मंदिरों का शहर, भुवनेश्वर Bhubaneswar, City of temples

1948 में भारत देश के उड़ीसा राज्य की राजधानी बनने से पहले भुवनेश्वर को मंदिरों या देवताओं के घर के रूप में जाना जाता था। भुवनेश्वर हमेशा से एक महत्वपूर्ण समृद्ध हिंदू सांस्कृतिक केंद्र रहा है। इसके आलावा यह बौद्ध धर्म, जैन धर्म, शैव और वैष्णव सम्प्रपयों का केंद्र भी रहा है। प्राचीन काल में यह कलिंग और उत्कल के नाम से जाना जाता था। ऐसा माना जाता है की यह शहर भगवान शिव के लिंगराज मंदिर के आस-पास विकसित हुआ। भुवनेश्वर शब्द तीन प्रमुख देवों के नाम ‘त्रिभुनेश्वर’ से विकसित हुआ। अपने धार्मिक चरित्र के कारण ही इस शहर का उड़ीसा की राजधानी के रूप में चयन किया गया, हालाँकि इस शहर का कभी भी राजनैतिक महत्त्व नहीं रहा। लेकिन उड़िया लोगों ने इस बात को दृढ़ता से महसूस किया की यह शहर उड़िया भावना और एकता का उदाहरण है, अतः भुवनेश्वर 1936 में 11वें ब्रिटिश प्रांत की राजधानी बना।

उड़ीसा के अलग प्रांत के रूप में बनने से पहले यह राज्य अपनी जातीय और भाषाई अनिवार्यताओं की पूर्ण उपेक्षा के साथ कलकत्ता और बिहार के साथ प्रशासित किया जाता रहा।  इस राज्य में पहले बंगालियों और बाद में बिहारी लोगों का प्रभुत्व रहा, परन्तु यहाँ के उड़िया लोगों ने, स्वयं को उत्कल  संघ  सम्मेलन  के  बैनर  तले उड़िया प्रदेश के लोगों को एकत्रित करके एक सफल संघर्ष का शुभारम्भ किया| 13 अप्रैल 1945 को इस क्षेत्र के राज्यपाल हाथ्रोन लुईस (Hawthorne Lewis) के सलाहकार बी.के. गोखले (B. K. Gokhale) ने पडोसी शहर कटक (Cuttack) की अपेक्षा भुवनेश्वर को प्रान्त की राजधानी के लिए अधिक उपयुक्त माना और भुवनेश्वर को उड़ीसा की राजधानी बनाने की सिफारिश की| गोखले को उस समय के युवा उड़िया कांग्रेसी नेता हरेकृष्ण महताब (Harekrushna Mahtab) का भी समर्थन मिला| द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यहाँ बने एअरपोर्ट के कारण ये दोनों नेता इस शहर को राजधानी बनाने के लिए आकर्षित थे| गोखले भुवनेश्वर को शैक्षिक और सांस्कृतिक केंद्र और कटक को वाणिज्यिक क्षेत्र के रूप में विकसित करना चाहते थे|

भुवनेश्वर शहर के नियोजन का काम जर्मन वास्तुकार ओटो एच कोनिंग्सबर्गेस (Otto. H. Koeingsberges) को दिया गया| जिन्होंने नए शहर के निर्माण पर जोर दिया| कोनिंग्सबर्गेस की दृष्टि में इस शहर को आधुनिक जीवन की आवश्यकताओं के साथ नई वास्तु कला, वाणिज्य, धर्मनिरपेक्षता एवं राजनितिक स्वायत्तता को समायोजित करना था| इस प्रकार विकसित भुवनेश्वर का औपचारिक रूप से ओडिशा के भारतीय राज्य की राजधानी के रूप में 13 अप्रैल 1948 में उद्घाटन किया गया। कोनिंग्सबर्गेस ने भुवनेश्वर को इस प्रकार से विकसित करने की कोशिश की जहाँ भारतीय अधिक स्वतंत्र रूप से अपने विचारों पर काम करने में सक्षम हों, जबकि चंडीगढ़ के फ़्रांसिसी वास्तुकार ली कार्बुजिए (Le Corbusier) ने सभी वास्तु योजनाओं पर अपना नियंत्रण बनाये रखा था|

