मुंबई Mumbai
भारत का आधुनिक महानगर अपने फैशन, फिल्म, वित्तीय उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग, गगनचुंबी इमारतों, और गंदगी के लिए जाना जाता है| किसी समय मुंबई सात द्वीपों का एक समूह था, जहाँ केवल बौद्ध भिक्षु और यहाँ के मूल निवासी मछुआरे जिन्हें कोली कहते थे, ही बसते थे| यहाँ के निवासी मुम्बादेवी की पूजा किया करते थे, जिनके नाम पर इस शहर का नाम बंबई से बदलकर मुंबई रखा गया| अंग्रेजों और यहाँ के प्रमुख द्वीप मुम्बा पर बने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के किले के लिए यह एक प्रमुख बन्दरगाह था और इसी द्वीप के आस-पास आधुनिक मुंबई शहर बसा| यहाँ के अन्य प्रमुख द्वीप हैं, कोलाबा(colaba)-जहाँ की अचल संपत्ति(real estate) एक समय विश्व में सबसे महंगी थी, ओल्ड मैन(Old Man’s) द्वीप या ओल्ड वोमेन (Old Woman’s) द्वीप, मझगाँव (mazagaon)-जो अपने आम के पेड़ों के लिए प्रसिद्द है, वरली (Worli)-जिसे हाजी अली दरगाह के लिए जाना जाता है, जो एक प्रसिद्द सूफी संत थे, परेल (Parel)- जिसका नाम 13वीं शताब्दी में राजा भीमदेव द्वारा बनवाये गए परली वैजनाथ महादेव मंदिर पर पड़ा और यह द्वीप माटुंगा, सायन और धारावी (Matunga, Sion, and Dharavi) के नाम से भी जाना जाता है, और माहिम (mahim) जिसका नाम माहिम नदी पर पड़ा|
प्राचीन समय से मुंबई मौर्य बौद्ध सम्राट अशोक, बाद में गुजरात के मुस्लिम शासकों और महँ मुगलों के राज्यों के अधीन रहा, परन्तु इनके शासन के दौरान मुंबई का कभी भी ज्यादा महत्त्व नहीं रहा क्योंकि न तो हिन्दू राजाओं और न ही मुस्लिम शासकों ने ही समुद्री व्यापर को ज्यादा महत्त्व दिया, और कभी नौवें और तेरहवीं शताब्दी के बीच समृद्ध समुद्री व्यापार बाद में केवल अदन (यमन), अफ्रीका के पश्चिमी तट के शहरों, मालाबार तट और कालीकट तक ही सीमित रह गया था| अहमदाबाद के सुल्तानों और मुगलों के अधीन मुंबई में इस्लामीकरण का प्रभाव अधिक रहा| एलीफेंटा की गुफाएं (Elephanta Caves) नौंवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी के बीच सिल्हारा वंश और बाद में कुछ कलाकृतियाँ राष्ट्रकूट वंश द्वारा बनवाई गयी, और हाजी अली की दरगाह (Haji Ali Dargah) मुंबई के वरली तट के निकट स्थित एक छोटे से टापू पर स्थित एक मस्जिद एवं दरगाह, जिसे सय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी की स्मृति में सन 1431 में बनवाया गया था, मुंबई की सबसे प्राचीन धरोहरों में से एक हैं| हाजी अली उज़्बेकिस्तान के बुखारा प्रान्त से सारी दुनिया का भ्रमण करते हुए भारत पहुँचे थे।
सोलहवीं सदी में यूरोपियनों के हिन्द महासागर में आगमन के साथ मुंबई भारतीय इतिहास के हाशिए से केंद्र में आ गया| 1534 में पुर्तगाल से फ्रांसिस अल्मीडा जब यहाँ आया, तो पुर्तगालियों ने इसे बॅाम बहिया (Bom Bahia or the “good bay”) या अच्छी खाड़ी कहा| पुर्तगालियों के नियंत्रण में गोवा, दमन और दीव पहले से ही नियंत्रण में था, इन्होने मुंबई के महत्व को समझा और 1662 तक पुर्तगालियों ने मुंबई पर नियंत्रण कर लिया| परन्तु पुर्तगालियों ने मुंबई को, इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय (Charles II) की पुर्तगाली राजकुमारी कैथरीन (Catherine of Braganza) के साथ शादी में, दहेज़ में दे दिया| पुर्तगालियों के साथ ही मुंबई में इसाई धर्म भी आया, जिसके फलस्वरूप यहाँ पर उन्होंने चर्चों और इमारतों का निर्माण कराया| पुर्तगालियों ने बसीन (Bassein) में एक किले का निर्माण भी कराया| परन्तु पुर्तगालियों को कभी भी, एक रणनीतिक प्राकृतिक बंदरगाह या साम्राज्यवादी शक्ति के एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक केंद्र के रूप में बंबई की पूरी क्षमता का एहसास कभी नहीं हुआ|
