भारत का संविधान – भाग 9 पंचायत एवं 9 क नगरपालिकाएं
[1][भाग 9
पंचायत
243. परिभाषाएं —इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,–
(क) “जिला” से किसी राज्य का जिला अभिप्रेत है ;
(ख) “ग्राम सभा” से ग्राम स्तर पर पंचायत के क्षेत्र के भीतर समाविष्ट किसी ग्राम से संबंधित निर्वाचक नामावली में रजिस्ट्रीकॄत व्यक्तियों से मिलकर बना निकाय अभिप्रेत है ;
(ग) “मध्यवर्ती स्तर” से ग्राम और जिला स्तरों के बीच का ऐसा स्तर अभिप्रेत है जिसे किसी राज्य का राज्यपाल , इस भाग के प्रयोजनों के लिए , लोक अधिसूचना द्वारा, मध्यवर्ती स्तर के रूप में विनिर्दिष्ट करे ;
(घ) “पंचायत” से ग्रामीण क्षेत्रों के लिए अनुच्छेद 243ख के अधीन गठित स्वायत्त शासन की कोई संस्था (चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो) अभिप्रेत है ;
(ङ) “पंचायत क्षेत्र” से पंचायत का प्रादेशिक क्षेत्र अभिप्रेत है ;
(च) “जनसंख्या” से ऐसी अंतिम पूर्व वर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं ;
(छ) “ग्राम” से राज्यपाल द्वारा इस भाग के प्रयोजनों के लिए, लोक अधिसूचना द्वारा, ग्राम के रूप में विनिर्दिष्ट ग्राम अभिप्रेत है और इसके अंतर्गत इस प्रकार विनिर्दिष्ट ग्रामों का समूह भी है ।
243क. ग्राम सभा–ग्राम सभा, ग्राम स्तर पर ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कॄत्यों का पालन कर सकेगी, जो किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा, विधि द्वारा, उपबंधित किए जाएं ।
243ख. पंचायतों का गठन–(1) प्रत्येक राज्य में ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तर पर इस भाग के उपबंधों के अनुसार पंचायतों का गठन किया जाएगा ।
(2) खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत का उस राज्य में गठन नहीं किया जा सकेगा जिसकी जनसंख्या बीस लाख से अनधिक है ।
243ग. पंचायतों की संरचना–(1) इस भाग के उपबंधों के अधीन रहते हुए , किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, पंचायतों की संरचना की बाबत उपबंध कर सकेगा :
परंतु किसी भी स्तर पर पंचायत के प्रादेशिक क्षेत्र की जनसंख्या का ऐसी पंचायत में निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो ।
(2) किसी पंचायत के सभी स्थान, पंचायत क्षेत्र में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए व्यक्तियों से भरे जाएंगे और इस प्रयोजन के लिए , प्रत्येक पंचायत क्षेत्र को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त पंचायत क्षेत्र में यथासाध्य एक ही हो ।
(3) किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा,–
(क) ग्राम स्तर पर पंचायतों के अध्यक्षों का मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों में या ऐसे राज्य की दशा में, जहां मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतें नहीं हैं, जिला स्तर पर पंचायतों में ;
(ख) मध्यवर्ती स्तर पर पंचायतों के अध्यक्षों का जिला स्तर पर पंचायतों में ;
(ग) लोक सभा के ऐसे सदस्यों का और राज्य की विधान सभा के ऐसे सदस्यों का, जो उन निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें ग्राम स्तर से भिन्न स्तर पर कोई पंचायत क्षेत्र पुर्णतः या भागतः समाविष्ट है, ऐसी पंचायत में ;
(घ) राज्य सभा के सदस्यों का और राज्य की विधान परिषद् के सदस्यों का, जहां वे,–
(त्) मध्यवर्ती स्तर पर किसी पंचायत क्षेत्र के भीतरनिर्वाचकों के रूप में रजिस्ट्रीकॄत है, मध्यवर्ती स्तर पर पंचायत में ;
(त्त्) जिला स्तर पर किसी पंचायत क्षेत्र के भीतर निर्वाचकों के रूप में रजिस्ट्रीकॄत हैं, जिला स्तर पर पंचायत में, प्रतिनिधित्व करने के लिए उपबंध कर सकेगा ।
(4) किसी पंचायत के अध्यक्ष और किसी पंचायत के ऐसे अन्य सदस्यों को, चाहे वे पंचायत क्षेत्र में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए हों या नहीं , पंचायतों के अधिवेशनों में मत देने का अधिकार होगा ।
(5)(क) ग्राम स्तर पर किसी पंचायत के अध्यक्ष का निर्वाचन ऐसी रीति से, जो राज्य के विधान-मंडल द्वारा, विधि द्वारा, उपबंधित कीजाए, किया जाएगा ;और
(ख) मध्यवर्ती स्तर या जिला स्तर पर किसी पंचायत के अध्यक्ष का निर्वाचन, उसके निर्वाचित सदस्यों द्वारा अपने में से किया जाएगा ।
243घ. स्थानों का आरक्षण–(1) प्रत्येक पंचायत में–
(क) अनुसूचित जातियों ;और
(ख) अनुसूचित जनजातियों, के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे और इस प्रकार आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात , उस पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या से यथाशकक़्य वही होगा जो उस पंचायत क्षेत्र में अनुसूचित जातियों की अथवा उस पंचायत क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या का अनुपात उस क्षेत्र की कुल जनसंख्या से है और ऐसे स्थान किसी पंचायत में भिन्न-भिन्न निर्वाचन क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आबंटित किए जा सकेंगे ।
(2) खंड (1) के अधीन आरक्षित स्थानों की कुल संख्या के कम से कम एक-तिहाई स्थान, यथास्थिति , अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे ।