कहा जाता है की किसी समय भुवनेश्वर में 7000 मंदिर थे, जिसके कारण भुवनेश्वर को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है| अभी भी इस शहर में 700 से अधिक मंदिर हैं| भुवनेश्वर कला और शिल्प का एक केंद्र भी है, जो अपनी समृद्ध विरासत और  सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के लिए जाना जाता है। भुवनेश्वर में हिंदू, बौद्ध, वैष्णव और जैन धर्म के अनेक मंदिरों और गुफाओं में पत्थर अतीत की शानदार इंजीनियरिंग कौशल को प्रदर्शित करते है| वर्तमान और अतीत के संगम पर भुवनेश्वर में स्थित लिंगराज मंदिर, राजारानी मंदिर, जैन मंदिर, खंडगिरी और उदयगिरी की गुफाएँ और धौली जिसे शांति का सफ़ेद गुम्बद भी कहा जाता है, इस शहर के गौरवशाली इतिहास के गवाह हैं| ओडिशा का सबसे बड़ा यह शहर भारत ही नहीं बल्कि दुनिया का एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन केंद्र भी है|

यहाँ के अन्य प्रमुख दर्शनीय स्थल लक्ष्मनेश्वर मंदिरों का समूह, परसुरामेश्वर मंदिर, स्वर्नाजलेश्वर मंदिर, मुक्तेश्वर मंदिर, वैताल मंदिर, ब्रह्मेश्वर मंदिर, मेघेश्वर मंदिर, वस्करेश्वर मंदिर, अनंत वासुदेव मंदिर, साड़ी मंदिर, कपिलेश्वर मंदिर, मारकंडेश्वर मंदिर, यमेश्वर मंदिर, चित्रकरिणी मंदिर, सिसिरेश्वर मंदिर आदि हैं| इसके आलावा मां कनकदुर्गा पीठ, और इस्कोन मंदिर भी प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं| प्राचीन मंदिरों का सावधानी से संरक्षण भी किया जा रहा है|

लिंगराज मंदिर Lingaraj Temple

ओडिशा के इस सबसे प्राचीन मंदिर को सोमवंश के राजा ययाति ने 11विन शताब्दी में बनवाया था| नगर शैली में बना यह मंदिर लगभग 185 फिट ऊँचा है| कहा जाता है यह मंदिर विस्मय और कौतुहल का वास्तविक संयोजन है (the truest fusion of dream and reality)| इस मंदिर की मूर्तियां का निर्माण चारकोलिथ पत्रों से किया गया है, जिन पर समय का प्रभाव नहीं पड़ता है और ये आज भी चमक रहीं है| यह मंदिर भगवान शिव के एक रूप हरिहारा को समर्पित है| मंदिर में स्थित भोग मंडप में मनुष्य और जानवरों को संभोग करते हुई मूर्तियां उकेरी गयी गई| इस मंदिर में सिर्फ हिन्दुओं को प्रवेश की अनुमति है|


लिंगराज मंदिर और अनंत वासुदेव मंदिर के बीच में बिंदु सरोवर स्थित है, जिसमे भारत की सभी पवित्र नदियों का जल है|

राजारानी मंदिर Rajarani Temple

इस मंदिर का भी निर्माण 11वीं शताब्दी में कराया गया था| यह खुबसूरत लाल और सुनहरे बलुआ पत्थरों से बना है| इन पत्थरों को स्थानीय भाषा में राजारानी कहा जाता है| जिस कारण इस मंदिर का नाम राजारानी पड़ा| मंदिर के प्रमुख आकर्षण अलंकृत नक्काशीदार मूर्तियों हैं। राजारानी मंदिर में भगवान ब्रह्मा को समर्पित है। यह सुंदरता और अनुग्रह का एक प्रतीक है। मंदिर के दीवार पर स्त्री और पुरुषों की कुछ कामोत्तेजक नक्काशी की गई है। रोचक बात यह है कि मंदिर के गर्भ-गृह में कोई प्रतिमा नहीं है।  भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण इस मंदिर का रखरखाव करता है और इसमें प्रवेश के लिए टिकट लेना पड़ता है।

