्वी मिसाइलों के कई संस्करण हैं- जिनमे पहला था SS-150 या P1, जिसकी क्षमता 150 किमी. है| दूसरा संस्करण SS-250 या P2 है, जिसकी क्षमता 250 किमी. तक है| 350 किमी तक मारक क्षमता वाली पृथ्वी-III मिसाइलों का परीक्षण सन 2004 में किया गया| पृथ्वी-1 मिसाइलों का प्रयोग भारतीय थल सेना द्वारा किया जाता रहा, और पृथ्वी-II मिसाइलों का प्रयोग भारतीय वायुसेना द्वारा किया जाता है| पृथ्वी मिसाइलों के नौसैनिक संस्करण को धनुष (Dhanush) मिसाइल के नाम से भी जाना जाता है| जो पृथ्वी-1 और पृथ्वी-2 मिसाइलों का ही विकसित रूप है| वास्तव में पृथ्वी मिसाइलों का विकास नाभिकीय अस्त्र लि जाने के लिए किया गया था, परन्तु अधिक उन्नत अग्नि मिसाइलों के सफल परीक्षण के बाद इन मिसाइलो पर नाभिकीय अस्त्रों की आवश्यकता नहीं रह गयी| धनुष मिसाइलों का पनडुब्बी संस्करण भी विकसित करने के प्रयास किया जा रहा है|
पृथ्वी-I व पृथ्वी-II मिसाइलें तरल ईंधनों से युक्त थीं| पृथ्वी-III मिसाइलें एक चरण वाले ठोस ईंधनो से युक्त होती हैं, जिससे ये मिसाइलें विभिन्न स्थानों और परिस्थितियों में बहुत ही कम समय में तैयार करके दागी जा सकती हैं| पृथ्वी-1 मिसाइलें 1994 में भारतीय सेना में शामिल की गयीं, जिनका संचालन सिकंदराबाद में भारतीय सेना के 333वें मिसाइल समूह द्वारा किया जाता रहा| 444वें मिसाइल समूह की स्थापना मई 2002 में की गयी जो पृथ्वी और अग्नि-1 मिसाइलों के संचालन की देख-रेख करता है|
पृथ्वी मिसाइलों SS-150 का उत्पादन 1993 में शुरू हुआ, और 1999 तक लगभग 60 मिसाइलें बनायीं गयीं| इनके प्रक्षेपण के लिए 35 प्रक्षेपण वाहनों (transport erector launcher–TEL) का भी निर्माण किया गया|
पृथ्वी-II या SS-250 को भारतीय वायु सेना में 1999 में शामिल किया गया और आक अनुमान के अनुसार लगभग 70 मिसाइलों का निर्माण किया गया| बाद में इनका नियंत्रण, मिसाइल संचालन करने वाले थल सेना के समूह को दे दिया गया, जो अपने लक्ष्यों के लिए वायुसेना के संपर्क में रहता है|
पृथ्वी-III मिसाइलों परीक्षण नवम्बर 1993 और अप्रैल 2001 में किया गया, परन्तु अभी यह निश्चित नहीं है की इनका विकास आगे किया जा रहा है या नहीं|
युद्ध-पोतों से प्रक्षेपित की जा सकने वाली पृथ्वी मिसाइलों के नौसैनिक संस्करण धनुष का परीक्षण आई.एन.एस. सुभद्रा से अप्रैल 2000 में किया गया| यह परीक्षण असफल रहा| इसके दूसरे परीक्षण दिसम्बर 2000 और सितम्बर 2001 में किये गए, जिसमे इन मिसाइलों ने 150 किमी. की निर्धारित दूरी तय की|
पृथ्वी मिसाइलें सभी प्रकार के पारंपरिक और सामरिक हथियार ले जाने में सक्षम हैं|
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अग्नि मिसाइल प्रणाली Agni missile system
भारत ने मध्यम दूरी की, सतह से सतह पर मार करने वाली, अग्नि मिसाइल प्रणाली पर 1979 में कम शुरू किया और इनका पहला परीक्षण 1989 में किया गया| परन्तु उत्तरोत्तर सरकारों ने अन्तर्राष्ट्रीय दबावों में इसके अगले परीक्षण नहीं किये| अग्नि -1 का परीक्षण 1990 के मध्य में किया गया, और इसे प्रौद्योगिकी का विकास (technology demonstrator) बताया गया| 1998 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की अगुवाई वाली सरकार ने अग्नि मिसाइलों के विकास को नई दिशा दी| इस प्रकार 1999 में अग्नि –II का परीक्षण किया गया, और सन 2002 में अग्नि-I का भी परीक्षण किया गया| अग्नि मिसाइलें अंतरवर्ती दूरी (Intermediate-Range Ballistic Missile-IRBM) तक प्रहार करने वाला बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र है| इसमें मुख्य रूप से ठोस प्रणोंदकों का ही इस्तेमाल होता है (SLV-3 के समान)| अग्नि मिसाइलों का ताप परिरक्षक (Heat Shield) कार्बन सम्मिश्रणों (composite) का बना होता है, जिसके कारण ये उच्च तापमान लगभग 5000°C, को भी सहन कर सकती हैं| अमेरिका, रूस, फ़्रांस, इजराइल और चीन के बाद भारत ऐसी प्रणाली विकसित करने वाला 6वां देश है|