(3) प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या के कम से कम एक-तिहाई स्थान (जिनके अंतर्गत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की स्त्रियों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या भी है) स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे और ऐसे स्थान किसी पंचायत में भिन्न-भिन्न निर्वाचन-क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आबंटित किए जा सकेंगे ।
(4) ग्राम या किसी अन्य स्तर पर पंचायतों में अध्यक्षों के पद अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और स्त्रियों के लिए ऐसी रीति से आरक्षित रहेंगे, जो राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, उपबंधित करे :
परंतु किसी राज्य में प्रत्येक स्तर पर पंचायतों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित अध्यक्षों के पदों की संख्या का अनुपात, प्रत्येक स्तर पर उन पंचायतों में ऐसे पदों की कुल संख्या से यथाशक्य वही होगा, जो उस राज्य में अनुसूचित जातियों की अथवा उस राज्य में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या का अनुपात उस राज्य की कुल जनसंख्या से है :
परंतु यह और कि प्रत्येक स्तर पर पंचायतों में अध्यक्षों के पदों की कुल संख्या के कम से कम एक-तिहाई पद स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे :
परंतु यह भी कि इस खंड के अधीन आरक्षित पदों की संख्या प्रत्येक स्तर पर भिन्न-भिन्न पंचायतों को चक्रानुक्रम से आबंटित की जाएगी ।
(5) खंड (1) और खंड (2) के अधीन स्थानों का आरक्षण और खंड (4) के अधीन अध्यक्षों के पदों का आरक्षण (जो स्त्रियों के लिए आरक्षण से भिन्न है) अनुच्छेद 334 में विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति पर प्रभावी नहीं रहेगा ।
(6) इस भाग की कोई बात किसी राज्य के विधान-मंडल को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में किसी स्तर पर किसी पंचायत में स्थानों के या पंचायतों में अध्यक्षों के पदों के आरक्षण के लिए कोई उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी ।
243ङ. पंचायतों की अवधि, आदि–(1) प्रत्येक पंचायत, यदि तत्समय प्रवॄत्त किसी विधि के अधीन पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से पांच वर्ष तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं ।
(2) तत्समय प्रवॄत्त किसी विधि के किसी संशोधन से किसी स्तर पर ऐसी पंचायत का, जो ऐसे संशोधन के ठीक पूर्व कार्य कर रही है, तब तक विघटन नहीं होगा जब तक खंड (1) में विनिर्दिष्ट उसकी अवधि समाप्त नहीं हो जाती ।
(3) किसी पंचायत का गठन करने के लिए निर्वाचन,–
(क) खंड (1) में विनिर्दिष्ट उसकी अवधि की समाप्ति के पूर्व ;
(ख) उसके विघटन की तारीख से छह मास की अवधि की समाप्ति के पूर्व , पूरा किया जाएगा :
परंतु जहां वह शेष अवधि, जिसके लिए कोई विघटित पंचायत बनी रहती, छह मास से कम है वहां ऐसी अवधि के लिए उस पंचायत का गठन करने के लिए इस खंड के अधीन कोई निर्वाचन कराना आवश्यक नहीं होगा ।
(4) किसी पंचायत की अवधि की समाप्ति के पूर्व उस पंचायत के विघटन पर गठित की गई कोई पंचायत, उस अवधि के केवल शेष भाग के लिए बनी रहेगी जिसके लिए विघटित पंचायत खंड(1) के अधीन बनी रहती, यदि वह इस प्रकार विघटित नहीं की जाती ।
243च. सदस्यता के लिए निरर्हताएं–(1) कोई व्यक्ति किसी पंचायत का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा,–
(क) यदि वह संबंधित राज्य के विधान-मंडल के निर्वाचनों के प्रयोजनों के लिए तत्समय प्रवॄत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया जाता है :
परंतु कोई व्यक्ति इस आधार पर निरर्हित नहीं होगा कि उसकी आयु फच्चीस वर्ष से कम है, यदि उसने इक्कीस वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है ;
(ख) यदि वह राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया जाता है ।
(2) यदि यह प्रश्न उठता है कि किसी पंचायत का कोई सदस्य खंड (1) में वार्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न ऐसे प्राधिकारी को, और ऐसी रीति से, जो राज्यका विधान-मंडल, विधि द्वारा, उपबंधित करे, विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा ।
243छ. पंचायतों की शक्तियां , प्राधिकार और उत्तरदायित्व–संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए , किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, पंचायतों को ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान कर सकेगा, जो उन्हें स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हों और ऐसी विधि में पंचायतों को उपयुक्त स्तर पर, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए , जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाएं , निम्नलिखित के संबंध में शक्तियां और उत्तरदायित्व न्यागत करने के लिए उपबंध किए जा सकेंगे, अर्थात् :–
(क) आार्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना ;
(ख) आार्थिक विकास और सामाजिक न्याय की ऐसी स्कीमों को, जो उन्हें सौपीं जाएं, जिनके अंतर्गत वे स्कीमें भी हैं, जो ग्यारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध विषयों के संबंध में हैं, कार्यान्वित करना ।