मुक्तेश्वर मंदिर Mukteshwara Temple

10वीं शताब्दी में बना यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जो कलिंग वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है| धनुषाकार आकृति में बने इस मंदिर में भाव तोरण और प्रवेश द्वार हैं, जो उड़ीसा में बौद्ध धर्म के प्रभाव को दर्शाते हैं| अद्भुत वास्तुशिल्पीय शैली में यहाँ हजारों प्रतिमाएं बनी हुई हैं| मुक्तेश्वर का अर्थ होता है- स्वतंत्रता के भगवान। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यहाँ हर वर्ष तीन दिवसीय नृत्य उत्सव का आयोजन पर्यटन विभाग द्वारा किया जाता है, जहाँ ओडिशा के परंपरागत नृत्य ओडीसी की प्रस्तुति दी जाती है।

उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाएं Udaygiri & Khandagiri Caves

ईसा पू. दूसरी शताब्दी में निर्मित इन गुफाओं में कभी प्रसिद्द जैन मठ थे| उदयगिरी या उगते सूर्य की पहाड़ियां, लगभग 135 फिट और खंडगिरी या टूटी हुई पहाड़ियां, लगभग 118 फिट ऊँची हैं| इन गुफाओं का मुख्य आकर्षण इसकी अद्भूत नक्काशियां हैं| उदयगिरी की सबसे बड़ी गुफा को रानी गुंफा या रानी की गुफा, और दूसरी हाथी गुंफा है, जहाँ प्रवेश पर हाथियों की अद्भुत मूर्तियां हैं| खंडगिरी में बड़ी संख्या में गुफाएं हैं, जिनका प्रयोग ध्यान आदि के लिए किया जाता था|  उदयगिरि में 18 गुफाएं और खंडगिरि में 15 गुफाएं हैं।

धौलीगिरी Dhauli Giri

धौलीगिरी की पहाड़ियां मौर्य सम्राट अशोक द्वारा छेड़े गए कलिंग युद्ध की गवाह हैं और 261 ईसा पूर्व में कलिंग युद्ध के बाद यहीं अशोक को पश्चाताप हुआ था, जिसके बाद अशोक ने बौद्ध धर्म अपना लिया था| कलिंग के शिलालेखों में अशोक ने कलिंग के लोगों को विद्रोह न करने की चेतावनी दी थी| 3 शताब्दी ईसा पूर्व के ये शिलालेख आज भी अच्छी हालत में हैं, और इन पर एक हाथी और भगवान बुद्ध के सार्वभौमिक प्रतीक भी हैं| भारत और जापान के सहयोग से यहाँ 1970 में एक सफ़ेद रंग का शांति स्तूप बनाया गया है|

भुवनेश्वर में इसके आलावा नंदनकानन राष्ट्रीय पार्क (Nandankanan National Park), चंदका वन्यजीव अभ्यारण्य, राम मंदिर, भुवनेश्वर, शिरडी साई बाबा मंदिर, हीरापुर का योगिनी मंदिर, बीडीए निक्को पार्क, अतरी में गंधक का गर्म पानी का झरना, इंफो सिटी, कलिंगा स्टेडियम, फार्चून टॉवर, पठानी सामंत ताराघर, रीजनल साइंस सेंटर, बीजू पटनायक पार्क, बुद्ध जयंती पार्क, एकाम्र कानन, देरास डेम, फारेस्ट पार्क, इंदिरा गाँधी पार्क, गाँधी पार्क, जनजातीय कला और शिल्पकृति संग्रहालय, उड़ीसा स्टेट म्यूजियम आदि दर्शनीय स्थल हैं|

भुवनेश्वर को  इकत (Ikat) कपड़ों के लिए भी जाना जाता है, जिसे ज्यादातर साड़ियाँ बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है| टसर और संबलपुरी सिल्क के उत्कृष्ट कपडे भी यहाँ बनाये जाते हैं|

इंफोसिस और सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज (Infosys and Satyam Computer Services) भुवनेश्वर में 1996 से ही काम कर रहीं हैं| इसके आलावा टीसीएस (TCS), विप्रो (Wipro), आईबीएम(IBM), जेनपैक्ट (Genpact), फर्स्टसोर्स (Firstsource), माइंडट्री (Mindtree)  और एमफैसिस (Mphasis) आदि को मिलकर यहाँ 300 छोटे और मध्यम आकार की आईटी कंपनियां हैं|

सन 2011 की जनगणना के अनुसार शहर की जनसँख्या 837,737 थी एवं महानगरीय / शहरी जनसँख्या 881,988 थी|

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