अग्नि-1 Agni – I
कम दूरी के लिए अग्नि-I का विकास 1999 में शुरू हुआ| यह 1990 में परीक्षण की गयी अग्नि मिसाइलों पर ही आधारित था| अपने पेलोड के साथ इसकी मारक क्षमता 1200 किमी. तक है| अग्नि-I का विकास कम समय में परमाणु क्षमता प्रदान करने के लिए किया गया है| परमाणु क्षमता संपन्न अग्नि – 1 प्रक्षेपास्त्र का ताजा परीक्षण 25 नवंबर 2010 एवं दिसंबर 2011 में किया गया| अग्नि – 1 को पहले ही भारतीय सेना में शामिल कर लिया गया है लेकिन सेना से जुड़े लोगों के प्रशिक्षण और उनकी कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए इसका समय-समय पर प्रायोगिक परीक्षण किया जाता है|
अग्नि-2 Agni – II
2000 किमी. की मारक क्षमता वाली अग्नि – II मिसाइलों का सबसे पहले परीक्षण अप्रैल 1999 में किया गया था| 2009 में इनका दो बार परीक्षण असफल हो गया था| मई 2010 में इसका सफल परीक्षण किया गया| ये एक टन तक का पेलोड ले जा सकती है| सितंबर 2011 में एक बार फिर अग्नि-2 का सफल परीक्षण किया गया. अग्नि-2 भारतीय सेना में शामिल की जा चुकी है|
अग्नि-3 Agni – III
3500 किमी. की मारक क्षमता वाली, और 1.5 टन तक का पेलोड लि जा सकने में सक्षम अग्नि-3 मिसाइलों को 2006 में परीक्षण किया जिसे आंशिक रूप से ही सफल बताया गया| 2007 और 2008 में अग्नि-3 का सफल प्रशेपण किया गया| अग्नि-3 का चौथा परीक्षण फरवरी 2010 में उड़ीसा के पास व्हीलर आईलैंड में किया गया|
अग्नि – 4 Agni – IV
3000 किमी. से अधिक मारक क्षमता, 1000 किग्रा. से अधिक पेलोड ले जाने में सक्षम अग्नि-4 मिसाइलों का सफल प्रक्षेपण नवंबर 2011 में किया गया| ये मिसाइलें अपने पूर्ववर्ती संस्करणों से हल्की, परन्तु तकनीकी रूप से अधिक उन्नत हैं| इनका पहला परीक्षण दिसम्बर 2010 में हुआ था, परन्तु तकनीकी कारणों से ये परीक्षण असफल रहा था| अग्नि-3 मिसाइलें अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (intercontinental ballistic missile, ICBM) हैं|
अग्नि मिसाइलें सभी प्रकार के पारंपरिक और सामरिक हथियार ले जाने में सक्षम हैं| नई तकनीकों जैसे अति आधुनिक कम्प्यूटर और नेवीगेशन सिस्टम के इस्तेमाल के कारण ये मिसाइलें अचूक हैं| अग्नि मिसाइलों की श्रृंखला को डीआरडीओ (Defense Research and Development Organization, DRDO) द्वारा विकसित किया गया है और भारत डायनामिक्स लिमिटेड (Bharat Dynamics Limited) द्वारा इनका निर्माण किया जाता है|
अग्नि -5 Agni – V
भारत ने अपनी पहली अंतरमहाद्वीपीय दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल अग्नि-5 का परीक्षण अप्रैल 2012 में किया| 5000-8000 किमी की मारक क्षमता वाली इस मिसाइल को भी MIRV के रूप में विकसित किया गया है, जो एक बार में 3 से ज्यादा हथियारों को ले जाने में सक्षम है|
अग्नि-6 Agni-VI