243ज. पंचायतों द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्तियां और उनकी निधियां–किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा,–
(क) ऐसे कर, शुल्क, पथकर और फीसें उद्गॄहीत, संगॄहीत और विनियोजित करने के लिए किसी पंचायत को, ऐसी प्रक्रिया के अनुसार और ऐसे निर्बंधनों के अधीन रहते हुए , प्राधिकॄत कर सकेगा ;
(ख) राज्य सरकार द्वारा उद्गॄहीत और संगॄहीत ऐसे कर, शुल्क, पथकर और फीसें किसी पंचायत को, ऐसे प्रयोजनों के लिए , तथा ऐसी शर्तों और निर्बंधनों के अधीन रहते हुए , समनुदिष्ट कर सकेगा ;
(ग) राज्य की संचित निधि में से पंचायतों के लिए ऐसे सहायता-अनुदान देने के लिए उपबंध कर सकेगा ;और
(घ) पंचायतों द्वारा या उनकी ओर से क्रमशः प्राप्त किए गए सभी धनों को जमा करने के लिए ऐसी निधियों का गठन करने और उन निधियों में से ऐसे धनों को निकालने के लिए भी उपबंध कर सकेगा, जो विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।
243झ. वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन–(1) राज्य का राज्यपाल , संविधान (तिहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1992 के प्रारंभ से एक वर्ष के भीतर यथाशीघ्र, और तत्पश्चात, प्रत्येक पांचवें वर्ष की समाप्ति पर, वित्त आयोग का गठन करेगा जो पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पुनर्विलोकन करेगा, और जो–
(क)(त्) राज्य द्वारा उद्गॄहीत करों, शुल्कों, पथकरों और फीसों के ऐसे शुद्ध आगमों के राज्य और पंचायतों के बीच, जो इस भाग के अधीन उनमें विभाजित किए जाएं , वितरण को और सभी स्तरों पर पंचायतों के बीच ऐसे आगमों के तत्संबंधी भाग के आबंटन को ;
(त्त्) ऐसे करों, शुल्कों, पथकरों और फीसों के अवधारण को, जो पंचायतों को समनुदिष्ट की जा सकेंगी या उनके द्वारा विनियोजित की जा सकेंगी ;
(त्त्त्) राज्य की संचित निधि में से पंचायतों के लिए सहायता अनुदान को, शासित करने वाले सिद्धांतों के बारे में ;
(ख) पंचायतों की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए आवश्यक अध्युपायों के बारे में ;
(ग) पंचायतों के सुदृढ़ वित्त के हित में राज्यपाल द्वारा वित्त आयोग को निर्दिष्ट किए गए किसी अन्य विषय के बारे में, राज्यपाल को सिफारिश करेगा ।
(2) राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, आयोग की संरचना का, उन अर्हताओं का, जो आयोग के सदस्यों के रूप में नियुक्ति के लिए अपेक्षित होंगी, और उस रीति का, जिससे उनका चयन किया जाएगा , उपबंध कर सकेगा ।
(3) आयोग अपनी प्रक्रिया अवधारित करेगा और उसे अपने कॄत्यों के पालन में ऐसी शक्तियां होंगी जो राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, उसे प्रदान करे ।
(4) राज्यपाल इस अनुच्छेद के अधीन आयोग द्वारा की गई प्रत्येक सिफारिश को, उस पर की गई कार्रवाई के स्पष्टिकारक ज्ञाफन सहित, राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा ।
243ञ. पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा —किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, पंचायतों द्वारा लेखे रखे जाने और ऐसे लेखाओं की संपरीक्षा करने के बारे में उपबंध कर सकेगा ।
243ट. पंचायतों के लिए निर्वाचन–(1) पंचायतों के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने का और उन सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण एक राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा, जिसमें एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होगा, जो राज्यपाल द्वारा नियुक्त किया जाएगा ।
(2) किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्तें और पदावधि ऐसी होंगी जो राज्यपाल नियम द्वारा अवधारित करे :
परंतु राज्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर ही हटाया जाएगा , जिस रीति से और जिन आधारों पर उच्चन्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है, अन्यथा नहीं और राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा ।
(3) जब राज्य निर्वाचन आयोग ऐसा अनुरोध करे तब किसी राज्य का राज्यपाल , राज्य निर्वाचन आयोग को उतने कर्मचारिवॄंद उपलब्ध कराएगा जितने खंड (1) द्वारा राज्य निर्वाचन आयोग को उसे सौपें गए कॄत्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक हों ।
(4) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, पंचायतों के निर्वाचनों से संबंधित या संसक्त सभी विषयों के संबंध में उपबंध कर सकेगा ।
243ठ. संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होना–इस भाग के उपबंध संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होंगे और किसी संघ राज्यक्षेत्र को उनके लागू होने में इस प्रकार प्रभावी होंगे मानो किसी राज्य के राज्यपाल के प्रति निर्देश, अनुच्छेद 239 के अधीन नियुक्त संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक के प्रति निर्देश हों और किसी राज्य के विधान-मंडल या विधान सभा के प्रति निर्देश, किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में, जिसमें विधान सभा है, उस विधान सभा के प्रति निर्देश हों :