अंग्रेज 24 अगस्त 1608 को गुजरात पहुंचे, जब ईस्ट इंडिया कंपनी के कप्तान विलियम हॉकिन्स (Captain William Hawkins) ने सूरत के तट पर, ताप्ती नदी के मुहाने पर लंगर डाला| हॉकिन्स को यहाँ भारतीयों, अरब, यहूदी, आर्मीनियाई, पुर्तगाली, डच, और अन्य व्यापारियों, जो विलासिता और अन्य आवश्यक वस्तुओं के व्यापार में लगे हुए थे, की अच्छी-खासी भीड़ मिली, जो मुख्यतः नील (indigo), कपास, कालीन, और साटन (satin) के व्यापार में लगे हुए थे| हॉकिन्स को यह डर था, कि पुर्तगाली अंग्रेजो के प्रति भारतीय उदासीनता और तटस्थता को एक सकारात्मक घृणा में न परिवर्तित कर दें| लेकिन अंग्रेजों और पुर्तगालियों की यह प्रतिद्वंद्विता नवंबर 1612 में सूरत में अंग्रेजों की पुर्तगालियों पर विजय के साथ ही समाप्त हो गयी| 1630 में सूरत में पड़े अकाल और साथ ही नील और शोरे(saltpeter) की बढती मांग के कारण अन्गेर्जों को नै जगह खोजने के लिए मजबूर कर दिया| चार्ल्स द्वितीय ने बेकार पड़े बंबई के द्वीपसमूहों को, ईस्ट इंडिया कंपनी को सन 1668 में केवल 10 पौंड के वार्षिक शुल्क पर किराये पर दे दिया| जॉर्ज ओक्सेंडेन (George Oxenden) बंबई के पहले ब्रिटिश गवर्नर बने, परन्तु बंबई के दूसरे गवर्नर गेराल्ड औंगिएर (Gerald Aungier) जो मुंबई के दूसरे गवर्नर थे, ने सबसे पहले बंबई को एक व्यापारिक बंदरगाह के रूप में, जो हिन्द महासागर में अन्य बंदरगाहों से प्रतिद्वंदिता कर सके, के रूप में विकसित करने के रूप में सोचा| सबसे पहले उसने इस द्वीप को सुरक्षित करने के लिए एक किले का निर्माण कराया, जिसकी दीवार का एक हिस्सा आज भी है| इसके बाद उसने गुजरात के कुशल श्रमिकों और पारसी, बोहरा, यहूदी, और हिंदू बनिया व्यापारियों को आकर्षित करने का प्रयास किया| बंबई की आबादी जी 1661 में 10.000 थी, वह 1675 में बढ़कर 60,000 तक पहुँच गयी| बंबई ने जल्द ही भारत के पश्चिमी गेट-वे के रूप में सूरत विस्थापित कर दिया।
1818 में अंग्रेजों ने, मराठों को अंतिम रूप से हराने के बाद यहाँ ब्रिटिश भूमि का अधिग्रहण किया और बंबई में बड़े पैमाने पर सार्वजनिक परियोजनाओं पर काम शुरू किया| 1745 से 1845 के बीच अंग्रेजों ने बंबई के सात द्वीप समूहों को मिलकर एक बड़े भू-भाग में बदल दिया| 1850 में, थाना (एक उपनगर) जो बंबई से 35 किमी दूर था, को रेलवे द्वारा बंबई साथ जोड़ा दिया गया, और 1854 में पहली कपास मिल (cotton mill) लगायी गयी| 1869 में स्वेज नहर के बनने के साथ, मुंबई से कपास निर्यात औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया। बंबई नगर निगम 1872 में स्थापित किया गया और बंबई स्टॉक एक्सचेंज 1875 में खोला गया। शीघ्र ही इस शहर में गेटवे ऑफ इंडिया, जनरल पोस्ट ऑफिस, और छत्रपति शिवाजी महाराज (पहले-Prince of Wales Museum) वस्तु संग्रहालय हैंगिंग गार्डन,, फ्लोरा फाउंटेन, विक्टोरिया टर्मिनस आदि इमारतों का निर्माण भी हुआ| इन निर्माणों में पंद्रहवीं सदी के अंग्रेजी, फ्रेंच, और वेनिस के गोथिक के साथ भारतीय-अरबी शैली वास्तु कलाओं का इस्तेमाल हुआ|