इनके आलावा अग्नि-VI का विकास, 2008 में आईजीएमडीपी कार्यक्रम के समाप्त होने के बाद, डीआरडीओ द्वारा किए गए नीति में परिवर्तन के अनुसार स्वतंत्र परियोजनाओं के तहत किया जा रहा है| अग्नि-VI को भी मल्टीपल इंडिपेंडिबल री- एंट्री व्हीकल यानी एमआईआरवी (Multiple independently targetable reentry vehicle-MIRV) के रूप में विकसित करने के प्रयास किये जा रहें हैं, जो एक बार में 4-6 हथियार ले जाने में सक्षम होगा|
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त्रिशूल मिसाइल प्रणाली Trishul Missile System
त्रिशूल मिसाइल सतह से हवा में मार करने वाली पहला स्वदेशी सक्षम प्रक्षेपास्त्र है| इसे सेना के तीनो अंग प्रयोग कर सकते हैं| इसकी मारक क्षमता 500 मी. से लेकर 12 किमी. तक है| यह 5.5 किग्रा. तक के विस्फोटकों को के जा सकती है, इलेक्ट्रॉनिक संसूचकों (detector) की मदद से लक्ष्य के करीब इनमे विस्फोट होता है| इनमे ठोस प्रणोदकों का इस्तेमाल होता है| भारत ने आधिकारिक तौर पर 27 फ़रवरी 2008 के बाद त्रिशूल मिसाइल परियोजना बंद कर दी, परन्तु तकनीकी दक्षता हासिल करने के लिए इसका परीक्षण किया जा सकता है|
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धनुष मिसाइल Dhanush Missile
पृथ्वी और अग्नि मिसाइल की सफलता के बाद भारतीय वैज्ञानिकों ने समुद्र से सतह पर प्रहार करने वाली धनुष मिसाइल को विकसित किया| यह मिसाइल पृथ्वी मिसाइल का ही नौसैनिक संस्करण है| इसे डीआरडीओ ने विकसित किया है और निर्माण भारत डाइनेमिक्स लिमिटिड द्वारा इसका निर्माण किया जाता है| यह 500 किग्रा. तक के पेलोड ले जाने में सक्षम है|
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आकाश मिसाइल प्रणाली Akash missile system
सतह से हवा में मार करने में सक्षम आकाश मिसाइलें माध्यम दूरी के प्रक्षेपास्त्र हैं, जिनकी मारक क्षमता 25-30 किमी. है| आकाश मिसाइलें 2.5 मैक की पराध्वनिक रफ़्तार पर उडती हैं| ये 18 किमी. तक की ऊंचाई तक भी जा सकती हैं| अक्सः मिसाइलें 55 किग्रा. तक के वॉरहेड्स का वहन कर सकती हैं| ये मिसाइलें रैमजेट तकनीक पर आधारित हैं| इनमे दो चरणों वाले ठोस प्रणोदकों का इस्तेमाल होता है| आकाश मिसाइलें देश में ही विकसित राजेन्द्र राडार से एकीकृत होती हैं, जिनके द्वारा इन्हें निर्देश दिया जाता है| इस मिसाइलों का पूर्ण रूप से राडार द्वारा ही नियंत्रण किया जाता है|
आकाश मिसाइलों का विकास 1990 में शुरू किया गया था और इनका पहला परीक्षण मार्च 1997 में किया गया था|
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नाग मिसाइल Nag Missile
दागो और भूल जाओ (Fire-and-forget) के सिद्धांत पर विकसित नाग मिसाइल एक टैंक रोधी (anti-tank missile) है, जिसकी क्षमता 3-7 किमी है| इसमें ठोस प्रणोदकों का इस्तेमाल होता है| नाग मिसाइलों में अवरक्त प्रतिविम्ब प्रणाली (Imaging Infra-Red, IIR) का प्रयोग किया जाता है, जिसके कारन दिन और रात दोनों समय इससे अचूक निशाना लगाया जा सकता है| नाग मिसाइलों का हेलीकाप्टर में प्रयोग किया जा सकने वाला संस्करण भी विकसित किया जा चुका है, जिसे हेलिना (HELINA – HELIcopter NAg) के नाम से जाना जाता है| इसे HAL द्वारा विकसित ध्रुव हेलीकाप्टरों में लगाया गया है|
इन मिसाइलों के प्रक्षेपण के लिए एक थर्मल इमेजर से लैस विशेष वाहन नामिका (NAMICA-Nag Missile Carrier) का भी विकास किया गया है|
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पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट लांचर Pinaka Multi Barrel Rocket Launcher