परंतु राष्ट्रपति , लोक अधिसूचना द्वारा, यह निदेश दे सकेगा कि इस भाग के उपबंध किसी संघ राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग को ऐसे अपवादों और उपन्तारणों के अधीन रहते हुए , लागू होंगे, जो वह अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे ।
243ड. इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना--(1) इस भाग की कोई बात अनुच्छेद 244 के खंड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और उसके खंड (2) में निर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों को लागू नहीं होगी ।
(2) इस भाग की कोई बात निम्नलिखित को लागू नहीं होगी, अर्थात् :–
(क) नागालैंड, मेघालय और मिजोरम राज्य ;
(ख) मणिफुर राज्य में ऐसे पर्वतीय क्षेत्र जिनके लिए तत्समय प्रवॄत्त किसी विधि के अधीन जिला परिषदें विद्यमान हैं ।
(3) इस भाग की–
(क) कोई बात जिला स्तर पर पंचायतों के संबंध में पश्चिमी बंगाल राज्य के दार्जिलिंग जिले के ऐसे पर्वतीय क्षेत्रों को लागू नहीं होगी जिनके लिए तत्समय प्रवॄत्त किसी विधि के अधीन दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद् विद्यमान है ;
(ख) किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह ऐसी विधि के अधीन गठित दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद् के कॄत्यों और शक्तियों पर प्रभाव डालती है ।
[2][(3क) अनुसूचित जातियों के लिए स्थानों के आरक्षण से संबंधित अनुच्छेद 243घ की कोई बात अरुणाचल प्रदेश राज्य को लागू नहीं होगी ।]
(4) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,–
(क) खंड (2) के उपखंड (क) में निर्दिष्ट किसी राज्य का विधान-मंडल,विधि द्वारा, इस भाग का विस्तार, खंड (1) में निर्दिष्ट क्षेत्रों के सिवाय, यदि कोई हों, उस राज्यपर उस दशा में कर सकेगा जब उस राज्य की विधान सभा इस आशय का एक संकल्प उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उफास्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर देती है ;
(ख) संसद , विधि द्वारा, इस भाग के उपबंधों का विस्तार, खंड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों पर, ऐसे अपवादों और उपन्तारणों के अधीन रहते हुए , कर सकेगी, जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं और ऐसी किसी विधि को अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझा जाएगा ।
243ढ. विद्यमान विधियों और पंचायतों का बना रहना–इस भाग में किसी बात के होते हुए भी, संविधान (तिहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1992 के प्रारंभ के ठीक पूर्व किसी राज्य में प्रवॄत्त पंचायतों से संबंधित किसी विधि का कोई उपबंध , जो इस भाग के उपबंधों से असंगत है, जब तक सक्षम विधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसे संशोधित या निरसित नहीं कर दिया जाता है या जब तक ऐसे प्रारंभ से एक वर्ष समाप्त नहीं हो जाता है, इनमें से जो भी पहले हो, तब तक प्रवॄत्त बना रहेगा :
परंतु ऐसे प्रारंभ के ठीक पूर्व विद्यमान सभी पंचायतें, यदि उस राज्य की विधान सभा द्वारा या ऐसे राज्य की दशा में, जिसमें विधान परिषद् है, उस राज्य के विधान-मंडल के प्रत्येक सदन द्वारा पारित इस आशय के संकल्प द्वारा पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती हैं तो, अपनी अवधि की समाप्ति तक बनी रहेंगी ।
243ण. निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन–इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,–
(क) अनुच्छेद 243ट के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के लिए तात्पर्यित किसी ऐसी विधि की विधिमान्यता, जो निर्वाचन-क्षेत्रों के परिसीमन या ऐसे निर्वाचन-क्षेत्रों को स्थानों के आबंटन से संबंधित है, किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं की जाएगी ;
(ख) किसी पंचायत के लिए कोई निर्वाचन, ऐसी निर्वाचन अर्जी पर ही प्रश्नगत किया जाएगा जो ऐसे प्राधिकारी को और ऐसी रीति से प्रस्तुत की गई है, जिसका किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन उपबंध किया जाए, अन्यथा नहीं ।]
[3][भाग 9क
नगरपालिकाएं
243त. परिभाषाएं —इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,–
(क) “समिति” से अनुच्छेद 243ध के अधीन गठित समिति अभिप्रेत है ;
(ख) “जिला” से किसी राज्य का जिला अभिप्रेत है ;
(ग) “महानगर क्षेत्र” से दस लाख या उससे अधिक जनसंख्या वाला ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जिसमें एक या अधिक जिले समाविष्ट हैं और जो दो या अधिक नगरपालिकाओं या पंचायतों या अन्य संलग्न क्षेत्रों से मिलकर बनता है तथा जिसे राज्यपाल , इस भाग के प्रयोजनों के लिए , लोक अधिसूचना द्वारा, महानगर क्षेत्र के रूप में विनिर्दिष्ट करे ;
(घ) “नगरपालिका क्षेत्र” से राज्यपाल द्वारा अधिसूचित किसी नगरपालिका का प्रादेशिक क्षेत्र अभिप्रेत है ;
(ङ) “नगरपालिका ” से अनुच्छेद 243थ के अधीन गठित स्वायत्त शासन की कोई संस्था अभिप्रेत है ;
(च) “पंचायत”से अनुच्छेद 243ख के अधीन गठित कोई पंचायत अभिप्रेत है ;
(छ) “जनसंख्या” से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं ।
243थ. नगरपालिकाओं का गठन–(1) प्रत्येक राज्य में, इस भाग के उपबंधों के अनुसार,–
(क) किसी संक्रमणशील क्षेत्र के लिए ,अर्थात्, ग्रामीण क्षेत्र से नगरीय क्षेत्र में संक्रमणगत क्षेत्र के लिए कोई नगर पंचायत का (चाहे वह किसी भी नाम से ज्ञात हो) ;