1861 में, अमेरिकी नागरिक युद्ध (American Civil war) शुरू हुआ और अमेरिका के दक्षिणी राज्यों में बंदरगाहों की नाकेबंदी कर दी गयी, जिसके कारण इंग्लैंड में लंकाशायर मिलें कच्चे कपास की खरीद करने में असमर्थ हो गयीं। परिणामस्वरूप ये मिले भारत में पैदा किये गए कपास को मुंबई के बाज़ार से खरीदने के लिए मजबूर हो गयीं और एक अनुमान के अनुसार बंबई शहर में £ 81,000,000 पाउंड स्टर्लिंग की कमाई हुई और बंबई में एक अभूतपूर्व वाणिज्यिक उछाल आया| 1864 तक बंबई में, 31 बैंक, 16 वित्तीय संघ, 8 भूमि कंपनियां, 16 प्रेस कंपनियां, 10 शिपिंग कंपनियां, 20 बीमा कंपनियां कम कर रहीं थीं| 1865 में मुंबई का यह वाणिज्यिक उछाल ढह गया और समृद्धि की इस अवधि के बीच में कई कम्पनियाँ बंद हो गयीं| तब सर बार्टले फ्रेरे (Sir Bartle Frere) जो, 1862-1867 तक बंबई के गवर्नर थे, ने बंबई के किले की दीवारों को ध्वस्त करके और शहर का पुनर्गठन करने का महत्वपूर्ण फैसला लिया। 1890 में बंबई में प्लेग फैलने के बाद कई महत्वपूर्ण सुधार किये गए| 1930 तक बंबई शहर में सभी उपलब्ध भूखंडो पर निर्माण हो चुका था|
1820 में गवर्नर माउंट एल्फिंस्टन (Mountstuart Elphinstone) के प्रयासों का एक परिणाम स्वरुप, बंबई भारत में अंग्रेजी शिक्षा और सामाजिक सुधार का केंद्र बन गया। 1857 में बंबई विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ अंग्रेजी भाषा की शिक्षा के लिए प्रोत्साहन मिला, और भारतीयों ने आर्थिक सफलता और सामाजिक गतिशीलता की आशा में अंग्रेजी में दक्षता प्राप्त की| अंग्रेजी शिक्षा के प्रसार और प्रिंटिंग प्रेस के आगमन के साथ यहाँ समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और पुस्तकालयों का भी प्रसार हुआ, जिसका प्रभाव सांस्कृतिक और राजनीतिक संगठनों के सुधार आंदोलनों पर भी देखा गया| अब मुंबई भारतीय राष्ट्रवाद का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया था परिणामस्वरूप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली बैठक 1885 में यहीं आयोजित की गयी थी|
आज़ादी के बाद बंबई की आर्थिक विकास दर ने देश के सभी भागों से भारतीयों को आकर्षित किया, इस कारण बंबई की जनसँख्या में भारी वृद्धि देखी गयी| 1960 में बंबई राज्य को महाराष्ट्र और गुजरात राज्य में भाषाई आधार पर विभाजित कर दिया गया, और बंबई शहर महाराष्ट्र की राजधानी बना| 1970 के दशक में बैक-बे सुधार परियोजना (back-bay reclamation project) के पूरा होने के साथ, नरीमन प्वाइंट (इसका नाम शहर के पूर्व मेयर K. F. Nariman के नाम पर रखा गया) बंबई की वाणिज्यिक गतिविधियों का केंद्र बन गया। 1990 के दशक में बंबई स्टॉक एक्सचेंज का कंप्यूटरीकरण किया गया| में बंबई स्टॉक एक्सचेंज को 28 मंजिली नई ईमारत फ़िरोज़ जमशेदजी जीजीभॅाय (Phiroze Jamshedjee Jeejeebhoy) में स्थानांतरित कर दिया गया, जिसका नाम इसके पूर्व पारसी चेयरमैन के नाम पर रखा गया था| बंबई कई प्रसिद्ध पारसी उद्योगपतियों, जैसे सर जमशेदजी एन टाटा और कई राष्ट्रवादी नेताओं जैसे दादाभाई नौरोजी आदि का घर भी था।
मुंबई शहर के 1.4 करोड़ से अधिक लोगों के इस शहर की भीड़भाड़, स्वास्थ्य समस्याओं, प्रदूषण, और स्वच्छता के मुद्दों के साथ सामना कैसे करेंगे यह बताना थोड़ा मुश्किल है। मुंबई में खाड़ी के पार नवी मुंबई (Navi Mumbai or New Mumbai) के निर्माण के साथ इन समस्याओं का समाधान करने की कोशिश की गयी है|