पिनाका मल्टी बैरल रॉकेट प्रणाली को जिसे भारतीय सेना के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा विकसित किया गया है| ये प्रणाली अधिकतम 40-65 किमी. तक के पाने लक्ष्यों को भेद सकती है| इस प्रणाली से 44 सेकंड में 72 रॉकेट दागे जा सकते हैं, जो 4 वर्ग किमी. के क्षेत्र को तबाह कर सकते हैं| इसके अलग-अलग राकेटों को अलग-अलग दिशा में भी दागा जा सकता है| इस प्रणाली की गतिशीलता के लिए इसे एक टाट्रा (Tatra) ट्रक पर लगाया जाता है| पिनाका मिसाइल प्रणाली का विकास 1986 में शुरू हुआ था और दिसम्बर 1992 में इस पर काम पूरा हुआ|
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निर्भय मिसाइल Nirbhay Missile
17 अक्टूबर, 2014 को भारत ने DRDO द्वारा स्वदेशी तकनीकी से विकसित देश की पहली अध्वनिक (subsonic) मिसाइल निर्भय का परीक्षण किया| टर्बोजेट इंजन और ठोस प्रणोदकों पर आधारित इस मिसाइल की रफ़्तार 0.65 मैक है| यह मिसाइल 450 किग्रा. तक के पेलोड के साथ 800-1000 किमी. की दूरी तक मार करने में सक्षम है| इस मिसाइल में एक खास तरह का फायर एंड फोरगेट सिस्टम लगा है, जिसे जाम नहीं किया जा सकता। यह मिसाइल उच्च तकनीक पर आधारित है, इसे सामान्य मिसाइलों की तरह ही प्रक्षेपित किया जाता है, लेकिन एक निश्चित ऊंचाई पर पहुँचने के बाद इसमें लगे पंख खुल जाते हैं, और यह एक विमान की तरह काम करने लगती है|
निर्भय मिसाइल कई विशेषताओं से युक्त है, जैसे यह कम ऊंचाई पर उडती है जिसकी वजह से यस राडार के पकड़ में आसानी से नहीं आती| इसे दूर से नियंत्रित किया जा सकता है, लक्ष्य के पास पहुँचाने के बाद ये उसके इर्द-गिर्द चक्कर लगा सकती है और सटीक मौके पर हमला कर सकती है| ये मिसाइलें काफी कुशल हैं, जिन्हें भिन्न-भिन्न पेलोड के साथ विभिन्न प्लेटफार्म से प्रक्षेपित किया जा सकता है| इस मिसाइल को प्रमुख तौर पर वायु सेना और नौसेना के लिए विकसित करने की योजना है|
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प्रहार मिसाइल Prahaar Missile
प्रहार कम दूरी की (Short-Range Ballistic Missile, SRBM) बैलिस्टिक मिसाइल है, जिसे तुरंत प्रतिक्रिया देने के लिया विकसित किया गया है| यह मिसाइल 250 सेकेंड के भीतर, 150 किमी की दूरी तक अपने लक्ष्यों को भेद सकती है| इस नई मिसाइल से वर्तमान मल्टी बैरल रॉकेट प्रणाली वाली पिनाका और परमाणु सामग्री ले जाने में सक्षम पृथ्वी मिसाइलों के बीच के अंतर को दूर किया जा सकेगा। पिनाका 40 किलोमीटर तक जबकि पृथ्वी 350 किलोमीटर तक के लक्ष्य को भेद सकती है। एक चरण वाले ठोस ईंधनों से युक्त यह मिसाइल 200 किग्रा. तक का पेलोड ले जा सकने में सक्षम है| इस मिसाइल का पहला परीक्षण जुलाई 2011 में किया गया था|
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शौर्य मिसाइल Shaurya Missile
सतह से सतह पर वार करने में सक्षम मध्यम दूरी की मारक क्षमता वाली बैलिस्टिक मिसाइल ‘शौर्य’ का सफलतापूर्वक परीक्षण सितम्बर 2011 में किया गया था| इस मिसाइल का पहला परीक्षण 2004 में किया गया था| शौर्य मिसाइलों की मारक क्षमता 700 किमी. है| दो चरणों वाले ठोस प्रणोदकों से युक्त यह मिसाइल 500-800 किग्रा. तक का पेलोड ले जा सकती है| यह मिसाइल जमीन के अलावा पानी के भीतर से भी छोड़ी जा सकती है|
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सागरिका मिसाइल Sagarika (K–15) Missile