(ख) किसी लघुतर नगरीय क्षेत्र के लिए नगरपालिका परिषद् का ;और
(ग) किसी वॄहत्तर नगरीय क्षेत्र के लिए नगर निगम का, गठन किया जाएगा :
परंतु इस खंड के अधीन कोई नगरपालिका ऐसे नगरीय क्षेत्र या उसके किसी भाग में गठित नहीं की जा सकेगी जिसे राज्यपाल , क्षेत्र के आकार और उस क्षेत्र में किसी औद्योगिक स्थापन द्वारा दी जा रही या दिए जाने के लिए प्रस्तावित नगरपालिक सेवाओं और ऐसी अन्य बातों को, जो वह ठीक समझे, ध्यान में रखते हुए , लोक अधिसूचना द्वारा, औद्योगिक नगरी के रूप में विनिर्दिष्ट करे ।
(2) इस अनुच्छेद में, “संक्रमण शील क्षेत्र”, “लघुतर नगरीय क्षेत्र”या “वॄहत्तर नगरीय क्षेत्र”से ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जिसे राज्यपाल , इस भाग के प्रयोजनों के लिए , उस क्षेत्र की जनसंख्या, उसमें जनसंख्या की सघनता, स्थानीय प्रशासन के लिए उत्पन्न राजस्व, कृषि से भिन्न क्रियाकलापों में नियोजन की प्रतिशतता, आार्थिक महत्व या ऐसी अन्य बातों को, जो वह ठीक समझे, ध्यान में रखते हुए, लोक अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करे ।
243द. नगरपालिकाओं की संरचना–(1) खंड (2) में जैसा उपबंधित है उसके सिवाय, किसी नगरपालिका के सभी स्थान, नगरपालिका क्षेत्र में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए व्यक्तियों द्वारा भरे जाएंगे और इस प्रयोजन के लिए, प्रत्येक नगरपालिका क्षेत्र को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित किया जाएगा जो वार्ड के नाम से ज्ञात होंगे ।
(2) किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा,–
(क) नगरपालिका में,–
(त्) नगरपालिका प्रशासन का विशेष ज्ञान या अनुभव रखने वाले व्यक्तियों का ;
(त्त्) लोक सभा के ऐसे सदस्यों का और राज्य की विधान सभा के ऐसे सदस्यों का, जो उन निर्वाचन-क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें कोई नगरपालिका क्षेत्र पुर्णतः या भागतः समाविष्ट हैं ;
(त्त्त्) राज्य सभा के ऐसे सदस्यों का और राज्य की विधान परिषद् के ऐसे सदस्यों का, जो नगरपालिका क्षेत्र के भीतर निर्वाचकों के रूप में रजिस्ट्रीकॄत हैं ;
(त्ध्) अनुच्छेद 243ध के खंड (5) के अधीन गठित समितियों के अध्यक्षों का, प्रतिनिधित्व करने के लिए उपबंध कर सकेगा :
परंतु पैरा (त्) में निर्दिष्ट व्यक्तियों को नगरपालिका के अधिवेशनों में मत देने का अधिकार नहीं होगा ;
(ख) किसी नगरपालिका के अध्यक्ष के निर्वाचन की रीति का उपबंध कर सकेगा ।
243ध. वार्ड समितियों, आदि का गठन और संरचना–(1) ऐसी नगरपालिका के, जिसकी जनसंख्या तीन लाख या उससे अधिक है, प्रादेशिक क्षेत्र के भीतर वार्ड समितियों का गठन किया जाएगा, जो एक या अधिक वार्डों से मिलकर बनेगी ।
(2) राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा,–
(क) वार्ड समिति की संरचना और उसके प्रादेशिक क्षेत्र की बाबत ;
(ख) उस रीति की बाबत जिससे किसी वार्ड समिति में स्थान भरे जाएंगे, उपबंध कर सकेगा ।
(3) वार्ड समिति के प्रादेशिक क्षेत्र के भीतर किसी वार्ड का प्रतिनिधित्व करने वाला किसी नगरपालिका का
सदस्य उस समिति का सदस्य होगा ।
(4) जहां कोई वार्ड समिति,–
(क) एक वार्ड से मिलकर बनती है वहां नगरपालिका में उस वार्ड का प्रतिनिधित्व करने वाला सदस्य ;
या
(ख) दो या अधिक वार्डों से मिलकर बनती है वहां नगरपालिका में ऐसे वार्डों का प्रतिनिधित्व करने वाले
सदस्यों में से एक सदस्य, जो उस वार्ड समिति के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किया जाएगा , उस समिति का अध्यक्ष होगा ।
(5) इस अनुच्छेद की किसी बात से यह नहीं समझा जाएगा कि वह किसी राज्य के विधान-मंडल को वार्ड समितियों के अतिरिक्त समितियों का गठन करने के लिए कोई उपबंध करने से निवारित करती है ।
243न. स्थानों का आरक्षण–(1) प्रत्येक नगरपालिका में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे और इस प्रकार आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात, उस नगरपालिका में प्रत्यक्ष होगा जो उस नगरपालिका क्षेत्र में अनुसूचित जातियों की अथवा उस नगरपालिका क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या का अनुपात उस क्षेत्र की कुल जनसंख्या से है और ऐसे स्थान किसी नगरपालिका के भिन्न-भिन्न निर्वाचन-क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आबंटित किए जा सकेंगे ।
(2) खंड (1) के अधीन आरक्षित स्थानों की कुल संख्या के कम से कम एक-तिहाई स्थान, यथास्थिति , अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों की स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे ।
(3) प्रत्येक नगरपालिका में प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले स्थानों की कुल संख्या के कम से कम एक तिहाई स्थान (जिनके अंतर्गत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की स्त्रियों के लिए आरक्षित स्थानों की
संख्या भी है) स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेंगे और ऐसे स्थान किसी नगरपालिका के भिन्न-भिन्न निर्वाचन-क्षेत्रों को चक्रानुक्रम से आबंटित किए जा सकेंगे ।
(4) नगरपालिकाओं में अध्यक्षों के पद अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और स्त्रियों के लिए ऐसी रीति से आरक्षित रहेंगे, जो राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, उपबंधित करे ।
(5) खंड (1) और खंड (2) के अधीन स्थानों का आरक्षण और खंड (4) के अधीन अध्यक्षों के पदों का आरक्षण (जो स्त्रियों के लिए आरक्षण से भिन्न है) अनुच्छेद 334 में विनिर्दिष्ट अवधि की समाप्ति पर प्रभावी नहीं रहेगा ।
(6) इस भाग की कोई बात किसी राज्य के विधान-मंडल को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में किसी नगरपालिका में स्थानों के या नगरपालिकाओं में अध्यक्षों के पद के आरक्षण के लिए कोई उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी ।
243प. नगरपालिकाओं की अवधि, आदि–(1) प्रत्येक नगरपालिका , यदि तत्समय प्रवॄत्त किसी विधि के अधीन पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से पांच वर्ष तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं :
परंतु किसी नगरपालिका का विघटन करने के पूर्व उसे सुनवाई का उचित अवसर दिया जाएगा ।
(2) तत्समय प्रवॄत्त किसी विधि के किसी संशोधन से किसी स्तर पर ऐसी नगरपालिका का, जो ऐसे संशोधन के ठीक पूर्व कार्य कर रही है, तब तक विघटन नहीं होगा जब तक खंड (1) में विनिर्दिष्ट उसकी अवधि समाप्त नहीं हो जाती ।
(3) किसी नगरपालिका का गठन करने के लिए निर्वाचन,–
(क) खंड (1) में विनिर्दिष्ट उसकी अवधि की समाप्ति के पूर्व ;
(ख) उसके विघटन की तारीख से छह मास की अवधि की समाप्ति के पूर्व, पूरा किया जाएगा :
परंतु जहां वह शेष अवधि, जिसके लिए कोई विघटित नगरपालिका बनी रहती, छह मास से कम है वहां ऐसी अवधि के लिए उस नगरपालिका का गठन करने के लिए इस खंड के अधीन कोई निर्वाचन कराना आवश्यक नहीं होगा ।
(4) किसी नगरपालिका की अवधि की समाप्ति के पूर्व उस नगरपालिका के विघटन पर गठित की गई कोई नगरपालिका, उस अवधि के केवल शेष भाग के लिए बनी रहेगी जिसके लिए विघटित नगरपालिका खंड (1) के अधीन बनी रहती, यदि वह इस प्रकार विघटित नहीं की जाती ।
243फ. सदस्यता के लिए निरर्हताएं–(1) कोई व्यक्ति किसी नगरपालिका का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा,–
(क) यदि वह संबंधित राज्य के विधान-मंडल के निर्वाचनों के प्रयोजनों के लिए तत्समय प्रवॄत्त किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया जाता है :
परंतु कोई व्यक्ति इस आधार पर निरर्हित नहीं होगा कि उसकी आयु पच्चीस वर्ष से कम है, यदि उसने इक्कीस वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है ;
(ख) यदि वह राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया जाता है ।
(2) यदि यह प्रश्न उठता है कि किसी नगरपालिका का कोई सदस्यखंड (1) में वार्णित किसी निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न ऐसे प्राधिकारी को, और ऐसी रीति से, जो राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, उपबंधित करे, विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा ।
243ब. नगरपालिकाओं , आदि की शक्तियां , प्राधिकार और उत्तरदायित्व–इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए , किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा,–
(क) नगरपालिकाओं को ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान कर सकेगा, जो उन्हें स्वायत्त शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य करने में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हों और ऐसी विधि में नगरपालिकाओं को, ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए , जो उसमें विनिर्दिष्ट की जाएं , निम्नलिखित के संबंध में शक्तियां और उत्तरदायित्व न्यागत करने के लिए उपबंध किए जा सकेंगे, अर्थात् :–
(त्) आार्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं तैयार करना ;
(त्त्) ऐसे कॄत्यों का पालन करना और ऐसी स्कीमों को, जो उन्हें सौपीं जाएं , जिनके अंतर्गत वे स्कीमें भी हैं, जो बारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध विषयों के संबंध में हैं, कार्यान्वित करना ;
(ख) समितियों को ऐसी शक्तियां और प्राधिकार प्रदान कर सकेगा जो उन्हें अपने को प्रदत्त उत्तरदायित्वों को, जिनके अन्तर्गत वे उत्तरदायित्व भी हैं जो बारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध विषयों के संबंध में हैं, कार्यान्वित करने में समर्थ बनाने के लिए आवश्यक हों ।
243भ. नगरपालिकाओं द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्ति और उनकी निधियां–किसी राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा,–
(क) ऐसे कर, शुल्क, पथकर और फीसें उद्गॄहीत, संगॄहीत और विनियोजित करने के लिए किसी नगरपालिका को, ऐसी प्रक्रिया के अनुसार और ऐसे निर्बंधनों के अधीन रहते हुए , प्राधिकॄत कर सकेगा ;
(ख) राज्य सरकार द्वारा उद्गॄहीत और संगॄहीत ऐसे कर, शुल्क, पथकर और फीसें किसी नगरपालिका को, ऐसे प्रयोजनों के लिए , तथा ऐसी शर्तों और निर्बंधनों के अधीन रहते हुए , समनुदिष्ट कर सकेगा ;
(ग) राज्य की संचित निधि में से नगरपालिकाओं के लिए ऐसे सहायता-अनुदान देने के लिए उपबंध कर सकेगा ;और