भारत ने समुद्र से प्रक्षेपित की जा सकने वाली बैलिस्टिक मिसाइल (Sea Launched Ballistic Missile, SLBM) का भी विकास किया है| सागरिका का परीक्षण 2008 में किया गया था| DRDO द्वारा विकसित यह मिसाइल 500-800 किग्रा. के पेलोड के साथ 700 किमी. की दूरी तक के लक्ष्यों को निशाना बना सकती है| इसमें दो चरणों वाले ठोस प्रणोदकों का इस्तेमाल होता है| शौर्य मिसाइल इसका जमीनी संस्करण ही है|
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सूर्य मिसाइल Surya Missile
भारत एक अंतर-महाद्वीपीय दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल (Intercontinental Range Ballistic Missile-IRBM) विकसित करने का प्रयास कर रहा है, जो एक MIRV मिसाइल होगी| यह मिसाइल 2500 किमी. के पेलोड के साथ 8000-10000 किमी. की दूरी तक लक्ष्यों को भेदने में सक्षम होगी| इसका पहला परीक्षण 2015 में होने की सम्भावना है|
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ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र BrahMos Missile (PJ–10)
ब्रह्मोस मिसाइल भारत और रूस के द्वारा विकसित की गयी पराध्वनिक (supersonic) मिसाइल है| यह अब तक की सबसे आधुनिक मिसाइल प्रणाली है, जिसने भारत को मिसाइल तकनीक में अग्रणी देश बना दिया है| इसकी गति और सटीकता के कारण, ब्रह्मोस को सबसे दुर्जेय क्रूज मिसाइलों में से एक माना जाता है। 12 फरवरी 1998 को भारत में डीआरडीओ और रूस के एनपीओ मशीनोस्त्रोयेनिशिया (DRDO and Mashinostroyenia-NPOM) के बीच एक समझौता हुआ और ब्रह्मोस एयरोस्पेस (BrahMos Aerospace) का गठन किया गया| ब्रह्मोस नाम भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मस्कवा (Brahmaputra and Moscow) नदी पर रखा गया है। इस सयुंक्त उपक्रम का उद्देश्य था विश्व के सबसे पसले सुपरसोनिक मिसाइलों को विकसित करना और बेचना|
डीआरडीओ के डा. ए. शिवथानु पिल्लई (Dr. A. Shivathanu Pillai) और एनपीओ के डॉ. हर्बर्ट येफ्रेमोव (Dr. Herbert Yefremov) ने इस मिसाइल को विकसित करने में अहम् भूमिका निभाई|
ब्रह्मोस मिसाइल का पहला परीक्षण 12 जून 2001 को, उड़ीसा तटीय क्षेत्र में चाँदीपुर के एकीकृत परीक्षण स्थल (Interim Test Range off
The Chandipur coast in Orissa – ITR) से किया गया| अब तक इसके कई संस्करण विकसित किये जा चुके हैं| रैमजेट तकनीक पर आधारित ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल 200-300 किग्रा पेलोड के साथ 300 किमी. की दूरी पर अपने लक्ष्यों को भेद सकती है| इस मिसाइल को जमीन से, हवा से, पनडुब्बियों से, युद्ध पोतो से अर्थात कहीं से भी प्रक्षेपित किया जा सकता है| ब्रह्मोस के मेनुवरेबल संस्करण का भी परीक्षण किया जा चुका है, जिससे प्रक्षेपित किये जाने के बाद अपने लक्ष्य तक पहुँचने से पहले ही इसका मार्ग बदला जा सकता है|
भारत की भविष्य में ब्रह्मोस-2 नाम से हाइपर सोनिक मिसाइल मिसाइल बनाने की भी योजना है, जो 7 मैक की गति से अपने लक्ष्यों को भेदने में सक्षम होगी| इस मिसाइल का विकास भारत को बिना रूस की सहायता से अपने दम पर करना होगा, क्योंकि रूस ने अंतरराष्ट्रीय मिसाइल तकनीक नियंत्रण संधि (Missile Technology Control Regime-MTCR) पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसके कारण वह 300 किमी से अधिक मारक क्षमता वाली मिसाइल के विकास में अन्य देशों को मदद नहीं दे सकता है।
ब्रह्मोस मिसाइलों को थल सेना एवं नौसेना में शामिल किया जा चुका है।