(घ) नगरपालिकाओं द्वारा या उनकी ओर से क्रमशः प्राप्त किए गए सभी धनों को जमा करने के लिए ऐसी निधियों का गठन करने और उन निधियों में से ऐसे धनों को निकालने के लिए भी उपबंध कर सकेगा, जो विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं ।
243म. वित्त आयोग–(1) अनुच्छेद 243झ के अधीन गठित वित्त आयोग नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति का भी पुनर्विलोकन करेगा और जो–
(क)(त्) राज्य द्वारा उद्गॄहणीय ऐसे करों, शुल्कों, पथकरों और फीसों के ऐसे शुद्ध आगमों के राज्य और नगरपालिकाओं के बीच, जो इस भाग के अधीन उनमें विभाजित किए जाएं , वितरण को और सभी स्तरों पर नगरपालिकाओं के बीच ऐसे आगमों के तत्संबंधी भाग के आबंटन को ;
(त्त्) ऐसे करों, शुल्कों, पथकरों और फीसों के अवधारण को, जो नगरपालिकाओं को समनुदिष्ट की जा सकेंगी या उनके द्वारा विनियोजित की जा सकेंगी ;
(त्त्त्) राज्य की संचित निधि में से नगरपालिकाओं के लिए सहायता अनुदान को, शासित करने वाले सिद्धांतों के बारे में ;
(ख) नगरपालिकाओं की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए आवश्यक अध्युपायों के बारे में ;
(ग) नगरपालिकाओं के सुदृढ़ वित्त के हित में राज्यपाल द्वारा वित्त आयोग को निर्दिष्ट किए गए किसी अन्य विषय के बारे में, राज्यपाल को सिफारिश करेगा ।
(2) राज्यपाल इस अनुच्छेद के अधीन आयोग द्वारा की गई प्रत्येक सिफारिश को, उस पर की गई कार्रवाई के स्पष्टिकारक ज्ञाफन सहित, राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा ।
243य. नगरपालिकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा —किसी राज्य का विधान-मंडल,विधि द्वारा, नगरपालिकाओं द्वारा लेखे रखे जाने और ऐसे लेखाओं की संपरीक्षा करने के बारे में उपबंध कर सकेगा ।
243यक. नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचन–(1) नगरपालिकाओं के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए निर्वाचक नामावली तैयार कराने का और उन सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण, अनुच्छेद 243ट में निर्दिष्ट राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगा ।
(2) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए , किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, नगरपालिकाओं के निर्वाचनों से संबंधित या संसक्त सभी विषयों के संबंध में उपबंध कर सकेगा ।
243यख. संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होना–इस भाग के उपबंध संघ राज्यक्षेत्रों को लागू होंगे और किसी संघ राज्यक्षेत्र को उनके लागू होने में इस प्रकार प्रभावी होंगे मानो किसी राज्य के राज्यपाल के प्रति निर्देश, अनुच्छेद 239 के अधीन नियुक्त संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक के प्रति निर्देश हों और किसी राज्य के विधान-मंडल या विधान सभा के प्रति निर्देश, किसी ऐसे संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में, जिसमें विधान सभा है, उस विधान सभा के प्रति निर्देश हों :
परंतु राष्ट्रपति , लोक अधिसूचना द्वारा, यह निदेश दे सकेगा कि इस भाग के उपबंध किसी संघ राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग को ऐसे अपवादों और उपान्तारणों के अधीन रहते हुए , लागू होंगे, जो वह अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे ।
243यग. इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना–(1) इस भाग की कोई बात अनुच्छेद 244 के खंड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और इसके खंड (2) में निर्दिष्ट जनजाति क्षेत्रों को लागू नहीं होगी ।
(2) इस भाग की किसी बात का यह अर्थ नहीं लगाया जाएगा कि वह पश्चिमी बंगाल राज्य के दार्जिलिंग जिले के पर्वतीय क्षेत्रों के लिए तत्समय प्रवॄत्त किसी विधि के अधीन गठित दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद् के कॄत्यों और शक्तियों पर प्रभाव डालती है ।
(3) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संसद , विधि द्वारा, इस भाग के उपबंधों का विस्तार खंड (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों और जनजाति क्षेत्रों पर, ऐसे अपवादों और उपन्तारणों के अधीन रहते हुए , कर सकेगी, जो ऐसी विधि में विनिर्दिष्ट किए जाएं और ऐसी किसी विधि को अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझा जाएगा ।
243यघ. जिला योजना के लिए समिति–(1) प्रत्येक राज्य में जिला स्तर पर, जिले में पंचायतों और नगरपालिकाओं द्वारा तैयार की गई योजनाओं का समेकन करने और संपूर्ण जिले के लिए एक विकास योजना प्रारूप तैयार करने के लिए , एक जिला योजना समिति का गठन किया जाएगा ।
(2) राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, निम्नलिखित की बाबत उपबंध कर सकेगा, अर्थात् :–
(क) जिला योजना समितियों की संरचना ;
(ख) वह रीति जिससे ऐसी समितियों में स्थान भरे जाएंगे :
परंतु ऐसी समिति की कुल सदस्य संख्या के कम से कम चार बटा पांच सदस्य, जिला स्तर पर पंचायत के और जिले में नगरपालिकाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा, अपने में से,जिले में ग्रामीण क्षेत्रों की और नगरीय क्षेत्रों की जनसंख्या के अनुपात के अनुसार निर्वाचित किए जाएंगे ;
(ग) जिला योजना से संबंधित ऐसे कॄत्य जो ऐसी समितियों को समनुदिष्ट किए जाएं ;
(घ) वह रीति, जिससे ऐसी समितियों के अध्यक्ष चुने जाएंगे ।
(3) प्रत्येक जिला योजना समिति, विकास योजना प्रारूप तैयार करने में,–
(क) निम्नलिखित का ध्यान रखेगी, अर्थात् :–
(त्) पंचायतों और नगरपालिकाओं के सामान्य हित के विषय, जिनके अंतर्गत स्थानिक योजना, जल तथा अन्य भौतिक और प्राकॄतिक संसाधनों में हिस्सा बंटाना, अवसंरचना का एकीकॄत विकास और पर्यावरण संरक्षण है ;
(त्त्) उपलब्ध वित्तीय या अन्य संसाधनों की मात्रा और प्रकार ;
(ख) ऐसी संस्थाओं और संगठनों से परामर्श करेगी जिन्हें राज्यपाल, आदेश द्वारा, विनिर्दिष्ट करे ।
(4) प्रत्येक जिला योजना समिति का अध्यक्ष, वह विकास योजना, जिसकी ऐसी समिति द्वारा सिफारिश की जाती है, राज्य सरकार को भेजेगा ।
243यङ. महानगर योजना के लिए समिति–(1) प्रत्येक महानगर क्षेत्र में, संपूर्ण महानगर क्षेत्र के लिए विकास योजना प्रारूप तैयार करने के लिए, एक महानगर योजना समिति का गठन किया जाएगा ।
(2) राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, निम्नलिखित की बाबत उपबंध कर सकेगा, अर्थात् :–
(क) महानगर योजना समितियों की संरचना ;
(ख) वह रीति जिससे ऐसी समितियों में स्थान भरे जाएंगे :
परंतु ऐसी समिति के कम से कम दो-तिहाई सदस्य, महानगर क्षेत्र में नगरपालिकाओं के निर्वाचित सदस्यों और पंचायतों के अध्यक्षों द्वारा, अपने में से, उस क्षेत्र में नगरपालिकाओं की और पंचायतों की जनसंख्या के अनुपात के अनुसार निर्वाचित किए जाएंगे ;
(ग) ऐसी समितियों में भारत सरकार और राज्य सरकार का तथा ऐसे संगठनों और संस्थाओं का प्रतिनिधित्व जो ऐसी समितियों को समनुदिष्ट कॄत्यों को कार्यान्वित करने के लिए आवश्यक समझे जाएं ;
(घ) महानगर क्षेत्र के लिए योजना और समन्वय से संबंधित ऐसे कॄत्य जो ऐसी समितियों को समनुदिष्ट किए जाएं ;
(घ) वह रीति, जिससे ऐसी समितियों के अध्यक्ष चुने जाएंगे ।
(3) प्रत्येक महानगर योजना समिति, विकास योजना प्रारूप तैयार करने में,–
(क) निम्नलिखित का ध्यान रखेगी, अर्थात् :–
(त्) महानगर क्षेत्र में नगरपालिकाओं और पंचायतों द्वारा तैयार की गई योजनाएं ;
(त्त्) नगरपालिकाओं और पंचायतों के सामान्य हित के विषय , जिनके अंतर्गत उस क्षेत्र की समान्वित स्थानिक योजना, जल तथा अन्य भौतिक और प्राकॄतिक संसाधनों में हिस्सा बंटाना, अवसंरचना का एकीकृत विकास और पर्यावरण संरक्षण है ;
(त्त्त्) भारत सरकार और राज्य सरकार द्वारा निाश्चित समस्त उद्देश्य और पूर्विक्ताएँ ;
(त्ध्) उन विनिधानों की मात्रा और प्रकॄति जो भारत सरकार और राज्य सरकार के अभिकरणों द्वारा महानगर क्षेत्र में किए जाने संभाव्य हैं तथा अन्य उपलब्ध वित्तीय या अन्य संसाधन ;
(ख) ऐसी संस्थाओं और संगठनों से परामर्श करेगी जिन्हें राज्यपाल, आदेश द्वारा, विनिर्दिष्ट करे ।
(4) प्रत्येक महानगर योजना समिति का अध्यक्ष, वह विकास योजना, जिसकी ऐसी समिति द्वारा सिफारिश की जाती है, राज्य सरकार को भेजेगा ।
243यच. विद्यमान विधियों और नगरपालिकाओं का बना रहना–इस भाग में किसी बात के होते हुए भी, संविधान (चौहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1992 के प्रारंभ के ठीक पूर्व किसी राज्य में प्रवॄत्त नगरपालिकाओं से संबंधित किसी विधि का कोई उपबंध , जो इस भाग के उपबंधों से असंगत है, जब तक सक्षम विधान-मंडल द्वारा या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा उसे संशोधित या निरसित नहीं कर दिया जाता है या जब तक ऐसे प्रारंभ से एक वर्ष समाप्त नहीं हो जाता है, इनमें से जो भी पहले हो, तब तक प्रवॄत्त बना रहेगा :
परंतु ऐसे प्रारंभ के ठीक पूर्व विद्यमान सभी नगरपालिकाएं , यदि उस राज्य की विधान सभा द्वारा या ऐसे राज्य की दशा में, जिसमें विधान परिषद् हैं, उस राज्य के विधान-मंडल के प्रत्येक सदन द्वारा पारित इस आशय के संकल्प द्वारा पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती हैं तो, अपनी अवधि की समाप्ति तक बनी रहेंगी ।
243यछ. निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन–इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,–
(क) अनुच्छेद 243यक के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के लिए तात्पर्यित किसी ऐसी विधि की विधिमान्यता, जो निर्वाचन-क्षेत्रों के परिसीमन या ऐसे निर्वाचन-क्षेत्रों को स्थानों के आबंटन से संबंधित है, किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं की जाएगी ;
(ख) किसी नगरपालिका के लिए कोई निर्वाचन, ऐसी निर्वाचन अर्जी पर ही प्रश्नगत किया जाएगा जो ऐसे प्राधिकारी को और ऐसी रीति से प्रस्तुत की गई है, जिसका किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन उपबंध किया जाए, अन्यथा नहीं ।]
[1] संविधान (तिहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1992 की धारा 2 द्वारा (24-1-1993 से) अंतःस्थापित । संविधान(सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा मूल भाग 9 का लोप किया गया था ।
[2] संविधान (तिरासीवां संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित ।
[3] संविधान (चौहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1992 की धारा 2 द्वारा (1-6-1993 से) अंतःस्थापित ।